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ईसरसूरि-विरचित ललितांग-चरित्र
· अपर-नाम रासक-चूडामणि
___-सं. हरिवल्लभ भायाणी
श्री वर्धमानाय नमः ॥ "विमल-कर-कमले"ति सागरदत्त-श्रेष्ठि-रासकादौ गाथा यथा, तथात्रापि प्रथम-गाथा । पढमं पढम-जिणिदं, पढम-निवं पढम-धम्म-धुर-धरणे । वसहं वसह-जिणेसं, नमामि सुर-नमिय-पय-देसं ॥१ सिरि-आससेण-नरवर-विसाल-कुल-[कमल]-भमर-भोगिंदो । भोगिंद-सहिय-पासो, दिसउ सिरिं तुम्ह पहु-पासो ॥२ सिरि-सालसूरि-पाया, निच्चं मे होज्ज गुरुअ-सुपसाया । अन्नाण-तम-तमो-भर-हरणेऽरुण-सारहि-व्व समा ॥३ सालंकार-समत्थं, सच्छंदं सरस-सुगुण-संजुत्तं । ललिअंगकुमर-चरियं ललणा-ललियं व निसुणेह ॥४ दढ-दुग्ग-मूल-कोसीस-पत्त-नर-रयण-भमर-पक्खिलियं । रेहइ कय-सिरि-वासं सिरिवासं नयर-तामरसं ॥५
दूहउ . तिणि पुरि पुर जण-रंजवण, राणी-कमला-कंत । नरवाहण-निव नय-निउण, अहिणव-कमला-कंत ॥६
गाथा तप्पुत्तो सव्वुत्तो, सव्व-कला-कोसलेण संपुण्णो । ललियंग-नाम-कुमरो ललियंगि-विलास-वर-भमरो ॥७
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षट्पद सकल-सुयण-गुण-वट्टि-पत्त बहु-नेहहँ पूरिय दुह-दूरिय-रिउ-वग्ग-मग्ग-तम-भर-संचूरिय । भासुर-तेय-सुदित्त जित्त जिणि रवि-ससि-मंडल पयड-पयाव-पयंड सुहवि किरि लहु आखंडल अच्छरिय एह जसु देह नवि, पाव-पंक-कज्जलु किरइ जसु कित्ति झत्ति निय-कुल-भवणि कुल-पईव जिम विष्फुरइ ॥८
साटक भत्ती देव-गुरुम्मि जम्मपभिई पीई परा पाणिणो, . सम्माणं मय-णाण-ताणममलं अत्ताण सत्ताण य । सच्चं सीलमणिदियं सुविउलं भिच्चेसु वच्छल्लयं, एवं तस्स गुणोदओ-वि लहुणो कप्पूर-गंधस्स वा ॥९
शार्दूलविक्रीडितं द्वितीय नाम ।।
गाथा
एवं भूरि गुणस्स वि, तस्सासी वसणमुत्तमं दाणे । कस्स मणो कत्थ वि पुण, रई कुणइ जह सुयं लोए ॥१०
दहा कुणही-नई काँई रुचइँ, कुणही-नई काइँ सुहाइ । भमरु कमलिणि रइ करइ, दगुरु कद्दमि जाइ ॥११॥ इत्यादि ।
गाथा जो जस्स जाणइ गुणा० ॥१२ जि बहुफलेहि फलीउ० ॥१३ हंसा रच्चंति सरे० ॥१४ जिणि नवि पुज्जिउ तित्थयरु, पत्ति न दिद्धउँ दाणु । तिणि करि करि सिउँ बप्पडउ, करिस्यइ नरु अहिमाणु ॥१५ धम्मि राग सुअ-चितवण, दाण-वसण जसु होइ । माणुस-भव-सुरतरु-तणउँ, ए निश्चल फल होइ ॥१६
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गाथा इय चिंतंत कुमारो, दाण-वसण-विहिय-सहल-संसारो । .
मत्रंतो सुन्नं तो, तेण विणा तारिसं नयरं ॥१७ भुजंग प्रयात छंद
जिहाँ सत्त भू-पीढ-आवास-साला, जिहाँ गयण-संलग्ग-दुग्गा विसाला । सराराम वर कूव वावी रसाला, विणा दाणमेगं पि संसार-जाला ॥१८ जिहाँ गयह गज्जति रज्जंति राया, हया हेलि हिंडंति जव-जित्त-वाया। धरा-मंडले धीर धसमसइँ धाया, विणा दाणमेगंपि संसार-माया ॥१९ जिहाँ कव्व कोऊहलाणंद-कंदा, महा-गीय-नाएण रंजिय नरिंदा । महा-पंडिया जत्थ पाढंति छंदा, विणा दाणमेगं पि संसार-निंदा ।।२० महा-रूव-लावण्ण-लीला-विलासा, महा-भोग-संयोग-संसार-आसा । पिया-माय-भायंगणा पेमपासा, विणा दाणमेगं पि सव्वे निरासा ॥२१
कलशे षट्पद ते मंदिर गिरि-विवर नयर नव रणह लिक्खइ, दाण-धम्म-विण धम्म सहु तिम सुण्णउँ पिक्खइ । 1 xx xx xx xx ते लक्खण समुहुत्त दिवस निसि गिणई, जे ण जण-सिउं हसि मिलई (?) ॥२२
गाथा अह बहु-दाण-समागय-सज्जण-रोलंब-डुंब-झंकरिणो । तस्सेव कुमर-करिणो आसि सहा सज्जणो नाम ॥२३ सो सव्वत्थ निसजल कुमर-नरिंदस्स पहाण-पुरुसोव्व । सुह-असुह-कज्ज करणे, निवारिओ धारिओ (?) लोए ॥२४ सज्जण-नामेण पुणों, पगईए दुज्जणो-वि कुमरेण । बहु-दाण-माण-पुट्ठो, जलही जलणं व पडिकूलो ॥२५ सकल-सरूव-सुवित्तो, मिज्जंतो जणेहिँ तं कुमरो । नवि छंडइ जह चंदो कलंकमसुहेण कम्मेण ॥२६
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षट्पद कम्मि कीउ दासत्त सत्त हरिचंदि नीच-घरि कम्मि हणिउ हय कंस केसि चाणूर हरण हरि । कम्मि राम गय धाम सीय लक्खण वणि वासिय, कम्मि सीस दस वीस भुअह लंकेंस विणासीय । किया-कम्मि चंद सूरिज नडिय, भिडिय कम्मि भारथि सुहड, इम भणइ ईस दीसह दिसां, कोइ समथ वि ण कम्म भड ।।२७
गाथा जं विज्ज अपत्थासी, जमुत्तमो नीय-संगओ होइ । तं पुव्वकम्मजणियं, दुचिट्ठियं सयल जीवाणं ।।२८ अह अन्न-दिणे राया, जायाणंदो कुमार-गुण-तुट्ठो । दिसइ बहु-मुल्ल-हारं, कुमरस्स गले सुसिंगारं ॥२९ दाणं अत्थु पहाणं, कि कित्तिम-भूसणाण भारेण । इअ चिंतितो कुमरो, हार-च्चायं कुणइ सिग्धं ॥३० इय जाणिऊण तुरियं तुरियगईए स सज्जणो विजणं । गंतूण राय-पुरओ, सविसेसं विण्णवइ एवं ॥३१
पद्धडी छंद महाराय निसुणि विनतिय एग, ललियंग-कुमरवर-गय-विवेग । अइ-दाण-वसणि रत्तउ रसाल, विण -दाण गणइ सह आलमाल ॥३२ नवि जाणइ पत्तापत्त- भेउ,जं इच्छौं आवइ दिइ तेउ । विण-धण किम चल्लइ रज्जु-कज्ज, संसारिसु वल्लह अप्प कज्ज ॥३३ जं जीवह वल्लह होइ दव्व, किम किज्जइ वियरण तासु सव्व । अज्जिज्जिइ अणुदिणु महादुक्खि, ते मूढ न जाणइ जतनि रक्खि ॥३४॥ कुल विज्जा वाणि विवेग रूव, जीह विण नवि सलहइ कोइ भूव । सब-सरिस पुरिसजीह विण कहंति, जिणि अत्थि अणत्थ सुविलय जंति ॥३५ अइ-दाणिहिँ बलि घल्लिउ पयालि, अइ-माणिहिँ कौरव-खय अगालि । अइ-लोभिहिँ लंकापति-विणास, सुर-दाणव-पति पय नमइँ जास ॥३६
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अइ वज्जिय देवहिँ गीय-नट्ट, ए पयड पहुवि गि नीइ-वट्ट । जं लहइ लहु-वि पर अप्प-भाउ, ते राय-हंस नर गुरु-सहाउ ॥३७ जं अवसरि दिज्जइ अप्प दाण, तं लब्भई पर- भवि फल अमाण । अवसर-विण दिन्नउँ कोडि-मानि, तं जाण विरुनउँ सुन्नरानि ॥३८ अवसर- विण वुट्ठउ घण अणि?, अवसर-विण मिल्लिड न भलउँ इट्ठ । अवसर-विण जे जगि करइँ काम, ते लहई पुरिस-वर मूढ नाम ॥३९
दूहा जे अवसर नवि ओलखई, लखइँ न छेग-छइल्ल | ते नर- रूव निसिंग जिम, अहिणव जाणि बइल्ल ॥४० इम तसु वयण क्यण सुणवि, कुप्पिउ नरवइ एम । भाल भिउडि भीसण नयण, फुक्किय हुअवह जेम ॥४१
कुंडलीउ चित्ति चमक्किय चितवइ, नीइ-निउण-नरनाह जोव्वणए तसु पुत्त पिण, मित्त-सरिस गुण-गाह मित्त-सरिस गुण-गाह वाह जिम मिल्हिय वग्गिहिँ मग्म कुमग्ग नवि गणइ नवि नेह सवग्गिहिँ धण-जुव्वण-मय-मत्त रत्त विस-वसण निसंकिय इम चिंतंत नरिंद नोइ निय-चित्ति चमक्किय ।।४२
गाथा जाओ हरइ कलत्तं, वड्डेतो वज्जियं हरइ दव्वं । xx x x x x पुत्त-समो वेरिओ नत्थि ॥४३ हक्कारिऊण कुमरं, निय-पिय-पयकमल-भत्ति-भर-भमरं । पच्छत्रं पुहवीसो, पभणइ महुराएँ वाणीए ॥४४
चालि सुणि सिक्ख कुमर नरेस तुं अच्छइ सुगुण सुवेस । वडचित्त वसुहाँ वीर, गुरुअपणि गुण-गंभीर ॥४५ तह किम विहिइ उवएस, तुझ दिअउँ वच्छ असेस ।
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जाणइ न तुं सिउँ पुत्त, निव- धम्म-मम्मह सुत ||४६ अइमलिन भणीइ रज्ज, सहु करइ निय निय कज्ज । जिहँ गिणईं पुण्ण न पप्प, मन्नइ ति अप्पर अप्प ||४७
णि धन्नह चिंतइ दुचित्त, पर भमइँ पुहविइ दुचित्त । हिंडइ ति हिसिमिसि हेलि, पिय- मायगुरु अवहेलि ॥४८ हठि हणइँ हसि निय बप्प, कोणी जेम सबप्प । जि बप्प होइ कुबप्प, जाणि ति करंडह सप्प ॥४९ बहु - विसय - पर धणिहिँ अंध, पिय- माय - भाय गिणइ न अंध । जुगबाहु मणिरह जेम, सिद्धति सुणिआ तेम ॥५० पिय-माय गिणइ न पुत्त, जिम चुलणि चुलणीपुत्र ।
नवि भज्ज सूरियकंत, जिम हणिउ निय पिय-कंत ॥५१ सहु सयण- परियण-गुत्त, चाणक्क जिम ससिगुत्त । इम रज्ज - कज्जहिँ लुद्ध, कुण कुण भयउ न- विमुद्ध ॥५२ गय-कन्न- चंचल-लच्छि स-विसेस रज्जु कुलच्छि । नरकंत - रज्ज -पसिद्धि, सुणि सत्थि एह पसिद्धि ॥५३ तउ वच्छ एह अवत्थ, जाणइ न एम विवत्थ । जं रहइ रयणिहि दीस, निश्चित जिम जगदीस ॥५४ चालइ न चतुरिम चाइ, ते तुरिय पडई अपाइ । इम विसम रज्जह धम्म, चाहीइ पंडिय मम् ॥५५ बहु फलिय फलिय सुखित्त, रक्खीइ जिम निव खित्त । सींचीइं जिम आराम, नवि हुई तेम हराम ॥५६॥
रसाउलउ
कोस- मूलहँ कलिय, पुहवि - पइबंध-लिय, सुअ- सुसाखिहिं मिलिय, सुयण - वित्थर - वलिय, रयण-वसु-कुंपलिय, जस- कुसुम सुं भिलिय ।
नर - भसल - भिभलिय, भोग-फल-सउं फलिय,
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एरिसउ रज्ज -पायव कलिय, वसण-नदी जलि खलभलिय, नरवाहण--सुअ इम संभलिय,
भंति सयल हरिहिं टलिय ॥५७
गाथा पुत्त पहाणो वि सया, जइ एसो महियलम्मि दाण-गुणो । तह वि-हु अत्ता-सत्ती, तत्थ तुमं सोहणो नवरं ।।५८ सव्वेसु सुकज्जेसु, वि मज्झत्थ-गुणो सुहावहो [हो]इ । अइकप्पूराहारो, महवइ किं दसण-पडणस्स ।।५९
अतिहि नमंता जाइँ गुण, थड्डिम नेह न होइ । मज्झिम गुण सेवंतयाँ, कुंभ भरंतउ जोइ ॥६० अइसीइहिँ तरुवर दहइँ, अइ-घण वुट्टि दुकाल । अइदानिहिँ अणुचितपणउं, अइ सहु आल-झमाल ॥६१ अतिहि न भाल्ला वरसणा, अतिहि न भल्ला धुप्प । अतिहि न भल्ला बुल्लणा, अतिहि न भल्ली चुप्प ||६२
