Book Title: Jain Darshan
Author(s): Lalaram Shastri
Publisher: Mallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon

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Page 272
________________ [ २६२ - जैन-दर्शन वह स्त्री भी धर्म कर्म से रहित पापिनी ही समझी जाती है। ऐसी स्त्रो भगवान जिनेन्द्र देवकी आज्ञाका लोप करने से दुःख देने च.ली दुर्गति को प्राप्त होती है । जो स्त्री अपनी कुशिक्षा के कारण वा कुसंगति के कारण जानती हुई भी रजःस्वलाका सूतक नहीं पालती है वह स्त्री भी नरक में जाती है। ऐसी स्त्री भनवान जिनेन्द्र देव के द्वारा मिथ्याष्टिनी और पापिनी कही जाती है। यह रजस्वला का आचार विचार सब प्रकार की शुद्धि को करने वाला है और भावों की शुद्धि को उत्पन्न करने वाला है। इसलिये जो मनुष्य अपनो कुशिक्षा के कारण रजःस्वला के प्राचार विचारों को नहीं मानता वह मनुष्य भी मिथ्याट्री भगवान जिनेन्द्र देवको आज्ञाका लोप करने वाला बुद्धिहीन, क्रियाहीन, भ्रष्ट. पापी और नरकगामी कहा जाता है। इस प्रकार जो स्त्री अपने द्रव्य और भावों की शुद्धि के लिये अपने परिणामों से भगवान जिनेन्द्र देवकी आज्ञानुसार रजःस्वला के आचार विचारों का पालन करती है वह स्त्री व्रत और चारित्र से सुशोभित होकर अत्यन्त शुभ और सर्यो. स्कृष्ट अपने कुलकी विशुद्धि को प्राप्त होती है और अंत में स्वर्गकी लक्ष्मी को प्राप्त होती है । इस प्रकार रजःस्वता का सूतक निरूपण किया। अब आगे अपने आचार विचारों की शुद्धि के लिए जन्म सबंधी सूतक का निरूपण करते हैं । जन्म संबंधी सूतक स्राव, पात . और प्रसूति के भेद से तीन प्रकार का माना है । यदि गर्भाधान से चार महीने तक गर्भ गिर जाय तो उसको साव कहते हैं। यदि

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