Book Title: Jain Darshan
Author(s): Lalaram Shastri
Publisher: Mallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon

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Page 277
________________ जैन-दर्शन - - - - - - - - - - - - मरने का सूतक अब आगे मरणका सूतक कहते हैं। किसी के जन्म होने पर तथा नाभि छेदन के बाद किसी बालक के मर जाने पर माता पिता और कुटुम्बी लोगों को पूर्ण सूतक मानना चाहिये । जो बालक जीता हुआ उत्पन्न होता है और नाभि छेदन के पहले ही मर जाता है उसका सूतक माता के लिये पूरा माना जाता है । तथा पिता आदि कुटुम्बी लोगों को तीन दिन तक सूतक मानना चाहिये । यदि कोई बालक दश दिन के भीतर ही मर जावे उसका सूतक माता पिता के लिये दश दिनका माना जाता है और अन्य लोगों की शुद्धि स्नान कर लेने मात्र से हो जाती है। यदि कोई बालक दशवें दिन के अंत में मर जावे तो दो दिनका सूतक माना जाता है तथा ग्यारहवें दिन मर जावे तो तीन दिन का सूतक मानना चाहिये। यदि कोई बालक नाम करण के पहले मर जावे तो माता पिताको तीन दिनका तथा अन्य लोगों की शुद्धि स्नान कर लेने मात्र से होजाती है। तथा माता की शुद्धि एक महीने में होती है। यदि दांत निकलने के बाद किसी बालक की मृत्यु हो जाय तो माता पिता को दश दिनका सूतक लगता है। निकट के कुटुम्बियों को एक दिनका और दूसरे कुटुम्बी लोगों की शुद्धि स्नान कर लेने मात्र से हो जाती है। चौथी पीढी तक के लोग निकट कुटुम्बी माने जाते हैं। पांचवीं पीडी के और उससे आगे के लोग दूरके कुटुम्बी माने जाते हैं। यदि कोई कन्या तीन वर्ष के भीतर भीतर मर जाय तो माता पिता

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