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जैन दर्शन
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देव महता मूढता शब्दका अर्थ अज्ञानता है। देवके विषयो में अज्ञानता रखना देव मूढता है । जो सर्वोत्तम पुरुष ध्यान और तपवरण के द्वारा अपने घातिया कर्मों को नाश कर लेता है वह जिन कहलाता है । वह जिन या जिनेन्द्र देव कहलाता है। ज्ञानावरण कर्म के नाश होने से वह पूरा ज्ञानी या अनंत ज्ञानी - केवलज्ञानी हो जाता है । दशनावरण कर्म के नाश होने से वह पूर्णदर्शी या अनंतदर्शन को प्राप्त करने वाला हो जाता है । मोहनीय कर्म के नाश होने से वह भूख प्यास आदि पहले कहे हुए समस्त दोपों से रहित होकर कीतराग हो जाता है और अंतराय कर्म के नाश होने से वह अनंत शक्ति शाली हो जाता है। इस प्रकार जो सर्वोत्तम मनुष्य वीतराग,
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सर्वज्ञ, सर्वदर्शी हो जाता है वह देव पदको प्राप्त हो जाता है । उस समय उनको जिनेन्द्र देव कहते हैं । उस समय इन्द्रादिक तीनों लोकों के इन्द्र, देव, मनुष्य आदि सब उनकी पूजा करते हैं, तथा उनसे कल्याण का मार्ग सुनते हैं। वे तीर्थंकर परम देव अपनी दिव्य ध्वनि के द्वारा भव्य जीवों के लिये मोक्षमार्ग का उपदेश देते हैं । उनका वही उपदेश धर्म कहलाता है तथा उसी उपदेश को सुनकर गणधर देव जिस श्रुत ज्ञान की रचना करते हैं- उनको शास्त्र कहते हैं । यह अत्यन्त संक्षेपसे देव, धर्म और शास्त्र का स्वरूप बतलाया है इसमें जो देवका स्वरूप बतलाया है उनको छोड कर जो जीव अन्य किसी को देव मानते हैं वह सब देव मूढता कहलाती है। इस संसार में ऐसे अनेक कल्पित देव माने जाते हैं जो अपने साथ स्त्री भी रखते हैं, शास्त्र भी रखते हैं तथा सांसरिक
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