गाथा इणमेव सुपंडिच्चं जं आयाओ वउ वि विसेसेण । जह पुत्त पुत्त- पुव्वं, पभणंति विसारया एवं ॥६३
कुंडलीउविण-अज्जण जे वय कर, विण-सामिय बहु रोस । अतुरपणि अवसर विसरि, जं वियरइँ निय कोस, जं वियरइँ निय कोस सोस बहु करइँ इकल्लउ, ते इत्तर अणुचित्त मूरिख धुरि जाण पहिल्लउ, खजंतां खय जंति मेर महियर सम बहु-धण, पइदिणि दंड-समाण जेउ वियरण विण-अज्जण ॥६४
गाथा पिय माय भाय जाया, जायाइँ जणाण ताव सम्मा । जा विप्फुरइ सुवित्तं, विउलं विउलालए नियए ॥६५
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[8] वित्तं पि तम्मि काले, विहि-वसओ वसणढुक्किए पुरिसो । गय-तेयं पिव पुरिसो, पडिभासइ जह य इंगालो ॥६६ ता पुत्त नियय कुल- रज्ज-सार-निव्वाह-खम-गुणं । (सुगुणं) साहारणं समाणं, समायरसु सव्व सुहकरणं ॥६७ अह सुणिय राय-सिक्खं, कुमरो चिंतइ हियय-मज्झमि । धण्णोहं पुण्णोहं, जेणमिमं सिक्खए ताउ ॥६८ गुरु-पियर-सिक्खणाओ, नत्थि परं अमियमिह जए पवरं । तस्सोपेक्खा समावि नत्थि परं कालकूड-विसं ॥६९
एक नियजणय अनि वली, सिक्ख दीइ गुरु जेम । संख अनिइ खीरइ भरिउ, इक सुरहउ नि हेम ॥७० अमिय-रसायण-अग्गली० ॥७१
वस्तु इम पसंसिय, इम पसंसिय, पुज्ज पिय-पाय, रायहँ घरि रमलि-रसि, रायहंस-समवडि कुमर हरि, तिगि चच्चरि चहुटइ रमइ, भमइ खिल्लइ सुपरि परियरि तणु वियरण-वसि वित्थरिउ, पुणु झुणि तसु अववाउ मुहि तिन्हा बुंठा परइ, मग्गण एह सहाउ ||७२
अडिल्ल-दूहा मग्गण जण जंपति कुमरवर, तुअ सम कोवि नहीँ जगि नरवर । दाणि दलिद-डारण दाणेसर, अढलिक अकल अंगि अलवेसर ७३
हाटक छंद अलवेअर अणुपम अवनि अनग्गल अचल-दाण गुणवीर, जसु कर किरि अंब सदा-फल कलरव मग्गण कोइल कीर, कप्पतरु-जमलि हुई जग मज्झिहि हुअउ सु केम करीर, ललियंग-कमर वर सणि विण्णत्तिय समरथ साहस-धीर ७४
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चिंतामणि पत्थर किम तुल्लइ कहु, किम हंसकाय भम भुल्लइ, सायर होइ केम छिल्लर छलि, रंक सु केम तुलइ भूवइ बलि ॥७५
छंद भूवई बल तुलइ केम बल रंकह पंक हुइ किम वारि, सहसकर-करि किम उप्पम दिज्जइ भद्दव निसि अंधारि, गद्दह किम नाग माग किम ऊवट कायर किम नरवीर, ललियंग-कुमरवर सुणि विण्णत्तिय समरथ साहस-धीर ||७६ ससहर-करि किम घम्मह उप्पम, अमियकुंड किम हाला-सम जिणवर-जाख बिहु बहुअंतर, पित्तल हेम जेम घण अंतर ॥७७ अंतर घण सुयण अनइ दुजण-जण अंतर सरसव मेर, अंतर जिम मुगति महासुखसंपति बहुभव संभव फेर, अंतर जिम बहु लवण कप्पूरह अंतर जिम पय खीर, ललियंग-कुमरवर सुणि विण्णत्तिय समरथ साहस-धीर ॥७८
अड्डिल अंतर जिम पंडिय-जण मुक्खह, अंतर जिम नारयगइ मुक्खह, अंतर जेम दासि कुल-वहुअह, अंतर इक्क अनि बहु-बहुअह ।।६९ बहु अंतर बहुइअ इक्क जिम अंतर बंभण जिम सोवाग, अंतर आयास धरणि जिम अंतर अंतर सल्लरि साग, अंतर जिम साधु अनि सावयजण अंतर सायरतीर, ललियंग-कुमरवर सुणि विण्णत्तिय समरथ साहस-धीर ।।८०
कलशषट्पदः सायर सवि झलहलइँ चल िजव अट्ठ कुलाचल, धरणि धरइ आकंप कप्पि कंपइँ विसुराचल । चंद नविअ अंगार सूर सिरजइ तमभर (?) धाराधर नवि झरई धरइ नवि सेस सयल धर, सुपुरिस ससत्ति तोइ नवि चलइँ, निय-अंगीकिय-गुणवगुणि ललियंग-कुमरवर वीनती एह अम्ह वलि वलि निसुणि ॥८२
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गाथा
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परिपालिउण सुचिरं, दाणगुणं गुण-दुमस्स मूलं च । किविण-कुढारेणं, किं छंदसि छेय छल भत्थे । ८३ धीरतं सूरतं सुयर - कोलाइएस जीवेसु सलहिज्जइ किं न पुणो, दाणं दोघट्ट -रासु ॥ ८४
यतः
सूरोसि परदल - भंजणो सि गुरुओसि भद्दजाउसि । दाणेण विणा सुंदरि, न सोहए दंत निक्करडी ॥। ८५ (क) (भद्दकुले उप्पन्नो, उत्तुंगो राय - बार- सोहणओ । दाणेण विणा सुंदरि, न सोहए दंत निक्करडी ॥८५) (ख) उड्डाह - तिरिय- भुवणे, कित्ति परिपेसिऊण दाणेण । संपइ संपइ - लुद्धस्स, कोवि तुम पगइ पल्लट्ठो ॥८६ संगह - परो समुद्दो, रसायलं पाविऊण संतुट्टो । दाया पुण उवरिं, गज्जइ भुवणस्स जलहरो ॥८७ एवं निसम्म कुमरो, दूमिय-हियओ हओव्व बाणेण । मग्गण-मुह-कोदंडय-निग्गय- अववाय-रूवेण ॥८८ चितइ हा कीस अहं, पडीओ खलु वग्घ-दुत्तडी -नाए । अहवा किरि सप्पेण गहिया छुच्छंदरी व्व जहा ॥ ८९ ॥ युग्मं अह गिलइ गिलइ ऊअरं० ॥९०
इक्कत्तो रुअइ पिया, अन्नत्तो समरतूरनिग्घोसो |
पिम्मेण रण-रसेण य, भडस्स दोलाइअं हिययं ॥ ९१
दूहउ भरउँ त भारी होइ, आधउँ करउँ त झलहलइ ।
बिहुँ परि विसमउँ जोइ, नवि लेती नवि मेल्हती ॥९२
पद्धडी छंद
चितवs कुमर निय चित्ति एम बिहुँ गमि गुरु-संकडि करउँ केम, इक्कइ दिसि नरवइ - आणभंग, अन्नि-वि दिसि विणसइ कित्ति चंग ॥९३
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[11]
भंज जे भुजवलि भूव-आण, खंडइ खल खित्ति जे गुरुअ- माण । छंडइ छलि छोत्तिए कुलह नारी, विण-सत्थि कहिज्जइ तिन्त्रि मारि ॥ ९४ आज्ञाभङ्गो नरेन्द्राणां० ॥
पिण किज्जइ कारण उच्च कज्ज, जिह करताँ नावइ लोय लज्ज । सक्कर खंताँ नइ पडइँ दंत, तिहँ जडिय न मूलीय मंत तंत ॥ ९५ जिणि पसरई चिहुँ दिसि चाय- कित्ति, तिणि वंछइ मूढ सु कुण अकित्ति । जं दाण भणिज्जइ जग पहाण, तिहि करइ किसउँ नरराय आण ॥९६ जं दिताँ होइ सुहु अउ ( इ ? ) अम्ह, रूसउ जण दुज्जण करउ नम्म । खज्जंत दियंताँ जाइ लच्छि, सा जाउ सुजिनी वलि न पुच्छि ॥ ९७ इम चितवि चालिङ चतुर कुमार, दिइ पुणरवि दुत्थिय दाण- सार | धण कंचण कप्पड अइ अपुव्व, जं चडइ हत्थि तं दियइ सव्व ॥९८ जं जीवह जारिस सहज भाउ, नवि मिल्हइँ ते तिम निय-सहाउ उक्कालिय जल जिम सीय होइ, जगि नहीं सहज पडियार कोइ ॥ ९९ जइ वास सयं गोवालीया, कुसमणिय बंधइ मालिया । ताकि सहाव-धिय-गंधिया, कुसमेहिँ होइ सुगंधिया ॥ १०० पद्धडी छंट
इम जाणि वलि कुपिउ नरेस, दिद्धउ डसिआहार तसु विदेस । रक्खिय रोसग्गलि राय- बार, जिहँ हुंतर अणुदिन नवि निवार ॥ १०१
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वस्तुः
कुमर पिक्खिय कुमर पिक्खिय राय कुपसाय,
चितइ इम नियह मनि, करउँ केम अह माण - कज्जिहिं,
जउ आइय मुझ वसण, नवि कावि नहीं मुझ ईह रज्जिहिं, अविणय अनयत्तण रहिय, जइ एमुसुण दोस (एम्बइँ पुण ?) लउ मइँ इह रहिवउँ नहीं, आइ न होइ न जोस ? ॥१०२
गाथा
वाहि- दलिद्द- मलिना, वि माण- वसणागमे मणस्सीणं नन्नत्थ सुहं सयलं, देसंतरं गमण-विमणाणं ॥ १०३
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[12]
यतः दीसइ विविहच्चरियं ॥१०४
पद्धडी चल्लिउ कुमर निसि एम चिंति, कमलुज्जल-कोमलकाय-कंति । पक्खरिउ पवण-जव वर-पवंग, तसु उप्परि आसण-ठाण-रंग ।।१०५ चडि चल्लिउ चंचलि तुरय-वेग, मण पवण सुयण बल हूअ अणेग । दिइ देविय देवी वाम सद्द, ललियंगकुमर तुम्ह होइ भद्द ॥१०६ भइरव भय वारइ दहिणंगि, चिव्वरिय चतुर पणि चवइ अंगि। राया रायत्तण कहइ वाम, लालिय सवि टालइ वेरि ठाम ॥१०७ दाहिणि दिसि हुइ हणुमंत हक्क जाणि कि जय कुमर पयाण-ढक्क । सारंग नाम बहु अत्थ होइं, ते सयल सबल दाहिणइ जोइ ॥१०८ हणमंत हरिण चातक चकोर, बग सारस सारय हंस मोर। सावड सुणय-वि भला एअ, जिम-बुल्लिय आगम-ग्रंथि जेअ ॥१०९ करि करिय कुमर करवाल मित्त, जे सबल सया उज्जोय-चित्त । भय-भीडई सारइ बहु अ काम, जिणि करि सूरत्तण लहइ नाम ।।११० ते समरथ सुदढ सहाय एक तसु वल-दलि चल्लिउ कुमर छेक। तसु गमण मणिगिय बुद्ध जाम, सज्जण पुण पुट्ठिहि थियउ ताम ।।१११ अप्पा गुण दोस मुणइ स अप्प, जिम बुज्झइ सप्प हत्थि सिण सप्प । तिम सज्जण दुज्जण निय-सुहाई, सुपुरिस सच्छह छिण-कच्छ छाइ॥११२ उत्तम नवि करइ वियार एम, पर-अप्प-विगति नवि रोस पेम । सम-सत्तु-मित्त उत्तम चरित्त, सम-विसम-समय पर-कज्जि चित्त ॥११३
दूहा सज्जण अतिहि पराभविउ, मनिहिँ न-आणइ डंस | छेदिउ भेदिउ दूहविउ, मधुरउ वाजइ वंस ॥११४ उवयारह उवयारडउ, सव्वह लोय करेइ० ॥११५
__ षट्पदः नवि जंपइ परदोस अप्प पर-जणु-गुण वच्चइँ
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[13] धण जुळ्वण - गुरुमाण -दाण-माणिहिँ नवि मच्चइँ अप्प धरइँ संतोस तोस मन्नइँ पर रिद्धिहिँ परपीडइ परजलइँ टलइँ पर-कूड कुबुद्धिहिँ उवयार करइँ उवयार विण, अप्प पसंस न निंद पर, इम भणइ सुत्तमुत्तावली, एरिस, सुपुरि[स] चरिय वर ॥११६
