Book Title: Jain Darshan
Author(s): Mahendramuni
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

View full book text
Previous | Next

Page 161
________________ १२८ जैनदर्शन वास्तविक अस्तित्व रखनेवाले पदार्थ हैं। विज्ञानने एटममें जिन इलेक्ट्रोन और प्रोटोनको अविराम गतिसे चक्कर लगाते हुए देखा है, वह सूक्ष्म या अतिसूक्ष्म पुद्गल स्कन्धमें बँधे हुए परमाणु ओंका ही गतिचक्र है । सब अपने-अपने क्रमसे जब जैसी कारणसामग्री पा लेते हैं, वैसा परिणमन करते हुए अपनी अनन्त यात्रा कर रहे हैं। पुरुषकी कितनी-सी शक्ति ! वह कहाँ तक इन द्रव्योंके परिणमनोंको प्रभावित कर सकता है ? हाँ, जहाँ तक अपनी सूझ-बूझ और शक्तिके अनुसार वह यन्त्रोंके द्वारा इन्हें प्रभावित और नियन्त्रित कर सकता था, वहाँ तक उसने किया भी है। पुद्गलका नियन्त्रण पौद्गलिक साधनोंसे ही हो सकता है और वे साधन भी परिणमनशील हैं। अतः हमें द्रव्यकी मूल स्थितिके आधारसे ही तत्त्वविचार करना चाहिये और विश्वव्यवस्थाका आधार ढूँढ़ना चाहिए। छाया पुद्गलको ही पर्याय है : सूर्य आदि प्रकाशयुक्त द्रव्यके निमित्तसे आस-पास पुद्गलस्कन्ध भासुररूपको धारणकर प्रकाशस्कन्ध बन जाते हैं। इसी प्रकाशको जितनी जगह कोई स्थूल स्कन्ध यदि रोक लेता है तो उतनी जगहके स्कन्ध काले रूपको धारण कर लेते हैं, यही छाया या अन्धकार है। ये सभी पुद्गल द्रव्यके खेल हैं । केवल मायाकी आंखमिचौनी नहीं है और न ‘एकोऽहं बहु स्याम्'की लीला । ये तो ठोस वजनदार परमार्थसत् पुद्गल परमाणुओंकी अविराम गति और परिणतिके वास्तविक दृश्य हैं। यह आँख मूंदकर की जानेवाली भावना नहीं है, किन्तु प्रयोगशालामें रासायनिक प्रक्रियासे किये जानेवाले प्रयोगसिद्ध पदार्थ हैं । यद्यपि पुद्गलाणुओंमें समान अनन्त शक्ति है, फिर भी विभिन्न स्कन्धों में जाकर उनकी शक्तियोंके भी जुदेजुदे अनन्त भेद हो जाते हैं। जैसे प्रत्येक परमाणु में सामान्यतः मादकशक्ति होने पर भी उसकी प्रकटताकी योग्यता महुदा, दाख और कोदों आदिके स्कन्धोंमें ही साक्षात् है, सो भी अमुक जलादिके रासायनिक मिश्रणसे । ये पर्याययोग्यताएँ कहलाती हैं, जो उन-उन स्थूल पर्यायोंमें प्रकट होती हैं । और इन स्थूल पर्यायोंके घटक सूक्ष्म स्कन्ध भी अपनी उस अवस्थामें विशिष्ट शक्ति को धारण करते हैं । एक ही पुद्गल मौलिक है : आधुनिक विज्ञानने पहले ९२ मौलिक तत्त्व ( Elements ) खोजे थे। उन्होंने इनके वजन और शक्तिके अंश निश्चित किये थे। मौलिक तत्त्वका अर्थ होता है-'एक तत्त्वका दूसरे रूप न होना।' परन्तु अब एक एटम ( Atom ) ही मूल तत्त्व बच गया है। यही एटम अपनेमें चारों ओर गतिशील इलेक्ट्रोन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174