Book Title: Jain Darshan
Author(s): Mahendramuni
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

View full book text
Previous | Next

Page 163
________________ १३० जैनदर्शन किसी निश्चित दिशाको गति भी कर सकते हैं और समीपके वातावरणको शब्दायमान, प्रकाशमान और गरम भी कर देते हैं। यों तो जब प्रत्येक परमाणु गतिशील है और उत्पाद-व्ययस्वभावके कारण प्रतिक्षण नूतन पर्यायोंको धारण कर रहा है, तब शब्द, प्रकाश और गर्मीको इन्हीं परमाणुओंकी पर्याय माननेमें ही वस्तुस्वरूपका संरक्षण रह पाता है। जैन ग्रन्थोंमें पुद्गल द्रव्योंकी जिन-कर्मवर्गणा, नोकर्मवर्गणा, आहारवर्गणा, भाषावर्गणा आदि रूपसे–२३ प्रकारको वर्गणाओंका वर्णन मिलता है,' वे स्वतन्त्र द्रव्य नहीं हैं । एक ही पुद्गलजातीय स्कन्धोंमें ये विभिन्न प्रकारके परिणमन, विभिन्न सामग्रीके अनुसार विभिन्न परिस्थितियोंमें बन जाते हैं। यह नहीं है कि जो परमाणु एक बार कर्मवर्गणारूप हुए हैं; वे सदा कर्मवर्गणारूप ही रहेंगे, अन्यरूप नहीं होंगे, या अन्यपरमाणु कर्मवर्गणारूप न हो सकेंगे। ये भेद तो विभिन्न स्कन्ध-अवस्थामें विकसित शक्तिभेदके कारण हैं। प्रत्येक द्रव्यमें अपनीअपनी द्रव्यगत मूल योग्यताओं के अनुसार, जैसी-जैसी सामग्री का जुटाव हो जाता है, वैसा-वैसा प्रत्येक परिणमन संभव है । जो परमाणु शरीर-अवस्थामें नोकर्मवर्गणा बनकर शामिल हुए थे, वही परमाणु मृत्युके बाद शरीरके खाक हो जानेपर अन्य विभिन्न अवस्थाओंको प्राप्त हो जाते हैं । एकजातीय द्रव्योंमें किसी भी द्रव्यव्यक्तिके परिणमनोंका बन्धन नहीं लगाया जा सकता। यह ठीक है कि कुछ परिणमन किसी स्थूलपर्यायको प्राप्त पुद्गलोंसे साक्षात हो सकते हैं, किसीसे नहीं। जैसे मिट्टी-अवस्थाको प्राप्त पुद्गल परमाणु ही घट-अवस्थाको धारण कर सकते हैं, अग्नि-अवस्थाको प्राप्त पुद्गल परमाणु नहीं, यद्यपि अग्नि और घट दोनों ही पुद्गलकी ही पर्यायें हैं । यह तो सम्भव है कि अग्निके परमाणु कालान्तरमें मिट्टी बन जायें और फिर घड़ा बनें; पर सीधे अग्निसे घड़ा नहीं बनाया जा सकता। मूलतः पुद्गलपरमाणुओंमें न तो किसी प्रकारका जातिभेद है, न शक्तिभेद है और न आकारभेद ही। ये सब भेद तो बीचकी स्कन्ध पर्यायोंमें होते हैं। गतिशीलता : पुद्गल परमाणु स्वभावतः क्रियाशील है। उसकी गति तीव्र, मन्द और मध्यम अनेक प्रकारकी होती है। उसमें वजन भी होता है, किन्तु उसकी प्रकटता स्कन्ध अवस्था होती है। इन स्कन्धोंमें अनेक प्रकारके स्थूल, सूक्ष्म, प्रतिघाती और अप्रतिघाती परिणमन अवस्थाभेदके कारण सम्भव होते हैं। इस तरह यह १. देखो, गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा ५९३-९४ । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174