________________
१४०
--
-
-
जैन-दर्शन लकडीमें रूप रस गंध और स्पर्श चारों गुण हैं इसलिये उस लकडीसे बनी हुई अग्निमें भी सब गुण मानने पड़ते हैं । इसलिये यह सिद्धांत निश्चित है कि रूप रस गंध स्पर्श ये चारों पुद्गल के गुण एक साथ रहते हैं जहां एक भी रहता है वहां सूक्ष्म रूपसे वा स्थूल रूपसे चारों ही रहते हैं।
पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, शब्द, वंध, सूक्ष्म,स्थूल, संस्थान, भेद, अंधकार, छाया, उद्योत, आतप आदिसव पुगल के ही भेद वा रूपांतर है। इनको पृद्गल की पर्याय कहते हैं । पृथ्वीमें चारों गुण हैं । यद्यपि वायुमें रूप रस गंध, अग्निमें रस गंध और जलमें गंध गुण वहुत से लोग नहीं मानते तथापि ऊपर लिखे अनुसार उनमें सब सिद्ध हो जाते हैं।
शब्द भी पुद्गलसे बनता है। दो पुद्गलों के मिलनेसे शब्द उत्पन्न होता है वह इन्द्रियगोचर है, कानसे सुनाई पड़ता है इसलिये भी पुद्गल है । शब्दको पकह सकते हैं । जैसे वाजे की चूडियों में शब्द भर लिया जाता है, शब्दको रोक सकते हैं यदि चारों और से मकान बंद हो तो भीतर का शब्द वाहर सुनाई नहीं पड़ता। शब्दका धक्का बड़े जोरसे लगता है, विजली के शब्दसे चा तोप के शब्दसे बडे बडे मकान गिर जाते हैं, गर्भ गिर जाते हैं। शब्द चलता है इसलिये दूरसे भी सुनाई भी पडता है तथा विजलीसे हजारों मीलों तक पहुंचाया जाता है। वह सब काम पुद्गल का है । बहुतसे लेग पुगलको आकाशका गुण मानते हैं परन्तु वे