Book Title: Jain Darshan
Author(s): Mahendramuni
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 157
________________ जैनदर्शन होता रहता है । सुगन्ध और दुर्गन्ध इन दो गन्धोंमेंसे कोई एक गन्ध परमाणु में अवश्य होती है । शीत और उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष, इन दो युगलों से कोई एक - एक स्पर्श अर्थात् शीत और उष्ण में से एक और स्निग्ध तथा रूक्षमेंसे एक, इस तरह दो स्पर्श प्रत्येक परमाणुमें अवश्य होते हैं । बाकी मृदु, कर्कश, गुरु और लघु ये चार स्पर्श स्कन्ध-अवस्थाके हैं । परमाणु अवस्थामें ये नहीं होते । यह एकप्रदेशी होता है । यह स्कन्धों का कारण भी है और स्कन्धोंके भेदसे उत्पन्न होनेके कारण उनका कार्य भी है। पुद्गलकी परमाणु अवस्था स्वाभाविक पर्याय है, और स्कन्धअवस्था विभाव- पर्याय है । स्कन्धोंके भेद : १२४ स्कन्ध अपने परिणमनोंकी अपेक्षा छह प्रकारके होते है ' : (१) अतिस्थूल-स्थूल ( बादर - बादर ) - जो स्कन्ध छिन्न-भिन्न होनेपर स्वयं न मिल सकें, वे लकड़ी, पत्थर, पर्वत, पृथ्वी आदि अतिस्थूल-स्थूल है । ( २ ) स्थूल (बादर ) - जो स्कन्ध छिन्न-भिन्न होनेपर स्वयं आपस में मिल जाँ, वे स्थूल स्कन्ध हैं । जैसे कि दूध, घी, तेल, पानी आदि । ( ३ ) स्थूल सूक्ष्म ( बादर - सूक्ष्म ) - जो स्कन्ध दिखने में तो स्थूल हों, लेकिन छेदने-भेदने और ग्रहण करनेमें न आवें, वे छाया, प्रकाश, अन्धकार, चाँदनी आदि स्थूल सूक्ष्म स्कन्ध हैं । ( ४ ) सूक्ष्म-स्थूल ( सूक्ष्म - बादर ) - जो सूक्ष्म होकरके भी स्थूल रूप में दिखें, वे पाँचों इन्द्रियोंके विषय - स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण और शब्द सूक्ष्म स्थूल स्कन्ध हैं । (५) सूक्ष्म - जो सूक्ष्म होनेके कारण इन्द्रियोंके द्वारा ग्रहण न किये जा सकते हों, वे कर्मवर्गणा आदि सूक्ष्म स्कन्ध हैं । ( ६ ) अतिसूक्ष्म - कर्मवर्गणासे भी छोटे द्वयणुक स्कन्ध तक सूक्ष्मसूक्ष्म हैं । परमाणु परमातिसूक्ष्म है । वह अविभागी है । शब्दका कारण होकर भी स्वयं अशब्द है, शाश्वत होकर भी उत्पाद और व्ययवाला है - यानी त्रयात्मक परिणमन करनेवाला है । १. "अइथूलथूलथूलं थूलं सुहुमं च सुहुमथूलं च सुमं असुमं इति धरादिगं होइ छब्भेयं ॥” Jain Educationa International - नियमसार गा० २१-२४ । For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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