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जैनदर्शन
जीवित हो बच जाता है और जब मरनेकी घड़ी आ जाती है तब बिना किसी कारण ही जीवनकी घड़ी बन्द हो जाती है ।
" प्राप्तव्यो नियतिबलाश्रयेण योऽर्थः सोऽवश्यं भवति नृणां शुभोऽशुभो वा । भूतानां महति कृतेऽपि प्रयत्ने नाभाव्यं भवति न भाविनोऽस्ति नाशः १ ॥"
अर्थात् — मनुष्यों को नियतिके कारण जो भी शुभ और अशुभ प्राप्त होना है वह अवश्य ही होगा । प्राणी कितना भी प्रयत्न कर ले, पर जो नहीं होना है वह नहीं ही होगा, और जो होना है उसे कोई रोक नहीं सकता । सब जीवोंका सब कुछ नियत है, वह अपनी गति से होगा ही । २
मज्झिमनिकाय ( २|३|६| ) तथा बुद्धचर्या ( सामञ्ञफलसुत्त पू० ४६२६३ ) में अकर्मण्यतावादी मक्खलि गोशालके नियतिचक्रका इस प्रकार वर्णन मिलता है- 'प्राणियोंके क्लेशके लिये कोई हेतु नहीं, प्रत्यय नहीं । बिना हेतु, बिना प्रत्यय ही प्राणी क्लेश पाते हैं । प्राणियोंकी शुद्धिका कोई हेतु नहीं, प्रत्यय नहीं है । बिना प्रत्यय ही प्राणी विशुद्ध होते हैं । न आत्मकार है, न परकार है, न पुरुषकार है, न बल है, न वीर्य है, न पुरुषका पराक्रम है । सभी सत्त्व, सभी प्राणी, सभी भूत, सभी जीव अवश हैं, बल-वीर्य - रहित हैं । नियति से निर्मित अवस्था में परिणत होकर छह ही अभिजातियोंमें सुख-दुःख अनुभव करते हैं ।'''' वहाँ यह नहीं है कि इस शील- व्रतसे, इस तप- ब्रह्मचर्य से मैं अपरिपक्व कर्मको परिपक्व करूँगा, परिपक्व कर्मको भोगकर अन्त करूँगा । सुख और दुःख द्रोणसे नपे हुए हैं । संसारमें घटना बढ़ना, उत्कर्ष - अपकर्ष नहीं होता । जैसे कि सूतकी गोली फेंकने पर खुलती हुई गिर पड़ती है, वैसे ही मूर्ख और पंडित दौड़कर आवागमन में पड़कर दुःखका अन्त करेंगे ।" ( दर्शन - दिग्दर्शन पृ० ४८८-८९ ) । भगवतीसूत्र ( १५वाँ शतक ) में भी गोशालकको नियतिवादी ही बताया है ।
१. उद्घृत - सूत्रकृताङ्गटीका १।१।२ । लोकतत्त्व अ० २९ । २. " तथा चोक्तम्"
“नियतेनैव रूपेण सर्वे भावा भवन्ति यत् । ततो नियतिजा ह्येते तत्स्वरूपानुवेधतः ॥ यद्यदैव यतो यावत् तत्तदेव ततस्तथा । नियतं जायते न्यायात् क एनां बाधितुं क्षमः ॥"
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-नन्दीसू० टी० ।
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