गाथा सुपुरिस-चरिय- पवित्तो, कवडुज्झिय सत्तु- मित्त-सम-चित्तो । अणुगय वच्छल्लाओ, न निवारइ तं तहा कुमरो ॥११७ जं जेण कियं कम्मं, अन्न--भवे इह-भवे सुहं असुहं । तं तेण भोइअव्वं, निमित्त-मित्तं परो होइ ।।११८ अह तेण कारणेणं, कुमरो पुच्छेइ तमणुगय भिच्चं । साहसु सुह पंथ कइ, कमवि कहं सवण सुह-हेउं ।।११९ ता झत्ति सुयण-नामो, निय सहज-गुणाउ वियरिय-विराडो । जंपइ कहु देव तुम, कि पि वरं पुण्ण पावाओ ॥१२० ता सहसा ललियंगो, विम्हिय-हियओ सुवज्जरइ एवं । रे मुद्ध मूढ तुमए किं भणियं भुवण पयडमिमं ।१२१ अबला-बाल-गुआलय-हालिय-पमुहाण जं फुडं लोए। जं धम्माउ जउ पुण, खउ तहा णव पावाओ ॥१२२
सुयण पयंपइ सच्च पुण, जे मूरिख देव (?) । पिण धम्माधम्मह तणां, कहि किम जाणइ भेव ॥१२३ कुमर भणइ सुणि रे सुयण, वयण अभिय मि मुज्झ । जं तुझ आगलि फुड कहउँ, धम्मह एह जि गुज्झ ।। १२४ जीव-दया जिण-धम्म पुण, उत्तम-कुलि अवयार । सुह-गुरु चरणकमल वली, दुल्लह रयण चियारि ।।१२५ पुण्य-हीण जे जगि पुरिस, पुण नवि पामई एह । रज्जु रिद्धि सहु सुअणजण, रूव-रमणि गुण--गेह ।। १२६
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[14] सच्च-वयण गुरु-भत्ति पुण, नइ दुत्थिय-जण-दाण। धम्म एह जिणवर तणउ, बहु-फल फलइ अमाण ॥१२७
यतः
धम्मेण धणं व ० ॥१२८१ .................अत्थमण मत्थ दिवस बलो। रयणबल वसग्ग सुद्दा, अवि तारा विफुरंति जए ॥ १५१ समय-वलाओ काले, अहम्म-करणं सुहावहं होइ। तस्स बलाभावेणं, धम्मोऽरम्मो हुइ असुकओ ॥१५२
अडिल्लमडिल्य धम्मवंत तुअ एह अवच्छह छंडि कुमर तिणि धम्म विवत्थह । समय एह तुअ करण अहम्मह, अज्जि बहुल धण करण अहम्मह ।।१५३ कुमर भणइ सुणि सुयण सुपावह, वयण सुणउँ नवि एह सुपावह । वलि वलि बुल्लि म अलिय सुपावह, जं धम्मिहिं खय जय पुण पावह ॥१५४ धम्म करताँ जित्त न होइ, जि तिहँ अंतराय फल कोइ। किं न होइ खज्जता सक्कर, दसण-पीड विचि आविइ कक्कर ॥१५५ नाय-सरिस अज्जिज्जइ लच्छी, तं नियाणि जिम होइ कुलच्छिय । परतिय-पेम जेम जसु अज्जण, कुल-कलंक अवजस जण लज्जण ।। १५६ सुन्नरानि-रूनउँ कुण कज्जिहिँ, कज्ज कि कलियलि किज्जिहि । गाम-बुड्ढ नर पुच्छउ कोइ, भंजई वाय नाय गुण केइ ॥१५७ जउ इम कहइ पुण जगि रूडउँ, तउ तइ लवीउँ सहू जं कूडउँ। तासु पाव छुट्टण छल दक्खउँ करिसि किसुउँ पणि झुणि तुअ अक्खडं ॥१५८ सुयण भणई सुणि नरवर-वंदण, अम्ह वयण सीयल जिम चंदण । भल्लउँ भणिउँ मुझ पण इम जाणउँ, हुं सेवक इणि भवि तुं राणउ ॥१५९ जइ विवरीय वयण इह सामिय, तउ तुं निच्च भिच्च हुं सामिय।
१. १२९थी १५१नी गाथाना पूर्वार्ध सुधीनो खंड नथी ।
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इम विवदंत पत्त इक गामिहिँ, भुंछ लोय फल हणिय कुठामिहि ॥१६०
अथ कांयाई बोलीतउ ते तिणि स्थानकि बेउ आव्या, ते भुंछ लोकाँ मनि न सुहाव्या कहउ उदेशन पूछौं कांई एक अपूर्व वात भलउँ सिउँ पुण्य किं पाप ॥१६१
अडिल्लई मिश्र बोली तउ ते बोलइँ भुंछ मुछाला, माणस रूपि जाणि करि छाला । कहउ बाप किसिउँ मागु जाप अह सिउँ जाणउँ पुण्य कइ पाप । १६२
अथ सूड म्हइ करसण कराँ, खेत्र पाणी-सँ भएँ. कास बालाँ, डुंगरि दव परजालाँ, वालराँ वावा, घणा दिन कुँ लूणी तवावाँ, भइसि चूषाँ, बोलाँ गाढाँ, जिम्मा कद्दन ताढाँ, मोट द्रह तलाव सोसाँ, बिलाइ कूकर पोसाँ, ढोर चारों, साप मारा, वड-पीपला भखाँ, लूणां नीला, करीं सूडा बोलाँ, कूड गांडा वाहणि खडाँ, अनड संडादिक नडाँ, आपा पणी खेत्र पालाँ काजि झंबि झंबि पडाँ, मधुमीण संचाँ, वाछडा पाडाँ दूधि वंचाँ, सांड गाइ-तणा कर्णकम्बल छेदाँ, ते बयलि हलि गाडइँ वाहणि भार-सुँ गाढाँ खेदाँ, कुसि कुद्दाल हल हथीयार वहाँ, राति दीह खेत खले माले रहाँ, पीयाँ पर धल छासि, वसाँ आपणइ सासि, धरमउ कुँ न जाणों नाम, कराँ सदा काम, खाउँ खीच, टलइ घींच, इम सुखइ भरौं पेट, म्हाँकि सुँ पूछउ रे भोलाँ, पाप-पुण्य-की नेट ॥१६३।।
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गाथा इअ निसुणिऊण कुमरो, पामर-वयणाइँ अरुड-बरडाइँ । चिंतइ अहो किमेवं, पुरओ एआण जं नाओ ॥१६४ जं पुण्ण-पाव-लक्खण-लखण रहियाण नायपडिवत्ती। तं कणय-भल्ल-भल्ली, जंबाले जोइया विहिणा ।। १६५ जइ बहु अरंसु तिल्लं ता किं लिप्पेइ गिरिवरे मूढो । जइ बहुवीयं सगिहे, ता किं को ऊसरे वचइ ।।१६६ जइ चंदणं घणं, ता कि कोई दहइ कदन्न-वागस्स । जइ खीरं बहुअअरं, पाइज्जइ किं भुअंगस्स ।।१६७ (जइ) कणय-रयण-माला, ता को बंधेइ कायकंठम्मि । जइ बहु-दुग्गल पयरो, किं किज्जइ वाडि-परिहाणं ।।१६८ किं बहु-बुहजण-नाओ, जइ किज्जइ मुक्ख-पामर-जणेहिँ । ता वुच्चत्तपरतं, जायं उवहाणयं सच्चं ॥१६९ जिहिँ कप्पिय कप्पूर-तरु, किज्जई कयरह वाडि। सहिय ति निग्गुण-देसडइँ, किं न पडइ नितु धाडि ॥१७० जिहाँ लीला काएण-सुँ, कोइल कलिरव मोर। सहिय ति निग्गुण- देसडइँ किं न पडइ नितु चोर ।११७१ जिहँ मयगल-मय-मत्त-सम, कारिज्जइ खर-कज्ज । सहिय ति निग्गुण-देसडइँ, किं न पडइ घण-विज्ज ॥ १७२ जिहँ समसरि तोलइ तुलइँ, कणय कपासकपूर। सहिय ति निग्गुण-देसडइँ, किम उग्गइ नितु सूर ।। १७३ जिहँ कोइल-कुलकलियलह, करइ ति काय परिक्ख । ते वण वणदव कवलिसुं, कवलिय किं न सरिक्ख ।।१७४
गाथा इय चितिउण कुमरो, जावलिउं तुरियतुरयमारूढो । तप्पिट्ठि-संठिओ पुण, सगव्वमेयं भणइ सुयणो ॥१७५
वस्तु :
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तव पर्यपि तव पर्यपि सुयग्ण सुवहास, कासु जल कित्ति वर, कुमर सच्च धण धम्म कामिय, धम्मपभाविहिँ सहु वली, रज्ज-रिद्धि तइँ तुरीय पामिय, मिल्हि तुरय मुझ हुउ तुरिय, सेवक जि आजम्म, कुमर भइ सिउँ रे वली हुअइँ उवरिआ कम्म || १७६ दूहउ
रज्ज रमा रामा सुधण पाणह - सुं जइ जाइँ |
तउ पणि वाचा आपणी, सुपुरिस ऊरण थाइँ ॥ १७७ षट्पद वचनि छलिउ बलिण्ड वचनि कुरव कुल खोयु ॥ १७८
दूहउ
गय घोडा थोडा नहीं, रह पायक बहु संख ।
घणीवार इणि जीवि सहु पाम्या वारि असंख ॥ १७९
गाथा श्री उपदेशमालायां
पत्ता य कामभोगा० | १८०
जाणीय जहा भोगिंद संपया० । १८१ पद्धडी छंद
घोडानुं कहि सुं गजउं मूढ, संभलइ वत्त जइ बहु-अ गूढ । इणि जीव अणंतीवार एह. पत्तां धण जुळवण सयण गेह ।
नह दंत मंस केसट्ठिरतं, गिरिमेरु सरिस इणि जीवि चत्त । हिमवंत - मलय - मंदर - समाण, दीवोदहि- धरणि- सरिस प्रमाण ॥ १८३
आहारि न पहुउ जीव एहि, भवि भवि बहु परि नव-नवइ देहि ।
थण खीर- नीर पिद्धां जकेवि, सायर सरि सरिय न पार ते वि ॥ १८४
-
बहु कामभोग सुर नरविलास, केवली न जाणइ पार तास ।
किणि कारण तउ दुख धरइ जीव, बहु पडिय अवस्था होइ कीव ॥ १८५
गाथा
जं चिय वइणा लहियं ० ॥ १८६
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पद्धडी संपइ जसु हरिस न होइ चित्ति, विहलिय-वेला नवि सोगदित्ति । रण संकडि लिइ नवि पुट्टि घाउ, जणणी जणि परिस पुरिस-राउ ।।
दूहउ जिणणा जिणा म गव्व करि० ॥१८८ सीहिणि एक जि सीह जिण छ० ॥१८९ लिउ सुयण तुरंगम एह तुज्झ दिउ देव सेव-आएस मुज्झ मुझ जाउ मल जिम सहु असार, रहु रस जिम सम-दम-सत्त-सार ।।१९० इम कहिय सु अप्पिउ तुरय तासु, पुट्ठिहिँ थिउ कुमर सु जेम दास । चल्लंतउ चंचलि चडिउ सोइ, हठि हसइति पच्छलि जोइ जोइ ।। १९१ मिल्हंतउ जे नवि पुहवि पाउ, बिसतु बहुअ-विचि-जमलि राउ । पहिरतउ पटंबर पवर चीर, सुहसयण सेज वामंग वीर ।। १९२ माणसु अडागर बहुअ पान, गावताँ सुगायण गीयंगान । करताँ बहु-मग्गण जय-सुसद्द, वज्जंता बेल्ल-नीसाण-नद्द ।। १९३ चडतउ वरचंचलतर-तुरंगि, नच्चंताँ निउण नव पत्त रंगि। चालता चतुरतर पत्ति-घट्ट, हीसंताँ हिसिमिसि हयह थट्ट ।।१९४ तिग-चच्चरि-चउ वट-जूअ-ठामि, इम रमतु जे लइ कुमरनामि । ते पिसुण-पुट्ठि पुलतउ पलाइ, जं करइ दैव सु जि होइ जोइ ।। १९५
षट्पर यत:-किणिहि कालि वर तुरय मिल्हि चडीइं सुखासणि० ॥१९६
गाथा
अणुधावमाण-कुमरं, मग्ग-समावेस-सेय-मल-विगलं । पच्चारतो पइ पइ, पभणइ सुयणो पुणो एवं ॥ १९७ किं कुमर तए दिटुं पच्चक्खं धम्म-पक्खवाय-फलं । तो अज्ज-वि चय चाहिय, धम्मस्स कयग्गहं विहलं ॥१९८ 'वंचसु लोगे वहबंधणेसु मा कुणसु किवं किवालुव्व । नो अस्थि कत्थवि तुमं, को अन्नो जीवणोवाओ ॥ १९९
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[19]
ता झत्ति कुमर-राओ जंपइ रे दुट्ठ धिट्ठ पाविट्ठ। तुह सज्जणाभिहाणं, अभियरखा जह विसस्सेव ॥२०० किंचेवं दुच्छुद्धि, चितो वह-बंधणाईएसु पुणो । वाहाओ -विय अहिओ, पावेणं जह सुयं लोए ।।२०१ पावस्स कारगाओ, सुनिंदणिज्जो कुबुद्धि-दायारो । इत्थ कहेमि कहं सो, सुणइ सुइमं सव्वहा सुहियं ।।२०२ ।। जह कोवि वणे वाहो, कण्णंताकिट्ठ-दिड्व-कोदंडो। घायग्ग--गयाए पुण, हरिणीए पत्थियो एवं ॥ २०३ खणमेत्त मेव चिट्ठसु, वाह वयामत्ति ताव निय ठाणे । लहु-लहुअ-अपच्चाई छुहाए बाहिज्जमाणाइँ ॥ २०४ तेसिं थण-पाणमहं, कारित्ता जाव तुअ समीवम्मि । नो एमि तओ पट्टा, पुणरवि तेणेव वाहेणं ॥ २०५ जइ नो जइ एसि तओ, किं ता बंभ-त्थीय-पमुह-वह-जणियं । पावं पवणमाणा, नो मन्नइ तं तहा वाहो ।।२०६ ता पुणरवि सा हरिणी, जंपइ नो एमि जइ तउ सुणसु । वीसत्थस्सुवएसं, जो देइ, नरो अहिय-कारं ॥२०७ पावेण तस्स तुरियं लिप्पामि पुत्ति सा गया तुरियं । निय-वयण लुद्धा, समागया पुण भणइ एवं ॥२०८ छुट्टामि कहं सुपुरिस, तुह-बाण-पहार-मार-वाराओ। तो लुद्धउ विचिंतइ, कि एयाए पुरा भणियं ॥२०९ वीसत्थाए इमाए, पसु निहणि जं च देमि कुवएसं । ता पावाओ पावो छुट्टेमि कहं....।।२१० चतुर्भिः कलापकम् । इअ चिंतिऊण वाहो, विम्हिय-हियओ पयंपए एवं ।। भद्दे मं दाहिणओ, गच्छसि ता गच्छ... ... ॥२११ एवं तहत्ति भणिया, गया गिहं सो-विवाह-अवयंसो। ता तुज्झ कहेमि इमं, किं देसि कुपाव पावमई ।।२१२
