________________
जैनदर्शन
वेलट्टिपुत्त )के तत्त्वविषयक संशयका समाधान किया था, इसलिए लोग इन्हें सन्मति भी कहते थे। ३० वर्ष तक ये कुमार रहे। उस समयकी विषम परिस्थितिने इनके चित्तको स्वार्थसे जन-कल्याणकी ओर फेरा। उस समयकी राजनीतिका आधार धर्म बना हुआ था। वर्ग-स्वार्थियोंने धर्मकी आड़में धर्मग्रन्थोंके हवाले दे-देकर अपने वर्गके संरक्षणकी चक्कीमें बहुसंख्यक प्रजाको पीस डाला था। ईश्वरके नामपर अभिजात वर्ग विशेष प्रभु-सत्ता लेकर ही उत्पन्न होता था। इसके जन्मजात उच्चत्वका अभिमान स्ववर्गके संरक्षण तक ही नहीं फैला था, किन्तु शूद्र आदि वर्गों के मानवोचित अधिकारोंका अपहरण कर चुका था और यह सब हो रहा था धर्मके नामपर । स्वर्गलाभके लिए अजमेधसे लेकर नरमेध तक धर्मवेदी पर होते थे। जो धर्म प्राणिमात्रके सुख-शान्ति और उद्धारके लिए था, वही हिंसा, विषमता, प्रताड़न और निर्दलनका अस्त्र बना हुआ था। कुमार वर्द्धमानका मानस इस हिंसा और विषमतासे होनेवाली मानवताके उत्पीड़नसे दिन-रात बेचैन रहता था। वे व्यक्तिकी निराकुलता और समाज-शान्तिका सरल मार्ग ढूँढ़ना चाहते थे और चाहते थे मनुष्यमात्रकी समभूमिका निर्माण करना। सर्वोदयकी इस प्रेरणाने उन्हें ३० वर्षकी भरी जवानीमें राजपाटको छोड़कर योगसाधनको ओर प्रवृत्त किया। जिस परिग्रहके अर्जन, रक्षण, संग्रह और भोगके लिए वर्गस्वार्थियोंने धर्मको राजनीतिमें दाखिल किया था उस परिग्रहकी बाहर-भीतरकी दोनों गाँठे खोलकर वे परम निर्ग्रन्थ हो अपनी मौन साधनामें लीन हो गये। १२ वर्ष तक कठोर साधना करनेके बाद ४२ वर्षकी अवस्थामें इन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ । ये वीतराग और सर्वज्ञ बने । ३० वर्ष तक इन्होंने धर्मतीर्थका प्रवर्तन कर ७२ वर्षकी अवस्थामें पावा नगरीसे निर्वाण लाभ किया। सत्य एक और त्रिकालाबाधित :
निर्ग्रन्थ नाथपुत्त भगवान् महावीरको कुल-परम्परासे यद्यपि पार्श्वनाथके तत्त्वज्ञानकी धारा प्राप्त थी, पर ये उस तत्त्वज्ञानके मात्र प्रचारक नहीं थे, किन्तु अपने जीवनमें अहिंसाकी पूर्ण साधना करके सर्वोदय मार्गके निर्माता थे । मैं पहले बता आया हूँ कि इस कर्मभूमिमें आद्य तीर्थंकर ऋषभदेवके बाद तेईस तीर्थङ्कर
और हुए हैं । ये सभी वीतरागी और सर्वज्ञ थे। इन्होंने अहिंसाकी परम ज्योतिसे मानवताके विकासका मार्ग आलोकित किया था। व्यक्तिकी निराकुलता और समाजमें शान्ति स्थापन करनेके लिये जो मूलभूत तत्त्वज्ञान और सत्य साक्षात्कार अपेक्षित होता है, उसको ये तीर्थङ्कर युगरूपता देते हैं । सत्य त्रिकालाबाधित और
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org