Book Title: Isarsuri Virachit Lalitanga Charit apar nam Rasak Chudamani
Author(s): H C Bhayani
Publisher: ZZ_Anusandhan
View full book text
________________
[10]
गाथा
•
परिपालिउण सुचिरं, दाणगुणं गुण-दुमस्स मूलं च । किविण-कुढारेणं, किं छंदसि छेय छल भत्थे । ८३ धीरतं सूरतं सुयर - कोलाइएस जीवेसु सलहिज्जइ किं न पुणो, दाणं दोघट्ट -रासु ॥ ८४
यतः
सूरोसि परदल - भंजणो सि गुरुओसि भद्दजाउसि । दाणेण विणा सुंदरि, न सोहए दंत निक्करडी ॥। ८५ (क) (भद्दकुले उप्पन्नो, उत्तुंगो राय - बार- सोहणओ । दाणेण विणा सुंदरि, न सोहए दंत निक्करडी ॥८५) (ख) उड्डाह - तिरिय- भुवणे, कित्ति परिपेसिऊण दाणेण । संपइ संपइ - लुद्धस्स, कोवि तुम पगइ पल्लट्ठो ॥८६ संगह - परो समुद्दो, रसायलं पाविऊण संतुट्टो । दाया पुण उवरिं, गज्जइ भुवणस्स जलहरो ॥८७ एवं निसम्म कुमरो, दूमिय-हियओ हओव्व बाणेण । मग्गण-मुह-कोदंडय-निग्गय- अववाय-रूवेण ॥८८ चितइ हा कीस अहं, पडीओ खलु वग्घ-दुत्तडी -नाए । अहवा किरि सप्पेण गहिया छुच्छंदरी व्व जहा ॥ ८९ ॥ युग्मं अह गिलइ गिलइ ऊअरं० ॥९०
इक्कत्तो रुअइ पिया, अन्नत्तो समरतूरनिग्घोसो |
पिम्मेण रण-रसेण य, भडस्स दोलाइअं हिययं ॥ ९१
Jain Education International
दूहउ भरउँ त भारी होइ, आधउँ करउँ त झलहलइ ।
बिहुँ परि विसमउँ जोइ, नवि लेती नवि मेल्हती ॥९२
पद्धडी छंद
चितवs कुमर निय चित्ति एम बिहुँ गमि गुरु-संकडि करउँ केम, इक्कइ दिसि नरवइ - आणभंग, अन्नि-वि दिसि विणसइ कित्ति चंग ॥९३
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61