Book Title: Jain Darshan me Shraddha Matigyan aur Kevalgyan ki Vibhavana
Author(s): Nagin J Shah
Publisher: Jagruti Dilip Sheth Dr

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Page 4
________________ सम्पादकीय संस्कृत-संस्कृति ग्रन्थमाला के आठवें पुस्तक के रूप में जैनदर्शन में श्रद्धा (सम्यग्दर्शन), मतिज्ञान और केवलज्ञान की विभावना' नामक लघु किन्तु महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ को विद्वानों और जिज्ञासुओं के समक्ष रखते हुए मैं आनन्द की अनुभूति कर रहा हूँ। जैनदर्शन की तीन मूलभूत समस्याओं का निष्पक्ष तुलनात्मक अध्ययन इस पुस्तक में प्रस्तुत किया गया है। अपने धर्म-दर्शन को ठीक से समझने के लिए पर धर्म-दर्शनों का अध्ययन कितना आवश्यक है यह इस लघु ग्रन्थ से पाठकों को ज्ञात होगा । 'नामूलं लिख्यते किञ्चित्' इस उक्ति का इस ग्रन्थ में गम्भीरतापूर्वक अनुसरण किया गया है, अतः ग्रन्थ प्रमाणभूत बन गया है। धर्म-दर्शन में मनन की, तर्क की कितनी बडी प्रतिष्ठा है इस की प्रतीति पाठकों को यह लघु ग्रन्थ कराता है। तदुपरान्त, मनन, चिन्तन, तर्क का सुचारु प्रयोग भी इस ग्रन्थ में किया गया है। साथ ही साधार नूतन अर्थघटन भी पद पद पर उपलब्ध हैं। आशा ही नहीं किन्तु पूर्ण विश्वास है कि प्रस्तुत पुस्तक जैनदर्शन के एवं भारतीय दर्शन के अध्येताओं और जिज्ञासुओं को लाभप्रद, विचारप्रेरक और रसप्रद होगी। नगीन जी. शाह सामान्य सम्पादक संस्कृत-संस्कृति ग्रन्थमाला 23, वालकेश्वर सोसायटी आंबावाडी, अहमदाबाद-380015. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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