Book Title: Jain Agam Prani kosha
Author(s): Virendramuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 7
________________ पुरोवाक् आगम साहित्य में जीव-अजीव का विस्तृत वर्णन है। इस साहित्य में से जीव राशि के वर्णन को गुरुदेव तुलसी एवं आचार्य महाप्रज्ञ ने समझकर उसकी विवेचना समय-समय पर एक क्रम में की एवं इस विवेचना को मुनि श्री वीरेन्द्र कुमार जी ने “जैन आगम प्राणी कोश” एक कोश के रूप में संयोजन करने का पहला एवं कुशल प्रयास किया है। इस कोष में मूल आगमिक नाम के साथ उसके सन्दर्भ एवं हिन्दी, अंग्रेजी और जहां सम्भव हुआ (वैज्ञानिक) तकनीकी नाम दिये गये है। जहां जहां जीव एक से अधिक नामों से जाना जाता है वे सारे नाम भी बताने की कोशिश की गई है। हर जीव का आकार, लक्षण, विवरण काफी अच्छे ढंग से प्रस्तुत किया गया है ताकि इन विवरणों को पढ़कर उस जीव की पहचान की जा सके। इस कार्य को और बल देने के लिए जीवों के फोटो (चित्र) भी इस कोश में सम्मिलित करने का एक बहुत ही मेहनती प्रयास किया गया है। इस कार्य में डॉ. दीपिका कोठारी (जैन विश्व भारतीय संस्थान में प्रोजेक्ट आफिसर) का भी अच्छा सहयोग रहा। उनके सहयोग से इस कोष को एक सुन्दर रूप मिला। इस कोष में प्रयुक्त जीवों पर नजर डालने पर ऐसा लगता है कि आगम में करीब-करीब सभी किस्मों के जीवों पर अनेकों प्रसंगों में प्रकाश डाला गया है। जहां एक ओर मानव के नजदीक रहने वाले जीवों का उपादेयता के साथ वर्णन है, वहीं तरह-तरह के पक्षियों का भी सुन्दर वर्णन है। उन जीवों का वर्णन भी है जो जंगली किस्म के हैं, जैसे-खूखार शेर, चीते, भेड़िये तो उनका भी वर्णन है जिन्हें देखते ही भय उत्पन्न होता है जैसे--अजगर, विभिन्न प्रकार के जहरीले सांप। वर्णन उन कीटों का भी है जो आम जीवन में मानव को परेशान करते हैं जैसे-चर्म कीट, दीमक, खटमल, अनाज की घुन, लकड़ी की घुन आदि। उसमें विविधता इस कदर है कि जहां एक तरफ सफेद मक्खी जो पेड़-पौधों में बीमारी फैलाती है, मकड़ियां जो जाले फैलाती हैं तो दूसरी तरफ चील, गिद्ध, उड़ने वाली गिलहरी, छिपकली जैसे जीवों का वर्णन है, लगता है आम आदमी की जानकारी के लिए कुछ भी नहीं छूटा। पानी में रहने वाले घड़ियाल, कछुआ, मछलियां, पानी के किनारे पर रहने वाले मेंढ़क, केकड़े, कछुवे आदि जीवों का वर्णन इसमें है। निश्चय ही यह सुन्दर संग्रह है और इसकी विशेषता इसलिये और बढ़ जाती है क्योंकि यह पहला इस तरह का सुन्दर संग्रह है। सुन्दर चित्रों के साथ यह कोश छपा है। मुझे आशा है कि यह कोश बहुत ही लोकप्रिय होगा व इसकी प्रेरणा से और सुन्दर कोश आगे आने वाले समय में बनेंगे। लाडनूं 5 जून, 1998 भोपालचंद लोढ़ा कुलपति जैन विश्व भारती संस्थान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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