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जैन-दर्शन
इस प्रकार धर्म्यध्यान के चार भेद हैं। अथवा उत्तम क्षमा श्रादि दश प्रकार के धर्मोंका चितवन करना धर्म्यध्यान है । यह सब प्रकार का धम्येध्यान चौथे पांचवें छठे गुणस्थान तक तथा श्रेणी प्रारोहण से पहले सातवें गुणस्थान तक होता है । यह धय॑ध्यान स्वर्गादिक का कारण है और परंपरासे मोक्षका कारण है। इस प्रकार संक्षेप से धर्म्यध्यान का स्वरूप है। आगे शुक्ल ध्यान को कहते हैं।
शुक्ल ध्यान
शुद्ध आत्मा के स्वरूप का चितवन करना शुक्लध्यान है । यह भी चार प्रकार का है । यथा
पृथक्त्व-वितके-ध्यान-मन वचन काय के योगों से होता है । जो ध्यान मन वचन काय इन तीनों योगों से होता है, कभी मन से होता है फिर बदलकर वचन से होने लगता है वा बदलकर काय से होने लगता है। इस प्रकार जो पृथक् पृथक् योगों से होता है उसको पृथक्त्व वितर्क कहते हैं । वितर्क शब्दका अर्थ श्रतज्ञान है । यह पृथक्त्व वितर्क नामका शुक्रध्यान श्रुतज्ञानी श्रुत केवला को ही होता है अन्य किसी के नहीं होता। तथा सातवें आठवें नौवें दशवें गुणस्थान तक होता है।
___एकत्व वितर्क-यह दूसरा शुक्लध्यान किसी भा एक ही योगसे होता है । इसीलिये इसको एकत्व वितर्क कहते हैं । यह शुक्नध्यान