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जैन-दर्शन इस पर से यह भी समझ लेना चाहिये कि जो लोग इस पृथ्वी को सर्प के फण के ऊपर वागायके सींग के ऊपर अथवा कच्छप की पीठ पर मानते हैं। सो भी ठीक नहीं है । क्योंकि इतनी भारी पृथ्वी सिवाय स्थिर और बहुत मोटी: वायु के और किसी के आधार पर नहीं रह सकती है । इसलिये कहना चाहिये कि अनन्त आकाश के मध्य भाग में बडे योजनों से साठ हजार मोटी और स्थिर वायु के आधार पर यह पृथ्वी टिकी
इसके सिवाय यह भी समझ लेना चाहिये कि प्रत्यक्ष से जो . पृथ्वी का भ्रमणं दिखाई नहीं देता क्योंकि सबै लोगों को उसके स्थिर होने का ही अनुभव होता है । कदाचित् यह कहो कि सब लोगोंको जो पृथ्वी के स्थिर होने का अनुभव हो रहा है वह उनका भ्रम है सो भी ठीक नहीं है क्योंकि भ्रम जो होता है वह सब को नहीं होता किसी किसी पुरुप को वा किसी किसी देशवालों को होता है । समस्त देश और समस्त-पुरुषों को सदा काले उसके स्थिर होने का ही अनुभव होता है उसके भ्रमण का अनुभव नहीं होता. कदाचित् यह कहो कि अनुमान.से. पृथ्वी के भ्रमण का निश्चय हो जाता है सो भी ठीक नहीं है क्योंकि उसका अविना:भावी हेतु कोई नहीं है । कदाचित् यह कहा कि नक्षत्र मण्डल के स्थिर रहने पर तथा:पृथ्वी के भ्रमण करने पर ही सूर्य का उदय.. अस्त होता है तथा इसी प्रकार प्रातःकाल मध्याह्नकाल : वा सायंकाल होता है । इसलिये पृथ्वी के भ्रमण करने में सूर्य का