Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 03
Author(s): Haribhai Songadh, Swarnalata Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 14
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-३/१२ बंदर वृक्ष के ऊपर बैठा-बैठा यह सब देख रहा था । यह सब देखकर उसे ऐसी भावना जागी कि यदि मैं मनुष्य होता तो मैं भी इन राजा की तरह मुनियों की सेवा करता, परन्तु अरे रे ! मैं तो पशु हूँ.... मेरा ऐसा भाग्य कहाँ... .... कि मैं मुनिराज को आहार दे सकूँ । आहार दान के बाद वे मुनि उपदेश देने के लिए बैठे । राजा-रानी उनका उपदेश सुन रहे थे। बंदर भी वहाँ बैठा-बैठा उपदेश सुन रहा था.... और दोनों हाथ जोड़कर मुनिराजों की वन्दना कर रहा था । बंदर को इस प्रकार व्यवहार करते देख राजा बहुत खुश हुये और उन्हें बंदर के ऊपर प्रेम उमड़ा। तब राजा ने मुनिराज से पूछा - "यह बंदर कौन है ?" उसी समय मुनिराज ने कहा - "हे राजन् ! यह बंदर पूर्वभव में नागदत्त नाम का बनिया था, उस समय बहुत कपट भाव करने के कारण

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