Book Title: Jain Darshan
Author(s): Mahendramuni
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

View full book text
Previous | Next

Page 156
________________ षद्रव्य विवेचन १२३ उसके न तो प्रदेशोंमें ही न्यूनाधिकता होती है, और न गुणोंमें ही । उसके आकार और प्रकार भी सन्तुलित रहते हैं । सिद्धका स्वरूप निम्नलिखित गाथामें बहुत स्पष्ट रूपसे कहा गया है "णिक्कम्मा अट्ठगुणा किंचूणा चरमदेहदो सिद्धा। लोयग्ग-ठिदा णिच्चा उप्पादवएहि संजुत्ता ।।" -नियमसार गा० ७२ । अर्थात्-सिद्ध ज्ञानावरणादि आठ कर्मोंसे रहित हैं । सम्यक्त्व, ज्ञान, दर्शन, वीर्य, सूक्ष्मत्व, अवगाहनत्व, अगुरुलघुत्व और अव्याबाध इन आठ गुणोंसे युक्त हैं । अपने पूर्व अन्तिम शरीरसे कुछ न्यून आकारवाले हैं । नित्य हैं और उत्पाद-व्ययसे युक्त हैं, तथा लोकके अग्रभागमें स्थित हैं। इस तरह जीवद्रव्य संसारी और मुक्त दो प्रकारोंमें विभाजित होकर भी मूल स्वभावसे समान गुण और समानशक्तिवाला है । पुद्गल द्रव्य : 'पुद्गल' द्रव्यका सामान्य लक्षण है-रूप, रस, गन्ध और स्पर्शसे युक्त होना। जो द्रव्य स्कन्ध अवस्थामें पूरण अर्थात् अन्य-अन्य परमाणुओंसे मिलना और गलन अर्थात् कुछ परमाणुओंका बिछुड़ना, इस तरह उपचय और अपचयको प्राप्त होता है, वह 'पुद्गल' कहलाता है। समस्त दृश्य जगत् इस 'पुद्गल'का ही विस्तार है। मूल दृष्टिसे पुद्गलद्रव्य परमाणुरूप ही है। अनेक परमाणुओंसे मिलकर जो स्कन्ध बनता है, वह संयुक्तद्रव्य ( अनेकद्रव्य ) है । स्कन्धपर्याय स्कन्धान्तर्गत सभी पुद्गल-परमाणुओंकी संयुक्त पर्याय है । वे पुद्गलपरमाणु जब तक अपनी बंधशक्तिसे शिथिल या निबिड़रूपमें एक-दूसरेसे जुटे रहते हैं, तब तक स्कन्ध कहे जाते हैं। इन स्कन्धोंका बनाव और बिगाड़ परमाणुओंकी बंधशक्ति और भेदशक्तिके कारण होता है। ___ प्रत्येक परमाणु स्वभावसे एक रस, एक रूप, एक गन्ध और दो स्पर्श होते हैं । लाल, पीला, नीला, सफेद और काला इन पाँच रूपोंमेंसे कोई एक रूप परमाणु होता है जो बदलता भी रहता है । तीता, कडुवा, कषायला, खट्टा और मीठा इन पाँच रसोंमेंसे कोई एक रस परमाणुओंमें होता है, जो परिवर्तित भी १. "स्पर्शरसगन्धवर्णवन्तः पुद्गलाः"-तत्त्वार्थसू० ५।२३ । २. “एयरसवण्णगंधं दो फासं सद्दकारणमसदं ।” --पंचास्तिकाय गा०८१ । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174