Book Title: Jain Darshan
Author(s): Mahendramuni
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 172
________________ षद्रव्य विवेचन है, किन्तु सादृश्य रूपसे वस्तुनिष्ठ है; और वस्तुकी तरह ही उत्पादविनाशधोब्यशाली है । समवाय सम्बन्ध है । यह जिनमें होता है उन दोनों पदार्थोंकी ही पर्याय है | ज्ञानका सम्बन्ध आत्मामें माननेका यही अर्थ है कि ज्ञान और उसका सम्बन्ध आत्माकी ही सम्पत्ति है, आत्मासे भिन्न उसकी स्वतन्त्र सत्ता नहीं है । कोई भी सम्बन्ध अपने सम्बन्धियोंकी अवस्थारूप हो हो सकता है । दो स्वतन्त्र पदार्थों में होनेवाला संयोग भी दोमें न रहकर प्रत्येकमें रहता है, इसका संयोग उसमें और उसका संयोग इसमें । याने संयोग प्रत्येकनिष्ठ होकर भी दोके द्वारा अभिव्यक्त होता है । विशेष पदार्थको स्वतन्त्र माननेकी आवश्यकता इसलिए नहीं है कि जब सभी द्रव्योंका अपना-अपना स्वतन्त्र अस्तित्व है, तब उनमें विलक्षणप्रत्यय भी अपने निजी व्यक्तित्वके कारण ही हो सकता है । जिस प्रकार विशेष पदार्थों में विलक्षण प्रत्यय उत्पन्न करनेके लिए अन्य विशेष पदार्थोंकी आवश्यकता नहीं है, वह स्वयं उनके स्वरूपसे ही हो जाता है, उसी तरह द्रव्योंके निजरूपसे ही विलक्षणप्रत्यय माननेमें कोई बाधा नहीं है । १३९ इसी तरह प्रत्येक द्रव्यकी पूर्व पर्याय उसका प्रागभाव है, उत्तरपर्याय प्रध्वंसाभाव है, प्रतिनियत निजस्वरूप अन्योन्याभाव है और असंसर्गीयरूप अत्यन्ताभाव है । अभाव भावान्तररूप होता है, वह अपने में कोई स्वतन्त्र पदार्थ नहीं है । एक द्रव्यका अपने स्वरूपमें स्थिर होना ही उसमें पररूपका अभाव है । एक ही द्रव्यकी दो भिन्न पर्यायोंमें परस्पर अभाव - व्यवहार कराना इतरेतराभावका कार्य है और दो द्रव्यों में परस्पर अभाव अत्यन्ताभावसे होता है । अतः गुणादि पृथक् सत्ता रखनेवाले स्वतन्त्र पदार्थ नहीं हैं, किन्तु द्रव्यकी ही पर्यायें हैं । free प्रत्यय आधारसे ही यदि पदार्थोंकी व्यवस्था की जाय; तो पदार्थोंकी गिनती करना ही कठिन है । इसी तरह अवयवी द्रव्यको अवयवोंसे जुदा मानना भी प्रतीतिविरुद्ध है । तन्तु आदि अवयव ही अमुक आकार में परिणत होकर पटसंज्ञा पा लेते हैं । कोई अलग पट नामका अवयवी तन्तु नामक अवयवोंमें समवाय-सम्बन्धसे रहता हो, यह अनुभवगम्य नहीं है; क्योंकि पट नामके अवयवीकी सत्ता तन्तुरूप अवयवोंसे भिन्न कहीं भी और कभी भी नहीं मालूम होती । स्कन्ध अवस्था पर्याय है, द्रव्य नहीं । जिन मिट्टी के परमाणुओंसे घड़ा बनता है, वे परमाणु स्वयं घड़ेके आकारको ग्रहण कर लेते हैं । घड़ा उन परमाणुओंकी सामुदायिक अभिव्यक्ति है । ऐसा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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