इति हरिणी-दृष्टान्तः ॥
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[20] इक -मीक्कारणि एक, अइ-करइँ पात्र अनेक । हिंसंति जीव अणाह, ते हुसइँ केम अणाह ।।२१३ जंपति इक बहु कूड, ते हुइ दुह-गिरि-कूड। हठि हरईं पर-धण लोभि, लज्जवि अप्प-कुलोभि ।।२१४ लोपइँ ति लंपट शील, तिहँ किसिय निय-गुरुशील । अइ-करई बहु आरंभ, तिहँ धरइँ धुरि संरंभ ॥२१५ मनि धरई बहुअ कसाय, तसु छेहि कडुअ कसाय । वंचइ ति पियगुरुमाय, जसु माय किहँ नवि माइ ॥२१६ इम अछइँ बहुअर पाप, जीहँ तणउ कलि बहु व्याप । न करइँ ति कारणि धर्म, जोदिइ सवि शिव-शर्म ॥११७ अछइ निग्गुण देह, तसु तणउ लाहुसु एह । किज्जइ जि पर-उवयार, संसारि इतुं सार ॥११८ विहलिय विविहि वसि साहु, नवि करइ कम्म असाहु । छुहपीड-पीडिय-हंस, नवि करइ कीडिय हिंस ॥२१९ कापुरिस कुवसण कूडि, लिज्जइ सु लहु पर-कूडि। छलि छलइ कोइ न छेक, सुजिलहइ धम्म-विवेक ।।२२० सुणि सुयण सच्चह सार जगि धम्म इक्क जि सार । नवि मुणई गाम गमार, तउ धम्म सिउँ ति असार ॥२२१ महु महुर दाडिम दाख, बहु-फलिय सुम सय-साख । तिहँ करह गय मुह मोडि, तउ लग्गसिउँ तिणि खोडि ॥२२२
यथा यथा बहिर गीय नवि सुणिउ भमर चंपकि न बट्ठउ, सोल कला-संपन्न चंद अंधलइँ न दिट्ठउ । कर-हीण' पंगुलइँ कढिण कोदंड न ताणिउ, तरुणी-कंठ विलग्गि तुंड-रसभेय न माणिउ । किव हणि कुजाण-कुविलक्खणह, कवियण जाणइँ जं न मण । इम कहि गद्द गुणवंतयह, जग-उप्परि किम जाणइ गुण ।।२२३
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[ 21 ]
इक धम्म अहिs मित्त, जसु सुहिय निम्मल चित्त । जिहँ थकु हुइ सुभद्द, निदीइ ते किम भद्द ॥ २२४ इम सुणिय नित्र सुअ-वयण, तव सुयण विहसियवयण । बुल्लइ ति बोल कुबोल, जाणि किं पड़इ गिरि- टोल ॥२२५ दीसंति तु बहु भद्द, संपइ न मिल्हसि वद्द | जइ मूढ तुं नवि होइ, पहाण सच्चउँ सोइ ॥ २२६ जह केवि गाम - गमार, जणणी- भणिउ इकवार ।
गहियत्थ कहमवि पुत्त, मिल्हविउ नवि कुल-पुत्त ॥२२७ अभया जणणिअ पुच्छि, विलगउँ ति संडह पुच्छि ।
करि धरिय निय-बल-माणि, तिहँ लोय मिलिय अमाणि ॥ २२८
तसु मत्त-लत्त - पहारि, पडिया सु दंत विचारि ।
मिल्हि न पुच्छ सहूढ तिम तुम - वि होइसि मूढ ||२२९ कुलपुत्रकथा
पुच्छइ सुयण कहि देव, सिउँ करिसि पणि पुणि हेव ।
विण नयण- कमल न अस्थि, तुअ किंपि सत्थि सुअत्थि ॥२३० अमरिस - भरियह ती व्यणि, हिं कुमरवर तीणि ।
तसु वयण अंगिकार, किय जेम करवत - धार ॥ २३१ पवित्र वाचावीर, ललियंग साहस - धीर ।
I
सुह सुयण इक्किहिं गामि, पन्नउ ति साखा - नामि ॥ २३२ भवियव्व-कम्म-नियोगि, पुच्छइ ति गाम नियोगि पुण कहिउ तिम तिणि वार जिम पुव्व-गाम-गमार ॥२३३ अह चलिय पुण दुइ मग्गि, जंपिइ सुयण तसु अग्गि । सुणि सच्च कुमर नरिंद, तुं पुहवि जाण कि इंद ॥ २३४ बहु सच्च सील निहाण, तुअ समउ जगि कोइ न जाण । निय-अप्पि अप्प निहालि, पडिवन वाचा पालि ॥ २३५ उल्लंठ वयणिहिँ तास झलहलिय तेय - पयास |
जिण साण घसिय कवाण, दिव्यउ सुकुमर पहाण || २३६
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[22]
तसु रम्म रण्णह कूलि, लहु जाइ वड-तरु-मूलि । भुअ-दंड उब्भवि बेवि, विन्नवइ कर जोडेवि ।।२३७
वस्तु कुमर जंपइ कुमर जंपइ, सुणउ ससि सूर, वणदेवति सवि सुणउ, सुणउ तार गह-गण विणायग, धम्म एक जयवंत जगि, दीण-दुहिय-जय-जंतु-नायग, तासु कज्जिहिडं निय नयण, वयण विराम विसेस, बिज्जउँ भय-तम-पमुह नवि, कारण किंपि असेस ॥२३८
चालि इम कहिय रहिय कुरोस, गिणतउ न सज्जण दोस । रोमंच-अंचिय गत्त, जाणि कि पमोयह पत्त ॥२३९ कड्डियसु करि करवाल, अहिणव कि विज्ज झमाल । उप्पाडि तिणि नीय नयण, दिद्धं, सहत्थिहिं सुयण ॥२४० सिरि नास फुल्लवियास, तुअ धम्म दुम्मह यास । अंधत्त कल बहुमाणि, किय कम्म तणइँ पमाणि ॥२४१ पच्चारि इम ते दुठ्ठ, ललियंगकुमर विसिट्ठ । गिउ तुरिय तुरयारूढ, किणि दिसिहि दिसि वा मूढ ।।२४२
दूहा
अह चिंतइ निय-मणि कुमरु नयण बाह-बहु-रुद्ध । फिट रे दैव किसुँ कि अउँ जं एवड दुह दिद्ध ॥२४३ रज्ज-भंस रण्णिहिँ वसण, निचलय(?) चक्खु-विणास । एवड दुह किम सहिसिरे, हियडा फुट्टि हयास ।।२४४
छोटडा दूहा इम जाणीइ पिण कीजइ किसुउँ। जइ जोईइ तु आपणउँ कर्म इसउँ ॥२४५ तउ इम जाणी-नइ रहीइ संतोस.। जे सुह संतोस. ते नहीँ बहु सोसइँ ॥२४६
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[23]
चालि इम चिंति चित्ति कुमार, रूपिहिँ कि अहिणव मार। नवि करइ एह विवस्थ, मुं पडिय इसिय अवत्थ ।।२४७ पहिरतु जे पटकृल, ते वसइ वणतरु- कूल । माणतु जस वरपान, करि धरइ ते वड-पान ॥२४८ जसु वेणु वीणसुराव, ते सुणइ पक्खिय राव । करतु कुतूहल-केलि, सु जि फिरइ विचि वन केलि ।।२४९ देखतु नाटक-रंग, देखइ न ते निय अंग । चडतु जि चंचलिवाहि, तसु अंगि आहि कि वाहि ॥२५० करतु जि कर करवालि, ते करइ करि करवालि । सूतउ जि सेज -पलंक, सु जि रडइ जिम जगि रंक ।। २५१ रमतउ जि हय वाहियालि x x x x x बिसतु चाउरि चंगु, बिसइ सु तरु-सट्टंग 1२५२ वज्जंता ढुल्ल मृदंग, सु जि पंडु पंडु मृदंग। सुणतउ जि जय जय बुल्ल, सु जि सुणइ वायस-हुल्ल ॥२५३ जसु माण दिंतु भूप, सु जि चक्खु हुअ मरु-कूव। इम दुक्खि दुहिलउ होइ, ललिअंग नयण-विजोइ ॥२५४
इति श्री विद्या-कल्प-वल्ली-महानन्द-कन्द २, प्रणतानेकराय-वजीर-नरनायक-मुकुट-कोटि-घृष्ट-पादारविन्द (१)
___ श्रीश्रीभालीवंशावतंस, अनेक-सुविवेक-छेक-छत्राधिपति-महानरेन्द्र-कृतप्रशंस(२)
कूर्चाल सरस्वती बिरदधर, पुरष-रत्न-वर(३) षट्दर्शनीगुर्वाशाकल्पितानल्पदान-कल्प-द्रुम, अगण्य-दान-पुण्य-प्रसारनिर्जिताशेष बलि-कर्ण-विक्रमार्क - भोजप्रमुख भूपाल, श्रीमदर्हद्देवगुरुचरण-तामरस परिचर्या-मराल, मलिकराजश्रीपुञ्जराजकारिते संडेसरागच्छे श्रीईस्वरसूरि विरचिते पुण्यप्रसंसाप्रबंधे प्राकृतबंधे श्रीललितांगचरित्रे गसकचूडामणौ श्रीललितांग-सज्जन पाप-पुण्य-प्रसंसाभि वाद ललितांगदुःखावस्था-वर्णन प्रकारो नाम द्वितीयोऽधिकारः ॥२॥
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[24]
गाथा
इह दुह-दुत्थावत्था-नइपूरि निछुट्टमाणसो कुमरो । चिंतइ अहो किमेवं, मम धम्मरयस्स संजायं ।।२५५ तं चेव सुयणवयणं, कह सुपमाणं वडं जुगं मे वि । न उणो नायं सिद्धी, कई तरिया हवइ धम्मे ॥२५६ जह अंगमल विसुद्धी, खलि-तिल्लया-पमुह-वत्थु-सत्थेहि । किज्जइ पुव्वमपुव्वं, तउ तस धम्मस्स धुवसिद्धी ।। २५७ धिद्धी मे मोहमई, जेणेरसि चिंतणं विलोमस्स । धम्मो धुवं जगत्तिय-जय-हेऊ तनही होइ ।। २५८
रूसउ सज्जण हसउ जण, निंद करउ सहु लोइ । जिणवर-आण वहंतडाँ, जिम भावइ तिम होइ ॥२५९
गाथा इअ निअमणो सु वेग्ग-संकलियाए निजंतिऊण पुणो । चलमघुडु-व्व कुमरो अइ-वहइ वाह बहुल-दिणं ॥२६०
पद्धडी छंद संझ-समय सु पहुत्तउ, तिहिँ इत्थंतरिहिँ। तसु दुह-दुहिय कि गिउ रवि, पच्छिम-अंतरिहिँ। निय-निय-नीड-निलीण के पुण महासरिहिँ पक्खिय सवि कंदंति सुजंत महासरहिँ ॥२६१ दहदिसि हुई कि तिणि दुहि कज्जल-काल-मुह तारय-गण दुज्जण जण दक्खइ अप्प-सुह । पउमिणि-संड विसंडियमाण कि पिय विरहिं महुअरु-मिस-विस गिलइं कि सुहमरण-विरहि ॥२६२ चंदनंद चिरकालसुरयणिहिं रायतु अ कुमइणि दिइं आसीस ति विह सीय जलहि सुअ । सस संबर सीयाल सुसद्दिहिं गयणधण
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गज्जइ निसि अंधार कि आविय घोरघण ॥२६३ लहु लहु धंतसुदंत कि ससहरकरपसर दीसइ दीसह जाणि कि भंजई करपसर सुणइ विमलणि अंगविरंगिहि नियसुवणि बहु फल फलिय सुबहुअर तरुअर वीणवणि ।। २६४
भाषण तिणि प्रस्तावि ते ललितांग कुमर,
अभिनवउ तीणि वनि जाणि कि भोगि भ्रमर ।। जिम लवणरहित रसवती, छंदो-रहित सरस्वती ! गंठ-रहित गान, अर्थ-रहित अभिमान ॥ गुरु-विहीन ज्ञान, योग-रहित ध्यान ॥ लावण्य-रहित रूप, जल-रहित कूप । देव-रहित प्रासाद, रस-रहित नाद ॥ नाशिका-रहित मुख, पुण्य-रहित सुख । उच्छव-रहित घर, गुण-रहित नर ।। दया-रहित धर्म, कारण-रहित नर्म ॥ दान-रहित धन, तिम दृष्टि-रहित कुमर जाणइते ते हवउंअपूर्व उपवन ।।२६५ ते वन केहुं अपूर्व छिइं?
