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जैन-दर्शन
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पुरुष के कुटुम्बी लोगों को अपनी शुद्धि के लिये पुण्याहमंत्रका पाठ करना चाहिये और एकसौ आठ कलशों से भगवान जिनेन्द्रदेव का पंचामृत अभिषेक करना चाहिये । जो पुरुष सदा अत्यंत रोगो बना रहता है, मिध्यादृष्टि है, मूर्ख है, कुबुद्धि है, धार्मिक क्रियाओं से रहित है, पाखंडी है, पापी है, मिथ्या घमंड धारण करता है । स्त्री के आधीन रहता है, श्रावकों के त्याग करने योग्य पदार्थों का त्याग नहीं करता, जो पतित है, जो गोलक (पिता के मरने के बाद किसी दूसरे पुरुष से उत्पन्न हुआ ) है, ऐसे पुरुषों को सदा सूतक ही बना रहता है, इनमें से गोलक को छोड कर बाकी के पुरुष जब भगवान जिनेन्द्र देवकी आज्ञा का पालन करने लग जाते हैं सम्यग्दृष्टी और सदाचारी हो जाते हैं | अपने जाति के पंचों की आज्ञा का पालन करने लग जाते हैं तब प्रायश्चित्त लेकर अपने पापों का त्याग करने के योग्य हो जाते हैं । जिन लोगों ने दीक्षा लेकर ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया है जो यज्ञ यागादिक करने वाले हैं उनको पिताके मरनेका तो सूतक लगता है बाकी और किसी प्रकारका कोई सुतक नहीं लगता । जो गृहस्थाचार्य हैं, वा जो उनके शिष्य हैं तथा जो ऋषि वा उपाध्याय हैं और जो आचार्य पद पर विराजमान हैं उनको पिता के मरने पर भी कोई किसी प्रकारका सूतक नहीं लगता । इनमें से गृहस्थाचायें और उनके शिष्यों को स्नान करने मात्र से शुद्धि मानी जाती है। यदि किसी गृहस्थका मरण सन्यास विधि से हो तो उसके पिता आदि कुटुम्बी लोगों को केवल स्नान करने का ही सूतक माना जाता है ।
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