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जैन दर्शन
___२३५] इनके सिवाय जैन धर्म सूतक पातकं भी मानता है । जिस समय स्त्रियां मासिक धर्म से होती हैं उस समय तीन दिन का अस्पृश्य सूतक होता है। इसी प्रकार जन्म का सूतक दस दिन और मरण का तेरह दिन का होता है। इनके सिवाय भी कितनी ही विशेषताए हैं जिनका विशेष वर्णन शास्त्रों में है।
भू-भ्रमणमीमांसा कोई कोई लोग इस पृथ्वी को स्थिर नहीं मानते तथा दर्पण के समान सपाट भी नहीं मानते किन्तु गेंद के समान गोल मानते हैं। तथा सूर्य आदि नक्षत्र मण्डल को स्थिर मानते हैं। ऐसा मानने से पूर्व पश्चिम आदि दिशाओं का ठीक प्रतिबोध होता है और नक्षत्रादिकों का ज्ञान भी होता है । इसी प्रकार पृथ्वी को स्थिर न मानने से सूर्य चन्द्रमा आदि का उदय अस्त आदि का भी ठीक ठीक प्रतिबोध होता है । इस प्रकार ये लोग पृथ्वी को गेंद के समान गोल और उस को घूमती हुई मानकर कहते हैं । परन्तु उनका यह कहना सर्वथा विरुद्ध है इसी बात को आगे दिखलाते हैं।
इस पृथ्वी को गेंद के समान गोल मानना और सदा काल ऊपर नीचे की ओर भ्रमण करती हुई मानना किसी प्रकार नहीं बन सकता है क्योंकि उसके भ्रमण करने में कारणभूत कोई हेतु नहीं है। कदाचित् यह कहा जाय किवायु का स्वभाव भ्रमण करना है और वह ऊपर नीचे को भी भ्रमण करती रहती है ।