षट्पद अंबु जंबु जंबीर कीर कंथार करीरह कालुंबरि कृतमाल कउठि केवडि कणवीरह ॥ कदली किंसुअ कमल किंब कल्हार कि भणीइं खीरणि खीर खजूर खीरतरु खारिक सुणीइं। गंगेटि गुल्ल गिरिणी गुरुअ, जाहि जूहि जाई-फलइँ जासूअण झींझ बहु झाडि तिहँ भयह भीय रकिर टलइँ॥ २६६ टिंबरु ताल तमाल तार तालीस तगर पुण दाडिम दमणउ देवदारु दक्खह मंडव घण ॥ धामिणि धव धाहुडी धनेड बहुनामिहिँ तरुवरु नाग साग पुन्नाग चंग नारिंग सु-फल- भर ।।
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[26] पड्डलय पारिजातक पवर, पिष्फलि पिपलि साखि सहु फोफलि सुफांगि-कूड फणस, बल बोलि बोरि बाउलिय बहु ।। २६७ बीजउरी बहुफली भंग भल्लातक भंगिय मिरिच मयणहल मरुअ मुंज महु मुरुडा सिंगिय ।। राइणि रोहिणि रयणिसार रत्तंजणि रासमि चंपक चारु लवंग हिंगु हरडई समि सीसमि ।। वड वरुण वउल वउल सिरिय, किरि वसंत संपइँ वरिय नवनवइ भारि वणसइ तिहाँ, बहुअ सु-फल-फुलिहिँ भरिय ॥२६८
चालि इम भमइ ते वणसंड, मय-मत्त गय वण-संड ।। बहु वाघ वि रुहुअ सीह, तिहँ फिरइ अकल अबीह ॥२६९ तिहाँ घूअ घू धू सद्द, सुणीइ ति किन्नर-नद्द । वासंति महु-रवि मोर, कल कीर चतुर चकोर ॥२७० कोइल सु-कलरवि राग, आलवि पंचमराग । अहिणव कि वरसइ मेह, संभरइ पंथिय गेह ॥२७१ महमहइ मलयसु-वाइ, बहु-गंध चंपय जाइ । गिरि झरई निर्झर वारि, जाणीइ सर तरवारि ॥२७२ इम थुणि वणि ललिअंगि, बहु रयणि वड-तीड-संगि । सुत्तइ सुणिउ नर-सद्द, भारंड-पक्खि -विवद्द ।।२७३
पद्धडी इत्थंतरि तसु निग्गोह-ठामि, बहु मिलिय पक्खि भारंड-नामि। अन्नोन चवइ ते मणुअ-भाखि। निय-निय-मालइ ठिय वङ-सु-साखि ॥२७४ कछु दिठउँ जं जिणि अइ-अपुव्व । कोऊहल किंपि सुणिउ ति सव्व ॥ तसु मज्झिहिँ बुल्लिउ इक्क पक्खि । सवि सुणउ ति कलियल सद्द रक्खि ॥२७५ जं कहउँ वत्त अपुव्व एअ
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[27]
म. दिट्ठी जण मुहि सुणिय जेअ । इम सुणिय ते वि निप्पंद नयण हुअ सुणइँ सव्व तसु पक्खि-वयण ॥२७६
अह अच्छइ अमरावइ-समाण दिसि पव्वि अपव्व सु-नयरि-ठाण । गय-कंप-चंपनयरि हिँ पसिद्ध बारसम सु-जिणवर जिहँ सु-सिद्ध ॥२७७ तिहँ धम्म-नाइ-निउणेगरज्ज साहसिय सूरसुंदर सकज्जु । विहि दिद्ध सिद्ध सच्चत्थ-नामि रेहइ नि-राय जियसत्तु-नामि ॥२७८ गुणधारणि धारणि नाम तास बहुरूव कल तु-कला-निवास । तसु पुत्तिय पुप्फावइ सु-नाम पिय-माय सु-परियर पेम-धाम ॥२७९ रूपिहिं करि जाणि कि रंभ एह नव-वेस कलागम-गण-सुगेह । बहु-भरह-भाव-संगीय-सारि सारय किं मनावी तीणि हारि ।।२८० इक जीहि सु-कवियण तासु रूव वण्णवइ विबुह बहु-सम-सरू व । तं तह-वि तासु सिंगार वेस वण्णवि सुविसेसि हि गुण असेस ॥२८१
अडिल्ल जस कम-कसल विमल-कमलुप्पम उरु ऊरत्थल रंभ-थंभ-सम । तणुतरु-साह बाहु किमि दिप्पड़ मिउ मिणाल मच्छर-भरि जिप्पइ ॥२८२
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गगनगतिछंद जिप्पंति कणय कि कुंभ थणहर हार निम्मगि सोहए कडि-लंक किरि हरि कणय-किंकिणि-नादि तिहुअण मोहए । मझंग खीणि कि पीण उरवर भमर भोगि कि भंगिया । बहु हावि भावि कि रमइ नव-रसि नवल परि नव-रंगिया ॥२८३
रिमिझिमि रिमिझिमि नेउर-सद्दहिँ किरि अणंग निस्साण विनद्दहिँ । चलंती चतुरंग चमू-बलि मंडइ मयण महा-रसि रइ-कलि || २८४
छंद कलियलइ कोइल जेम कलरव हंस-गइ मय-लोअणी कलकीर नासा-वंस निरुपम कुसुमसर-भर-भोइणी । दिप्पंति अहर पवाल-कुंपल दसण दाडिम-पंतिया मुह-कमल विमल कि पुण ससहर कमल-कोमल-कंतिया ॥२८५५
दूहउ
कर असोग-नव-पल्लव-समसरि कुंकुम-करल-लोल अंगुल वरि । कररुह कंति तत्वतर तंबह सम सरीरि करवीर कि कंबह ॥ २८६
छंद करवीर-कंब कि कंबु-कंठिय सवण सर हिंडोलया । चलवलंति कुंडल चंद-रवि-जिम पहिरि पवर सु-चोलया । कडि कसण कंचुअ कवच काम कि भमुह गुण-कोदंडीया तिणि वेधि सरसरि समरि सुरनर कवण किवण न खंडिया ॥ २८७
वेणि-दंड विसहर किरि वासुकि हरि-वाहण-भय किय-नव-वास कि । भरणि-भूअ-भय-भीय कि ससहरि सामी-सरण लिद्ध जिम ससहरि ॥२८८
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छंद हर हास कुंद कपूर वि हसिय हसिय लहु नव-जुव्वणा तिअ तिक्क तिक्ख कडक्ख चंचल चडिय चावासव्वणा । सिंगार-सार सुवेस- सज्जिय जाणि सुरवइ-सुंदरी लहु समरसीह-किसोर कामुय वसइ जाणि कि कंदरी ।।२८९
षट्पद ॥ नागिणि नवि पायालि इसिय सुर-लोगि न सुंदरि रमणि-रयण निम्माण जणि विहि घडिय सयल--धुरि ।। इकजीहि हुं पक्खि दक्खगुण वज्जिय मुद्धहं तासु लडह-लावण्ण-वण्ण किम मुणउँ सुमंधह || एरिसी नारि नरराय घरि, विहि-दोसइँ दूसिय निउण जच्चंध-नयणि जुव्वण-समइ, दिट्ठ सभंति ति-विसउणि ॥२९०
गाथा तं भव-रूव--सुजुव्वण-उब्भड-वेसं निवो य ब्भु-विसेसं । दट्ठण नयण-वज्जिय-क्यणं वयणं भणइ एवं ॥२९१ अहहो परिसय-पुरिसा, पासह विवरीय-विलिसियं विहिणो । जमिणं रूवं निम्मिय, विडंबियं अंबएहिँ विणा ॥२९२
षट्पद विह विहि वसि सकलंक कमल-नालिहिँ कंटय पुण सायर-नीर अपेय पवर पंडिअ-जण निद्धण ॥ दइअहं दिद्ध विओग रूव दोहग्गिहिँ दिद्धउ धणवइ किय किवणत्तु रुद्द भिक्खत्तण किद्धउ ।। ब्रह्मा कुलाल-कम्मिहि विणदिगल दह-रूव हुओ इक्किक्करयण विहि-दोस-वसिइँ इक्क-इक्क-दोसेण जुअ ॥२९३ चंद कीउ सकलंक काय न न दिद्धी मयणह सुयणह दद्ध दरिद्द लच्छिले दिद्धी किवणह ।। लोयण दिद्ध कुरंग लोणहीणच्छी नारी नागवल्लि फलहीण अवर फल रक्ख असारी ॥
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[30] सोरंभहीण कनकह कीउ तियसलोय विब्भम भुयउ हा हा जि दैव करता पुरिस, ठामि ठामि भुल्लवि गयउ ॥ २९४
गाथा इह ताव निसग्गेणं, चिंताए पुत्तिया हवइ पुणो । सविसेस-कुविहि-णी दूसिय-देहा इमा जयह ।।२९५ जामं(जम्म)तीए सोगो वटुंतीए वड्डए चिंता० ॥२९६
वस्तु इम विमासिय इम विमासिय वसुह-वर-बुद्धि । जसु संवर कारणिहिँ, नयर-मज्झि पडहु वज्जाविय । नयर-लोय निस्सोय सवि, सुणउ वयण निय-मणि सुहाविय ॥ जेउ करइ कुमरी-तणां, नयण-कमल लहु सज्ज वरइ तेउ तीह कपणसिउं लच्छिसमिद्धह रज्ज ॥ २९७
दूहउ कोइ नच्चाविउ नवि गयउ, छविउ न पडहर कीणि । विहाणइ हउँ जाइसु तिहाँ, पक्खिय-कारणि तीणि ॥ २९८
पद्धडी हम कहिय पक्खि जव रहिउ, मूनि पुच्छिउ तव पक्खिइ इक जूनि । कहु ताय तीइ जच्चंध-दिट्ठि, किम होस्यइ अहव न नयण-सिद्धि ।।२९९ तव बुल्लिउ वड-भारंड-राउ, तउँ कि पि न जाणइ लहुअ जाउ । मणि-मंत- महोसहि बहु-पभाव, जगि अछइँ नव-नव-गुण-सहाव ।।३०० जउ पुण्ण-जोगि गुरु जोग होइ, तव लहइ न तसु गुण-पार कोइ । इम सुणिय सउणि वलि पुट्ठ एम, कहु कामिय-गामु असोजि केम||३०१ वलि कहइ विहंगम-राउ मुद्ध, जउ पुच्छसि तउ वलि कहउँ सुद्ध ।। पिण रयणि इक्क वलि सुन्न रण्ण, बुल्लंताँ वाडइ होइ कन्न ॥३०२
दूहउ दियह दिसि जोइ करी, रयणि हिँ पुण नवि भेड बुल्लइ बहु-जण-संचरइ, धुत्त-धुरंधर केउ ॥ ३०३
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पद्धडी तव वलतउँ बुल्लइ खयर पाग सिउँ अछइ इह पिय- रज्ज- माग । पर पेमिहिँ पूछउँ ताय तुज्झ ।। विज अंग अवर कुण कहई मुज्झ ॥ ३०४ इम पुच्छिय तिणि तसु कम्म-जोगि विण पुनिहिं किम हुइ जोगि जोगि । ललियंग सुणताँ तासु वयणि इम जंपइ तव भारंड सउणि ॥३०५
सिलोगा दिव्व-नाण-प्पहाजोसो, पक्खि-राउत्ति जंपए । वच्छ आमूलउ एसा, वड-वेढि पुज ठिया । वल्ली जाचंध-दोसा पु(?)-मूल-भल्ली वियाहिया । रस-सेगाउ एयाए, नव-चक्खू नरो भवे ।। ३०७ ।। युग्मम् नाय-पच्चूस-कालम्मि, कत्थ गतासि जं पुणो । पुत तत्थेव जत्थत्थि, कोऊहलमिणं घणं ॥ ३०८ . अन्नमन्नत्ति बिंताणं, ताणं निद्दा समागया । कुमारो-वि वड-हेत्थो, सोच्चा चिंतेइ कि इमं ॥३०९ सच्चं वा किमु वा भंती, कावि एसा ममं जओ । धम्मो जग्गेइ जंतूणं, सव्व-दुक्ख-निकंदणो || ३१० ॥ युग्मम् नाणस्स पच्चओ सार-महो वा किं विचिंतणं । इअ निच्छित्तु तं वल्लिं, मुणित्ता हत्थ-फासओ ॥ ३११ छित्तूण छुरिघाएणं, वट्टित्ता पत्थरेण य । चक्खु-कूवे रसंतीए, निहित्ता सुत्तओ खणं ॥ ३१२ युग्मम्
गाथा अह तक्खणं सुसज्जुय, नीलुप्पल-नयण-वयण पसिचंगो । कुमसे पासइ सव्वं, नाणी व विसेस-दिट्ठि-जुओ ॥ ३१३ तत्तो विम्हिय-चित्तो पमुइअंगत्तो मणम्मि चिंतेइ । धम्म-तरु-संस-जणिअं फुल्लं खलु जायमिणमसमं ॥ ३१४
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अह चंपाए जियसत्तु - राय पुत्तीइ कर गहेण फलं । भावि भवम्मि ईहेव-य तमुवक्कमकरण मह झति ॥ ३१५
दूहउ
मुंन करताँ नहु कलह० || ३१६
पद्धडी
1
