Book Title: Jain Darshan
Author(s): Lalaram Shastri
Publisher: Mallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon

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Page 263
________________ जैन-दर्शन हठ पूर्वक माना जायगा तो फिर यही मानना पडेगा कि नदियां सब गोल पृथ्वी को विदीर्ण कर ही बहती हैं । परन्तु यह बात सर्वथा असम्भव है । इसलिये मानना पडेगा कि स्थिर पृथ्वी भी गेंद के समान गोल नहीं है किन्तु समधरातल रूप है । पृथ्वी को गोल न मान कर समधरातल रूप मानने से समुद्र के जल को : स्थिरता में भी कोई विरोध नहीं आता है। सूतक प्रकरण इस संसार में मनुष्यों के द्रव्य और भाव दोनों ही सूतक 'से" मलिन हो जाते हैं तथा द्रव्य और भाव के मलिन होने से धर्म. और चरित्र स्वयं मलिन हो जाता है । इसीलिये सूतक पातक . मानने से द्रव्य-शुद्धि होती है, द्रव्य-शुद्धि होने से भाव-शुद्धि होती है और भाव-शुद्धि होने से चारित्र निर्मल होता है । इस :. संसार में मनुष्यों का सूतक रागद्वेष का मूल कारण है, तथा राग द्वेष से अपने आत्मा की हिंसा करने वाले हर्ष और शोक प्रकट होते हैं । यह निश्चित सिद्धान्त है कि मनुष्य-जन्म में भी धर्म की स्थिति शरीर के आश्रित है । इसलिये मनुष्यों के शरीर की शुद्धि होने से सम्यग्दर्शन और. व्रतों की शुद्धिः करने वाली धर्म की शुद्धि होती है । अतएव धर्म की शुद्धि के लिये तथा . सम्यग्दर्शन और व्रतों की.. शुद्धि के लिये- समस्त शुद्धियों को: . उत्पन्न करने वाला. इस. सूतक. पातक ..का पालन अवश्य - करना चाहिये । यदि सूतक पातक का पालन नहीं किया जाता..

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