Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 03
Author(s): Haribhai Songadh, Swarnalata Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation
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स्वरूपहा
जीवन में ध्यान रखने योग्य बातें 1. प्रातः सदा ही सूर्योदय से पूर्व उत्साहपूर्वक उठो। 2. उठते ही पंचपरमेष्ठी का विनयपूर्वक स्मरण करो। 3. विचार करो, मैं चेतन हूँ, देह नहीं हूँ। सिद्धों के समान ज्ञान और आनन्द
ही मेरा स्वरूप है। 4. शौच, स्नान आदि करके नित्य जिनदर्शन करो। 5. चित्त को सदा पवित्र रखो पवित्र चित्त में ही अच्छी शिक्षायें ठहरती हैं।। 6. नित्य निर्दोष वीतराग साहित्य का स्वाध्याय करो। 7. मन में कोई भी गन्दा विचार, आलस्य तथा दुर्भाव न आने दो। 8. किसी की चुगली व निन्दा न करो। 9. कठोर, अप्रिय व निंद्य वचन न बोलो। 10. सदा ही आध्यात्मिक व ज्ञान-वैराग्य पद एवं भजन गाते रहने की आदत
बनाओ। सिनेमा के गीतों को मत गाओ। 11. बड़ों के सामने, बड़े की विनय एवं शिष्टाचार से वर्तन करो। 12. वस्त्र, पुस्तकें व घर की प्रत्येक वस्तु नियत स्थान पर रखो। 13. समय, स्वास्थ्य व सम्पति का सदुपयोग करो। 14. अपने सुख के लिये भी कभी किसी को कष्ट न दो। 15. अपने सुख के साथ दूसरों के सुख का भी ध्यान रखो। 16. यदि मित्र ही बनाना हो तो सत्साहित्य को बनाओ। 17. अपने दोषों को दूर करने के लिये महापुरुषों को अपने जीवन का आदर्श
बनाओ। 18. जगत का कोई भी पदार्थ अपना भला-बुरा करने वाला नहीं है। 19. निर्मोही एवं वीतराग पुरुषों को आदर्श बनाकर उनके जीवन
चरित्रों को पढ़ो। 20. अज्ञान एवं राग-द्वेष के कारण ही जगत के पदार्थ अच्छे और बुरे दिखाई
देते हैं। 21. अज्ञान और राग-द्वेष ही दुःख का एकमात्र कारण है। 22. अज्ञान एवं राग-द्वेष को दूर करने का निरन्तर प्रयत्न करो।