इम चितिय चित्तिहिँ कुमर - वीर, तसु पक्खि पक्खि संलीण धीर । वाहिय तिहँ सुहि रयणि सेस, पच्चूसि पत्त चंपह पएस ॥ ३१७ पक्खालिय सरवरि हत्थ - पाउ, तसु उववणि लिय फल-फुल्ल-साउ । चल्लिय चंपापुर पुव्व - बारि, पडु-पड़ह - घोस- वयणाणुसारि ॥३१८ तिह लहिय इक्क वाच सिलोग, जिह उब्भा बहुअर रज्ज - लोग । जे पुरिस सुपोरिस राय - कण्ण, जच्चंध नयण सज्जइ सु धन्न ॥३१९ तसु दिइ राय अद्धंग - रज्ज, तसु होइ सावि अर्द्धग-भज्ज ।
इम वच्चिय मच्चिय पुव्व - पेमि, पत्तउ पुर-भितरि कुमर खेमि ॥३२० तं जाणिय राय - निउत्त- पुंस, इम बुल्लइँ जय जय निव-वयंस । तुअ मण मणोरह पुण्णदेव, मग्गइ ति पुरिस- वर इक्क सेव || ३२१ इम सुणिय राय हरसिय अपार, तसु दिद्धउ बहुअ पसाउ फार । उक्कंठिय निव- दंसणिहिँ तासु, सहसक्ख जेम मन्नइँ नियास ॥३२२ तं पक्खिय बहु-गुण-रूव- रूव, मनि चमकिउ चिंतउ एम भूव । किं सुरवर किं विज्जाहरिंद, कइ ईस बंभ गोविंद चंद || ३२३ आलिंगण-रंग- सुरंग - भूव, निय मुणइ सहस - भुअ जिम सरू त । इणि कारण ते निय- सुपासि, ललिअंग - कुमर - वर दीवियाल ॥ ३२४ किं नंदी किं पुणु नलनरेस, किं विक्कम विक्कम-गुण-असेस । किं मयण रूधर दिठ्ठ एउ, जं दिज्जइ उप्पम लहइ तेउ || ३२५ इम राय कुमर - अणुराय - गिद्ध, धाई धुरि तसु परिरंभ किद्ध । उच्छंगि लेई पुच्छइ नरिंद, तुम अच्छइ कुशल ति कुमर - इंद ॥ ३२६ इहु देस नयर वर गाम ठाम, बहु रुज्ज - रिद्धि-भर - भरिय धाम | मह सव्व एह निय-चलण-ठाण, दितइ ति किद्ध तइ सफल -माण ॥ ३२७ कहु कवण कुमर तुम्ह कवण देस, पिय माय भाय परिघर - निवेस | कुण नयरि वसउ तुम्ह सुह-निवास,
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सहु अक्खउ अक्खय गुण - निवास ॥३२८ इम सुणिय कुमर-वर राय--वाणि, बहु-विषय- नमण-पुव्वंग - दाणि । कह देव सुकय आएस हेव, पुच्छइ जं होस्यइ मुणिसि तेव ॥ ३२९
गाथा
इय निसुणिऊण राया, जायातुल्लाणुराग - वच्छल्लो चितइ संताणमहो, परोवयारिक्कचवलत्तं ॥ ३३०
नाराच
एम चिंति चित्ति भूव धूअभूरिभग्गसंगओ कुमारसार पुत्त- पेम-पाणि- वाणि-संगओ । कुमारि - गेहि चित्त - रेहि रेहियम्मि वच्चए सुतीइ पीइ दंसणिज्ज दंसणेण वच्चए ॥ ३३१ सुपुत्ति झति तुझ सत्ति - पुण्ण- पुप्फ-ताणिओ कुमार एस गुण-निवेस तुम्ह कज्जि आणिओ । संभलिय एम वयण खेम निय सुबप्प - वयणओ सा दिअइ माण चत्त-ठाण आससेण जयणउ ॥ ३३२ तउ तुरंत तीइ नयण सज्ज - कज्ज - कारणे कुमार राय राय - लोग-पच्चयावहारणे । सुगंध दव्व सव्व आणि मंडलग्ग मंडए सुनाणझाण... डंबरेण तंडए || ३३३ सुछत्र वल्लि चूरि पूरि तासु चक्खु - कूवया पोयमाण रायण रइस रूव भूवया । भणंत एम पत्तपेम पत्त देव सुंदरा
न अग बहु विवेग जयसु देवि इंदिरा ॥ ३३४
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कलश षट्पद
जयसुदेव मंदिर राय - कुल हर वर-दीविय | जय ललियंग-दिणेस पाय कमलिणि-संजीविय ॥ जय धारणि-धर- -कुच्छि - रयण बहु-गुण- गण -खाणिय । जय सुरसुंदरि रूवि भूवि भोगिंद सुमाणिय ||
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जय जय भणंत इम बहुअ जण, नयण-कमल विहसिय कुमरि । श्रीवास-नयर-वर-राय-सुअ वरिउ वीर वामंग-वरि ॥ ३३५
गाथा अह सयलो निवपुर जण-वग्गो लग्गो कुमार-पयमूले । कर-कमल-मउल-हत्थो, विण्णत्तिं कुणई पुण एवं ॥ ३३६ सामिय निय-जण-कामिय-कप्पदुम कय कयत्थ-निय-रज्जो । पुप्फाई पुत्तीए पसीय पाणिग्गहेण समं ।। ३३७
छंद इम पत्थिय ललियंग-कुमारं, हक्कारिय-बहु-जण-संभारं । मंडिय-मेह-महा-झड जंगं, पमुइअ-सजण-मण-बहुरंगं ।। ३३८
त्रिभंगी छंद बहु-रंग-सुरंगं कारिय-चंगं चंपा-दंगं सयलंगं बहु धयवड-फारं तोरण-सारं नरवइ-बारं सिंगारं । दिज्जंत-सुदाणं घण-सम्माणं विहलिय-माणं किविण-जणं जियसत्त-नरिंदं धरिआणंदं कयसुच्छंदं सुयण-मणं ॥ ३३९ कारिय-पुप्फावइ-सिंगारं, सिणगार(रि)य ललियंगकुमारं । चाडिय गइंवरि धरि सिरि छत्तं, बिहुँ पखि चमरढलंत संजुत्तं ।। ३४० चामर-संजुत्तं नव-नव-पत्तं नव-नवरस-भरि नच्चंतं । जय-मंगल-सई बिंदिणिवदं हय-गयरुह-भड-संमदं । पहिरिय-नव-वेसं सुगुण-निवेसं सयल-नरेसं सह पेसं रामा रसि रासं बहुअ--उल्हासं धवल-सुभासं दित-रसं ॥ ३४१
ओं ओं मंगल संख-सबई, धों धों धपमप-मद्दल-सदं । भां भां भेरि भरर-भांकारं द्रुमम द्रुमम दुडबडिय अपारं ।। ३४२ दुडबडिय अपारं दो दो कारं झागडदगि झल्लरि. कंकारं वर-वेणु-सुवीणं, नाद-पवीणं सुर-नर-पन्नग-संलीणं । तल-ताल-कंसालं झाक-झमालं कलरव-पूरिय-भुवणालं महमहत-कपूरं मृगमद-पूरं कुंकुम-चंदण-पंकालं ॥ ३४३ भोयण-भत्ति-जुगति-अनिवारं, कप्पड-कणय-दाण-सिंगारं ।
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[35]
पोसिय-सयल-सूयण-जण-वगं समय-समय-वर-तंत-सुलग्गं ॥ ३४४ वर-तंत-सुलग्गं कुमर वरग्गं वहुअर-करि-कर-संलग्गं मंगल-जयकारं वार-चियारं चउरिय-बारं चउ-बारं । हुअ-वरसुर-सक्खं जोसिय-दक्खं वेस-वयण-घण-अक्खंतं इम हूउ वीवाहं सयल सणाहं बहुअ--उच्छाहं दक्खंतं ॥ ३४५
स्रग्विणी छंद बहुअ-उच्छाह नरनाह जियसत्तुउ । सह-सयण-सहिय तत्थेव संपत्तउ । दिअइ रज्जद्ध कुमरस्स कर-मोयणे पत्त-बहु-लोय-कोऊहलालोयणे ॥ ३४६ देस-दल-सेस-बहु-गाम-पुर-पट्टणां खेड तसु रेड रयणाइँ आगर घणा । गय-तुरिय-साहणा पुव्व-रह-वाहणा बहुअ-धण-धन्न-भंडार भंडह तणा || ३४७ बहुअतर-राय--पायक-परियण-जणा पुण्ण-सोवण्ण-रुप्पाइ-कुप्पं घणा । सत्तभूपीढ... ... बहु-मंदिरा घण-कणय-रुप्प-रत्थाइँ अइसुंदरा ॥ ३४८ एम सत्तंग-रज्जद्ध-रिद्धि-जुड पुव्व-पुण्णेण सिरिवास-पुर-निवसुउ । पुष्फवइ-जुत्त-नर-भोग-कलमाण ए मणुअभवि अ(सु?)र दोगुंद जिम जाणए ॥ ३४९ अहिणवउ इंद गोविंद कइ चंदओ कुमर-ललिअंग ललिअंग चिर नंदओ । दितु आसीस इम लोय सहु निय-गिहं कुमर-राओ वि गंतूण भुंजइ सुहं ॥ ३५०
इति श्री षट्ऋतु-भोग-चक्रवर्ति-चक्रकोटीर-सकल-गुण-रत्न-सिन्धुमलिकराज-श्रीमुञ्जराज-सबन्धु-पुत्र पवित्र-श्रीलखराजादि-सकल-परिकर-शंकर
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[36] संसेवित-शुभवन्नीर २ निजामलकुलकमल-सुबोधानैकमार्तण्डावतार ३ ज्ञातिशृङ्गार ४ संसार-देवि-राजी-रमण-रोहिणीजीवितेश ५ महानरेश ६ परदुःखैक-महासिन्धु-सम्मुत्तार-यान-पात्र ७ उपलक्षितविद्या-गुण-पात्र ८ अनणु-गुणि-जनगुण-मनो-मानस-राजहंस ९ मलिक-माफरेन्द्र श्रीपुंजहंस-कारिते श्रीईस्वर-सूरिविरचिते प्राकृत-बन्धे पुण्य-प्रशंसा सम्बन्धे श्रीललिताङ्ग-चरित्रे रासक-चूडामणौ ललिताङ्ग-कुमार-विपदुच्छेद-पुष्पावती-पाणिग्रहण-राज्यार्ध-प्राप्ति-वर्णन-प्रकारो नाम तृतीयो-ऽधिकारः ||३|| इति तृतीयखण्डम् ॥
गाथा अह अनया कुमारो, वायायण-संठिउ स-लीलाए । कव्व-कहाइ-विणोयं, कुणमाणो सह कलत्तेणं ॥ ३५१ जा चिठइ ता पुरओ, पासंतो निवय-दिट्ठि-पसारेण । नयरं सव्वमपुव्वं, तत्थेगं पासए दमगं ॥ ३५२ ॥ युग्मम्
पद्धडी आजाणु-रुलंत-पलंब-केस, लिल्लिरिय-गणाहिव-सरिस-वेस । गलियच्छि-नास-वीभच्छ-रूव, घण-घट्ठ-पंडु-नहरोम-कूव ॥ ३५३ बहषाम(?)पयंड सिर-जाल-माल, मुह-कुहर-ऊअर-कंदर--कराल | मल-मलिण-देह-दुग्गंध-गंध, वण-सूई-पूइ-बहु-पट्ट-बंध ।। ३५४ दीणंग-खीण-घण-जणय-घोर, अहिणव-किरि जाणि दुकाल-रोर । उत्तम-जण-नयण-सुदिन्नि-रिक्ख,
खप्पर-करि घरि घरि लिंत भिक्ख ॥३५५ पक्खालिय-पई-पब-पीण-पाय, असरिस-जण-निंदिय-रीण-काय । बहुभंजिय पावह दुक्ख-सेस, उद्धरिय कि नारय-पिंड एस ।। ३५६ उवलक्खिय एरिस-रूवमित्त, ललियंगकुमर सुपवित्त-चित्त । मणि-चिंतइ हा हय-विहि-विलास, जिणि कारिय सुरवर कम्मदास॥३५७ नर घडिय सुघड विहडइँ विहत्त, अणजोडिय जोडइँ जुत्ति-जुत्त । तं करइ देवनर चित्ति जेउ, नवि बुज्झइं नाणी जीहभेउ ।। ३५८
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[37] इम चिति कुमर करुणद्द-चित्त, अंसुय-जल-विलुलिय-तुरल-नित्त । सुयणत-विसेसिहि सुयण -नाम, हक्कारइ नियजण पेसि धाम || ३५९ तेडाविय पुच्छइ कुमर-- राय, तउँ कवण कवण हउँ मुणसि भाय।। इम जंपइ किपिय तणुभयत्त,
सु जि सुयण सुधिणिघिणि-सद्द-जुत्त ॥ ३६० निनासिय तम-भरपूरसूर, नवि जाणइ उग्गिय कोइ सूर । बहु-नरवइ-नामिय-सीसईस, कोइ अच्छहि बहुगुण तउँ खितीस ॥३६१ हउँ रंक रोर-भर- भरिय-देह, सिउँ पुच्छसि नरवइ वत्त एह । तव बुल्लइ कुमर न भणसि सच्च न,
अज्ज-वि जइ तउ मुझ एह वच्च ॥३६२ नवि धरउँ हणउँ नवि कहुउं किंपि, जिम अच्छइ तं तह-सव्व जंपि ॥ नवि जाणउँ सामिय किंपि तत्त, तव बुल्लिउ कुमर-नरिंद वत्त ।। ३६३ वण-भिंतरि अंतरि ईस-साखि, तिहँ धम्म-अहम्मह विगति दाखि । उवयार-सार तइँ किद्ध सुयण, लिद्धा ललियंगकुमार-नयण ॥ ३६४ तउँ हुइ सुयण हउँ कुमर तेउ, मिल्हिउ वण निब्भर रयणि जेउ । इम सुणिय सुयण तसु वयण जोइ,
