Book Title: Jain Darshan
Author(s): Mahendramuni
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 30
________________ विषयानुक्रम २३३ २३५ .. . इन्द्रियोंकी प्राप्यकारिता नैयायिकका उपमान भी अप्राप्यकारिता २०४ सादृश्यप्रत्यभिज्ञान है . .. २२९ सन्निकर्ष-विचार २०४ तर्क ... २३० श्रोत्र अप्राप्यकारी नहीं. २०५ व्याप्तिका स्वरूप ज्ञानका उत्पत्तिक्रम, अनुमान २३४ अवग्रहादि भेद २०६ लिंगपरामर्श अनुमितिका सभी ज्ञान स्वसंवेदी है २०७ कारण नहीं २३४ अवग्रहादि बहु आदि अर्थोके अविनाभाव तादात्म्य तदुत्पत्तिसे होते हैं २०७ नियन्त्रित नहीं २३५ विपर्ययज्ञानका स्वरूप २०८ साधन असत्ख्याति और आत्मख्याति नहीं २०८ साध्य २३५ विपर्ययज्ञानके कारण २०९ अनुमानके भेद २३६ अनिर्वचनीयार्थख्याति नहीं २०९ स्वार्थानुमानके अंग अख्याति नहीं २०९ धर्मीका स्वरूप २३७ असत्ख्याति नहीं २०९ परार्थानुमान २३७ विपर्ययज्ञान स्मृतिप्रमोष नहों २०९ परार्थानुमानके दो अवयव २३८ संशयका स्वरूप २१० अवयवोंकी अन्य मान्यताएँ पारमार्थिक प्रत्यक्ष २१० पक्षप्रयोगकी आवश्यकता अवधिज्ञान २११ उदाहरणकी व्यर्थता मनःपर्ययज्ञान २११ हेतुस्वरूप-मीमांसा केवलज्ञान २१२ हेतुके प्रकार २४५ सर्वज्ञताका इतिहास २१२ कारणहेतुका समर्थन २४६ परोक्ष प्रमाण २२१ पूर्वचर, उत्तरचर और सहचर चार्वाकके परोक्ष प्रमाण हेतु न माननेकी आलोचना २२३ हेतुके भेद २४७ स्मरण २२४ अदृश्यानुपलब्धि भी प्रत्यभिज्ञान २२६ अभावसाधिका २५० सः और अयम्को दो ज्ञान उदाहरणादि माननेवाले बौद्धका खंडन २२६ व्याप्य और व्यापक प्रत्यभिज्ञानका प्रत्यक्षमें अनन्तर्भाव २२७ अकस्मात् धूमदर्शनसे होनेउपमान सादृश्यप्रत्यभिज्ञान है २२८ वाला अग्निज्ञान प्रत्यक्ष नहीं. २५३ २३८ २३९ २४० २४१ २४७ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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