Book Title: Jain Darshan
Author(s): Mahendramuni
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 33
________________ ३० संजयके विक्षेपवादसे स्याद्वाद नहीं निकला बुद्ध और संजय 'स्यात्' का अर्थ शायद, संभव या कदाचित् नहीं डॉ० सम्पूर्णानन्दका मत शंकराचार्य और स्याद्वाद अनेकान्त भी अनेकान्त है प्रो० बलदेवजी उपाध्यायके प्रज्ञाकरगुप्त, अर्चट व' स्याद्वाद शान्तरक्षित और स्याद्वाद कर्णकगोमि और स्याद्वाद जैनदर्शन दिगम्बर आचार्य ३८४ ३८६ Jain Educationa International ३९० ३९१ ३९२ ३९५ विज्ञप्तिमात्रतासिद्धि और अनेकान्तवाद ४१४ जयराशिभट्ट और अनेकान्तवाद ४१५ व्योमशिव और अनेकान्तवाद ४१७ ४१८ ४२१ ४२१ ४२३. ४२३ मतकी आलोचना ३९६ सर राधाकृष्णन के मतकी मीमांसा ३९८ धर्मकीर्ति और अनेकान्तवाद ४०० ४०२ ४०६ ४१० समन्वयकी पुकार भास्कराचार्य और स्याद्वाद विज्ञानभिक्षु और स्याद्वादवाद श्रीकंठ और अनेकान्तवाद रामानुज और स्याद्वाद वल्लभाचार्य और स्याद्वाद निम्बार्काचार्य और अनेकान्तवाद भेदाभेद - विचार ११. जैनदर्शन और विश्वशान्ति ४३१- ४३४ १२. जैन दार्शनिक साहित्य ४३५ -४४६ ४३५ श्वेताम्बर आचार्य ग्रन्थसंकेत- विवरण ४४८-४५३ संशयादिदूषणों का उद्धार डॉ० भगवानदासजीकी For Personal and Private Use Only ४२४ ४.२५ ४२८ ४३० ४४० www.jainelibrary.org

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