___ उलक्खिय अहो-मुहि दुहिउ जोइ ॥३६५ .
कुंडलिया अह ललियंगकुमार तसु दिद्धउ बहुअ पसाउ । अवगुण किद्धइ गुण करइँ गरुआ एह सहाउ || ३६६ गरुआ एह सहाउ चाउ-चतुरिम-गुण-चंगा । साउ-जल सुसमत्थ सदा गुणियण-जण-संगा ॥ न्हाण-दाण-बहुमाण भत्ति भोयण-सुयणह सह । कारिय बहुअ पसाउ-राउ ललियंगकुमारह ||३६७ उत्तम उत्तम सहज निय मिल्हइँ नवि-मरणंति निनाडिय ताविय तोलिय वि कणय समुज्जल-कंति । कणय समुज्जल-कंति घसिय जिम चंदणि परिमल इच्छु-दंड कियखंड सुघण पल्लंत सुर सहलं ।
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[38] बहुअ वास सह आसि दिद्धं कण्हाग-राय तिहि उत्तम उत्तम नवि सहाव मिल्हई मरणंतिहिँ ॥३६८ कुमर भणइ सुणि सुयणनर धण्ण दिवस मुझ अज्ज । रज्ज-रिद्धि सव्वंग पुण हुई सहल कय-कज्ज । हुई सहल सहु रिद्धि मिल्यउ जव दुक्खि सहाई तिणि बहु धणि सिउँ कज्ज जं च जाणइँ नवि भाई ॥ सुयण अनइ अरियणह जेउ सुह दुह नवि दिइ नर । ते धण धूलि-समाण जाणि इम भणइ कुमर-वर ।। ३६९
गाथा
इअ बहुमाण-पहाणो, पहाण-पुरिस व्व कुमर नवि रज्जे । लद्ध-समय-बल-निउणो, सुयणो पुण जंपए एवं ॥ ३७० सामिय अहं अहण्णो जया गओ तुरय-रयण-संजुत्तो । मुत्तुं तुमं व पुण्णं मग्गे मिल्लिया तया चोरा ॥ ३७१ तेहिं दढ-मुट्ठि-जिट्ठी-पहार-मारेण गहिय-पवरासो । दासो हं तु निरासो, जीवंतो मुक्तिओ तत्तो ।। ३७२ इत्थागएण समए, मए तुम पुव्वपुण्ण-जोगेणं । पत्तोसि देव संपइ, संपइसुह-कारणं परमं ॥ ३७३ ता झत्ति संविसज्जसु, दूरं देसं तओ भणइ-कुमरो । मा खिज्जसु खित्त-घणं निब्भंतं भुंज सुहमसमं ॥ ३७४ अह अत्रया कुमारी तस्सागारिंग-चिट्ठ-दुट्ठत्तं । नाऊण निउण-मईएँ पयंपए पइ पइं एवं ॥ ३७५
रोडिल्ला सुणउ प्रीतम प्राण-आधार, विद्या-कला-भंडार, रूपि जिणि जीतउ मार, सयल गुणं ।। प्रेमपीरति-पियारे सांई, तुम्ह तणा हित तांई कहु वात एक काईं सणेहि घणं ।। इह दुयण सुयण-नाम, रहइ नितु तुम्ह धाम, करइ सदा सहु काम, अवि सुयणं ।
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[39]
इम जंपइ रायकुमारि, प्राणि प्रिय अवधारि, मन शुद्धि-सुविचारि, अम्ह वयणं ।। ३७६ मोटा मोटा जिके रायराण चऊद-विद्या-निहाण, बहुतरि कला-सुजाण, आगह हुआ । नल विकम भोज भूपति हरि हरिचंद सति, हय-गय-रह-पत्ति-पायक-जुअ । छांडिउ छांडिउ तेहे नीचे संगः, पतंग-सरिस-रंग, छेहि दाखइ निय अंग, बहुअ-जण । इम जंपइ रायकुमारि ।। ३७७ जिम सुणीइ आगइ सरूव, हंस-रूव काय भूवि हिणिय हसत भूव, जंपंत बुहं । इम ताहुं काय महाराय, भणीजु सु पंखिण्य, नीच-संग-सुपसाइ, पामिय दुहं । तिम बीजउ ई जिको-वि मुद्ध दुयण-संगति लुद्ध धवलति सहु दुद्ध, जाणत घणं । इम जंपइ रायकुमारि ॥ ३७८ वरि भलउ वणि निवास, पर-घरि कम्म-दास, विसहर-सुउँ संवास, बहुअ वरं । वरि भलउ विस-आहार, जलंत-जलणि चार, उवरि खडग-धार चाल वरं । पिण भली न खल-प्रीति, हुइ नितु बुह-चीति, पडइ पिसुण-छीति, पवरजणं । इम जंपइ रायकुमारि ॥ ३७९
षट्पदः अम्ह वयण अणुकूल कह-वि मन्नि जइ सामिय, देवि सद्द जिम वाम राम देसंतरगामिय । कुलह नामि आचार एह नवि सिक्ख स-कंतह । दिज्जइ कारणि कवणि सु पुण प्रियतम एकंतह ।
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[ 40 ]
परिहरउ प्रीअ खल जल सुयण, संख जेम बहि धवल गुणि इम भणइ वर वीनती सुहिय, हियई अवधारि सुणि ॥ ३८० पूर्वी - वयण
वालंभ वयण सुणउ इकवलि लिउं दूखडा
जिसंचउं अमिएण कि निंबहरूखडा ।
तो वि कूडउ जण साउन साउ न मिल्हइ अप्पणा
फुणिहाँ अइ जात जाति-सहाव कि दुज्जण - जण तणा ।। ३८१ जइ रोप थुडथूल कि थाइँ थिर करी
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जइ सींच थण दूधि कि सूधइ मनि धरी ॥ तावि कुमूल बबूल कि कंटा भज्जणा फुणिहाँ अइ जातइ जात सहाव० ॥ ३८२ कुंकम कूर कपूर किज्जइ घण लाईइ मृगमद-गंध सुगंध कि दिव्विहिं ठाईइ ।
तावि ल्हसण नवि मिल्हइ गंध कि अप्पणा फुणिहाँ० ॥ ३८३
जइ व हीइ सिरि घालि करंडिहिँ देहसिउं
जि पोसउ निसदीस कि दूधइ तेह - सिउं । तावि भुअंगम संगमि होइ न अप्पणा फुणिहाँ अइ जात जाति - सहाव० ।। ३८४ धरम सु-गुणि धणि आखर दाखइ नेहुलउ तासु वयण - रसि जाणि कि वूठउ मेहुलउ । जइ वि कुमर मन- मोर महा-रसि तंडीया
फुणिहाँ अइ तावि सरल-कुमरेण कुसंग न छंडिया || ३८५
ग्रहीत- मुक्तक- आलिंगनक छंद
अथ अन्नदिणम्मि मणम्मि वितक्किय किंपि छलं छल--सेस - विसेस - गवेसण दुज्जण सुयण- नरं । नर-राय सुपुच्छिय निच्छिय एम सु-पेम-परं पर-लोय - विवज्जिय देस-मसेस कुमार-गुणं ॥ ३८३
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गुणियण-जण -संगय संगइ केम कुमर तुअ तुअ सत्थि महा-सुह-संपइ कारणि कवणि हुअ । हुअ जम्म सुरम्म कुमारह किणि परि कवण कलि कुलवंत सु आखित दाखित सुह मह कहियवलि ।। ३८७ तव बुल्लिय सज्जण दुज्जण वयण विरासजुअं महासय म पुच्छसि वंछिसि जइ बहु आय-सुहं । मणि संकिय ताम नरेस विसेसिहि दुट्ठ पुण लहु जंपइ सुयण ति सामिय कामिय ईस सुणि ।। ३८८
गाथा
इक्कतो तुह आणा, इक्कतो कुमर-राय निस्सेहो । इअ जह पवित्ति कहणे, अहो वियडसंकडं मज्झ ॥ ३८९ तह वि हु बहु हेअ नरेसर, सिरिम महिंद नंद चिर-कालं । जह तह कुमार-चरियं, अच्छरियं पुण सु मह एयं ॥ ३९० सिरिवास-नयर-सामिय, नरवाहण-नंदणो अहं देव । अम्ह घर-कोरियस्स उ, सुओ महाराय एस लहु ॥ ३९१ पगईए रूव-गुणो, कुत्तो च्चिन पत्त-बहुल-विज्जधणो । निय-कुल-तवाइ गेहं, चिच्चा देसंतरं गनो ॥ ३९२ इत्थागयस्स तस्स स, नरवर तुम्हाणुरागजोगाओ । पुवज्जिय पुण्णेणं जं जायं तं तए मुणियं ।। ३९३ ।। विशेषकम् । पिउणो पराहवाओ, अहमवि देसंतरं तओ कमसो । पत्तो इहोवलक्खिय, मम्मणो एस कुमरेण ॥ ३९४ इय चिंतिय दाऊणं, बहु-माणं मज्झ नाम सुयण । उग्घाडेसु नरेसर-पुरओ, कहिऊण संठविओ ॥ ३९५ ॥ युग्मम् एएण कारणेणं ललियंग कुमार वुज्ज (?) पायस्स । नाह कहमि कहवि, कह, परं परा सामि तुह आणा ॥ ३९६
पद्धडी इम सुयण-वयण-विस-घारियंग मणि चिंतइ भूवइ अइ-विरंग । ।
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फिट फग्गु भग्गु भर अम्ह देव किम कारिय उत्तम नीय-सेव || ३९७ पण बद्ध लद्ध जई कण्ण ईणि किय मलिण रज्जमह देउ कीणि । जइ चरइ पिराई खरसुदख नवि होइ किपि हियडइ अणक्ख ॥ ३९८ वरि भलउ विसानरि सुह-पवेस नवि भलउ कुल(लु)ज्जिय जण पवेस । वरि भलउ किद्ध परगेहि दास नवि भलउ कुलुज्जिय सह निवास ॥ ३९९ वरि भलउ भावि सह वेस रंग नवि भलउ कुल(लु)ज्जिय पुरिस-संग वरि भलिय रायति सुण्ण साल णवि पूरिय पुणरवि चोर-माल ॥ ४०० जइ तापउ महातवि तणु किलामि ठाईइ सिउँ ति विसतरु-कु-ठामि । पामीइ जइ-वि घय सालि दालि कामीइ सिउँ तिमरु-लहुअ-सालि ॥ ४०१ साहीइ सुबुद्धिहिँ अप्प-कज्ज उप्पज्जइ जेम नवि लोय-लज्ज । खाईइ चोरि निय-गुड नियाणि इम कहिय लोय उहाणि जाणि || ४०२ चिताविय चित्ति इम नरवरेसि ललिअंग कुमार कुमार-रेसि । पट्टविय पेसियर छन्न रत्ति ।। गम-निग्गम अह-विचि-मज्झ घत्ति ।। ४०३ सामी सुह-संगम सेज लीण नव-गाह-गेय-गुण रमण-पीण ।
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ललिअंगि रंगि ललियंग जाम तव अच्छइ रयणि समद्ध जाम ॥ ४०४ नवि पेसिय परिसर मयि(?) कोइ ललिअंग-भुवण वर पत्त सोइ । उग्घाडिय लहु संपुड-कवाड विण्णवइ विणय-गुरु-वयण-चाड || ४०५ जय विजयवंत चिर जीव देव बुल्लावइ तुम्ह नरराय हेव । पर पेमि किंपि पुच्छइ सुवत्त । पर-टु लट्ट गिह-रज्ज-सुत्त ॥ ४०६ पाधारउ पहु पिय पंथ मज्झि नितमंत जेम नवि पडई वज्जि । ससि-जुण्ह जूअमिव मंत चोर जिय दिवस गुत्त घण करइ जोर || ४०७ इम सुणिवि सवणि उट्ठिउ पयंड करि करवि कुमर करवाल-दंड । खलकंति चूडि चल-पाणि पाणि तव झल्लवि पल्लवि कुमर राणि ॥ ४०८ इम जंपइ नाह म होसि मुद्ध। . इम जाइ कोवि संपइ अबुद्ध । तव बुल्लइ कुमर सुणीइ-मम्म किम पलइ रमणि इम सामि-धम्म ॥ ४०९
गाथा (श्री महान(नि)सीथे ।) आएसमवी साणं, पमाण-पुव्वं तहत्ति नायघं । मंगलममंगल वा, तत्थ वियारो न कायव्वो ॥ ४१० इणमेव जीवियव्वं, निच्चं सुअ-भिच्च-सीस-रयणाणं । जं पुज्ज-पियर- सामिअ-गुरूण मुह वाय-कारित्तं ॥ ४११
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[44] नाणमवहीलणं जं, सुंदरि तं ताण सत्तिमिसरूवं । विहियं विडंबणं विहि-कारणदोसेण पुव्वेण ॥ ४१२
दूहउ इम निसुणिय पिय वयण तव, बुल्लइ राय-कुमारि । राय-नीइ निउणेक-वर, विज्झति अवधारि ॥ ४१३
कुंडलीया दूहा ॥ जिण-सासणि जिणि नवि कही सिद्धि पक्खि एगति । जिम धणु-गुण बिहुं सरलपणि, सर मिल्हणा न जंति ।। सर मिल्हणा न जंति सरलपणि गुण-कोवंडह निच्चानिच्च- पयार सार जग जिम मय-भंडह । जिणवर-भासिय-वयण कहवि अन्नह इम वासण तं एगंत सुअलिय एम जंपइ जिण-सासणि ।। ४१४ तिणि कारणि एगंतपणि, निव-धम्मह वीसास । नवि किज्जइ सरलत्तगुणि, जिम दोरी विण पास ।। जिम दोरी विण पास, भास इम सुणीइ सथिहिँ सुणिउ अहव किहँ दिट्ठ राय मित्तत्ति परमथिहिँ अन्न वयणि मणि अन्न कज्ज सच्छंदह चारिणि । वेस धम्म जिम धम्मराय रायह तिणि कारणि ।। ४१५ विण अवसरि जे कज्जडां, विण पत्थाविहिँ माण । विण अवसरि तरु फुल्ल फल, ए त्रिहइ सुनियाण ।। ए त्रिण्हइ सुनियाण जाण इम जाणि न चित्तिहिँ हसइ कोइ नवि निउण बहुअ कोऊहल-वित्तिहिँ । हक्कारण-मिसि हेउअ वर बुज्झि न अवसरि इणि कज्जह कज्ज-विणास जेउ किज्जइ अवसर-विण ।। ४१६ सिउँ जंपिउँ बहुअर विरस, सार वयण सुणि सामि । जिम दज्झण-भइ दारु कर, लिद्धउ सुह परिणामि || लिद्धउ सुह परिणामि घाय-रक्खण जिम उड्डण
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[ 45 ]
तिम पच्छावि पसत्थ पवर पंडिय सेवय- जण । पेसिय राय समीत्रि सुयण सच्च तुम्ह अणुयर किज्जइ अप्पण - काम सामि सिउँ जंपउँ बहुअर || ४१७
चालि
इम सुणवि सर्वाणि उदार, तसु वयण अमिय कुमार चितइति नियमणि तुट्ठ, अह रमणि गुणह गरिठ ॥ ४१८ धन धन मुझ अवयार, संसारिंग ससपयार (2)
धन धन्न इह मुझ रज्ज, जसु सुहिय एरिस भज्ज ॥ ४१९ धन धन्न सुललिय वाणि, बहु-विणय-गुण- गुरु माणि । धन धन्न सुचरिय सील, दुह-वल्लि - मूलनि कील ॥ ४२० आसन्न -रण-रस-रंगि, बहु - मूढ - मंत - कुसंग । जोईइ जसु सुह वयण, सुजि पुरुस इत्थिय - रयण ॥ ४२१ मणि धरीय इम तसु सीख, अव सरिय इक्क दुइ वीख । बुल्लावि सुयण ससबंधु, सहु कहिय कुमरि निबंधु ॥ ४२२ पट्टविय पहु छल- - रेसि, तसु दुट्ठ कम्म-विसेसि । अहमयि पत्त सुजाम, निव मुत्त जणि झुणिताम ।। ४२३ हवि हणिउ खग्ग - पहारि, तसु पाव-बुद्धि वियारि । हुअ सव्वलोय - उहाणि, पर-चिति अप्पण हाणि ॥ ४२४ तव हुआ कलियल सद्द, घण घोर काहल - नद्द । धाया ति धसमस धीर, कोइ हणिउ घायगि वीर ॥ ४२५ तं सुणिय सुयण - विणास, ललिअंग पुण्ण-पयास । गलयलिय - कंठि कुमारि इम भणइ पिय अवधारि कहि पाण- पिय तम हेव, जइ कहिउं करत न देव । किम हुंत अबला बाल, विण कंत काम रसाल ॥ ४२७ विण - नाह नारी हीण, जिम हुइ दुत्थिय दीण 1 नवि करइ कोइ तसु सार, विण पाणनाह - आधार ॥ ४२८
४२६
दूहा
नाह - पखइ नारी जिसी, जिम दव - दाधी वेलि ।
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[46]
नीरस निष्फल निग्गुण इ, दैवि विडंबी झल्हि ॥ ४२९ देव कि दिउ सिरि माहरइ, जउ खर-खग्ग-पहार ।। वल्लह-विरह-विछोहियां, तउ तउं जाणइ सार ।। ४३० दैवह दाखउं वाटडी, जइ देखउं निय-अंखि । विरह-विछोह्यां माणसां, कांइ न सिरजी पंखि ।। ४३१ देव दया करि माहरी, नवि भाजी जिम आस । तिम तरुणी तारुण्ण-रस, ढोलि म ढोलि निरास ॥ ४३२ नाह-सरिस गुण गोरडी, नव-रंग नागर-वेलि । जइ सिरजी फल-हीणगुण तोइ सकुंपल मेल्हि ।। ४३३
गाथा इअ पुप्फावि(वइ) पेम, खेमं नाऊण पाण- नाहस्स | पुणरवि पिय-हिय-कज्जं, गय-लज्जं भणइ सुणि नाह ॥ ४३४ मम सूइसि निच्चं तो, कंत कयंत व्व तुम्ह पाण हो । पच्चूसे पिय एसो नरराओ कूड-विक्खाओ ॥ ४३५ ता अद्ध-रज्ज-सिन्नं, हय-गय-रह-सुहड-सार-संकिण्णं । मेलित्तु झत्ति चिट्ठसु, चंपापुर बहिय-उज्जाणे ॥ ४३६ अह सुणिय तीइ वयणं सुदिट्टनयणं कुमार सार-बलो । कोवाकुल-चल-चित्तो, जुत्तो सिनेण संचलिओ ।। ४३७
दुमिला पसरंत-उतंग-तुरंगम-संगम-तुंग-तरंग-चडत-घणं मय-मत्त-महागिरि-सुंदर-सिंधुर-बंधुर-सेतु-सुबंध भणं । वर-नक्क-सुयक्क-महारह-संकुल-मच्छ-सुकच्छ-व सूर-नरं कुमरिंद नरिंद महाबल-सायर-दीसत कायर-पाण-हरं ॥ ४३८
अडिलदूहल पाण-हरण-पक्खरहणहणहणहण-हय हिंसारव । खुर-रव-खेहि सूर-कर ढंकिय गह-गण इंद चंद सुर संकिय ।। ४३९
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[47]
रोडिता छंद संक्या सयल सुर-नरेस, पायालिनाग असेस, मेल्हति धरणि सेस, सूभर- भरं । चलइँ चउदिसि दिग्गय-चक्क, हुअंतिसु हक्कोहक्क, भजंति कायर फक्क, नासतनरं ।। कंपइ सयल कुल-गिरिंद, चालंत मत्त-गयंद, ढलंत ढालसु-विंध, सोहतघणं । इम मिलंति कुमर-सेन फिरंति अंबरि सेन, डरंति दुयण केन, देखत खणं ।। ४४० खणि खणि मिलिय महा-दल समहरि विलसई वीर महाबलि समहरि । सिंह-नादि सामत्थिम दक्खई निय-कुल-ठामि सामि छल रक्खई ।। ४४१
नाराचछंद रहंति नाम चंद जाम तासु सग्ग-संवरा वरंति जीणि हेउ तीणि जुज्झ-कज्ज-सुंदरा । सुजोड जीण जरद अंगि जीव-रक्ख-सोहिया मिलंति सूर समर-तूर-सद्द-नद-खोहिया ॥ ४४२ खुहिय खित्ति नीसाण-निनद्दिहिं ढमढम-ढक-दल-घण-सदिहिं । भरर-भेरि-भंकार ति वज्जइँ जाणि कि पावस थण घण गज्जइँ ॥ ४४३
गगनगति गजंति मेह कि गयणि गडयड गुरूअ-गइवर-मंडलं बहु छत्त-धयवड-सीस-सीकिर-छन्न-रवि-ससि-मंडलं । तरवारि-तीर-सुतरल-तोमर-चक्ककुंत-सुसत्थयं खण-खित्ति इम दुइ सिन्न समवडि अन्नमन्न सुपत्थियं ॥ ४४४
यमकबोल
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[48] तिणि प्रस्तावि ते श्रीललितांगकुमार आपणउ सकल दल मेली राजा सामुहउ आविउ, आवतउ जि श्रीजितुशत्रु-राजाई बोलाविउ, काँइ रे कोरी !, तइँ आपणा कुलतणी वात चोरी, माहरी पुत्रिका-तणउँ पाणि-ग्रहण कीधउँ, तउँ इणि वातइँ त माहरु सिउँ काम सीधउँ, पिण हिव जोई 'माहरी वात, करउँ जि ताहरु घात, तउ इम जाणे ए भलउ महारात ॥४४५ तिवारइ इस्याँ महराय-तणाँ वचन श्रवण-संपुटि धरी, दक्षिणहाथि खड्ग सज्ज करी, [छि वल घालि, सामहउ चाली, वलतुं श्रीललितांग-कुमरि राजा बोलाविउ, महाराज साँभलि राजनीति, उत्तम पुरुष कदापि न पडइ छीति, पाणि जइ सूर सूर-आगलि भाजइ, तउ आपणउ उनम वंस लाजइ ।। ४४६ संग्रामि चड्या क्षत्रिय न गिणइं संग पण न सगाई, पिण एक वार मुझ सिउँ संग्राम कीधा विण तुम्हे एवडी वात कोइ फुरमाई, इम कही नि अन्योन्य राजा नइँ कुमर हस्या, स-दंडायुध लेई परस्परइ सुभट सुभट प्रति साम्हा धस्या, हुवा लागउँ जूझ, किसँ वर्णवि अबूझ, वात कहताँ रोमांच ऊपजइ अंगि, ते राउत भला जे झूझि रणांगणि रंगि ।। ४४७
पद्धडी गय गजवर हयवर हय जुडंति रह पायक पायक-सिउँ भिडंति । झल हलइ खग्ग खर करि कराल जाणीइ कि अहिणव विज्जु-झाल ।। ४४८
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[491
खड-खडइ खग्ग खेडय खटक्क त्रुटुंति सरल धणु गुण तडक्क । किवि करइ धणुह-टंकार-नद्द फुटृति फोडि बंभंड सद्द ।। ४४९ सिंगिणि-गुण वज्जइ तरलतीर कर फलह फुट्टि विधइ सरीर । किवि-करइँ वीर मुहि सीह-नाद इक इक्क घाइ गुण लिंति वाद ॥ ४५० झडि पडइ सुहडधड उवरि मुंड घण-घाइ के-वि किज्जइ दु-खंड । खलहलि खोणि-तल रत्त खाल संपुण्ण-पलल-जंबाल-जाल ॥ ४५१ इक इक्क के-वि नामइँ न सीस मारत इक मणि सरइँ ईस । इक चडइ तुरंगमि अस्सवार भेदिज्जइ भड इक्क भल्लधार || ४५२ संभरइ इक्क घर-घरणि वीर फुरकंति पवणि भड-मोलि-चीर । इक चडइ सुहड रण दंति-दंति कि-वि धरइ किवण अंगुलिय दंति ॥ ४५३ नासंति इक्क निय जीव लेवि सज्जति सुहड सन्नाह के-वि । बुल्लति सुहडवर बिरद बंद पिक्खंति गयणि सुर इंद चंदं ।। ४५४ चउसट्ठि चंड चामुंड नार भरि खप्पर रुहिर पियंति वीर । वज्जति महारण तूर घोर जसु सवणि सूर उप्पजइ जोर ।। ४५५ इम हुअ बिहुं दलि रण बहुअ वार,
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[50] इकइक्क के-वि जाणइँ न सार । भज्जंत भूव-दलि दिट्ट पुट्टि जोअंति कुमरि तव सहिय पुट्ठि ॥ ४५६
अथ वीररस । मध्ये शृंगारान्तर्भाव ॥
अवसहूतरा अहुठिया दूहा ॥ सहीए देवि न दाहिणइ, करि करवाल करंत ।।
ओ झूझइ ललियंगि वर, नाना कंत ॥ ४५७ कंत कोइ भड भीम वरि किम पुज्जई व सुरेस । अलिय म जंपिसि बहिनि तउँ, नाना मरेस ।। ४५८ कुमर नथी रायह भणइ, तू-विण अवर न कोइ । मुंधि मयण समरूपि तु, नाना सोइ ।। ४५९ सोहि समरथ सामी सकल, रूपिहिँ अहिणव काम । वलि वलि पूछउँ हे सही, तासतणउँ सिउँ नाम ॥ ४६० नाम लिउँ सखि तसु तणउँ, जइ हुअइ अइ हियडा दूरि । उवालंभ वर अम्ह तगउँ, रमइ ति रण-रस-पूरि ।। ४६१
अथ सहनामा दूहा ॥ रागाँसविहुिँ जेउ धुरि, तिणि नामिइ सहि नाम । तसु अग्गलि अंगेण सिउँ, सहिय सुणावे सामि ॥ ४६२ रूडा नामइ अच्छ जसु, तसु नामइ सहि नाम तसु अग्गलि अंगेण, सिउं सहिय सु० ॥ ४६३ हयवरि चडिउ तिहाँ सुलई, हक्कई अरियण थट्ट । हुं बलिहारी प्रिय- तणइँ, दूरि नडंती नट्ठ ।
राग नाट नट्ट-भंजण रिपु-जलण, सहिय हमारा कंत । रणि सूरौं घरि मागताँ, हसि हसि प्रेम मिलंति ॥ ४६५ मह कंतह दुइ दोसडा, अवर म झंपु आल | दिज्जंतई हउँ ऊगरी, जुझंतइ करवाल ।। ४६६
राग सिंधूडउ
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पाय विलग्गी अंतडी ॥ ४६७
वाइँ फरक मूँछडी, मुखिहिक बोड्या दंत । सूतउँ सेला माथउँ करी, मरउँ सुहावा कंत II निसि भरि नख जव देअती, तव कुणणतउ कंत ! खग्ग-झटुक्का किम सह्या, किम सहिया गय- दंत ॥ ४६९ कंतह करउँ ति भामणाँ जिम जिम देखउँ अंखि । FT लडइँ असिवर धरइँ, वयरी गया ति झंखि ॥ ४७० सखी आह
अथ सोरठिया दूहा ॥ राग सोरठी ॥ ए कीणइ सह कोइ, सहु कीणइ ए को नहीं । कटक निहाली जोड़, सूनउ सोरठीउ भणइ ॥ ४७१ भलउँ भणाविउँ भीमि, भारषि जिम भूवइ सरिस ।
यह एही सीम, जइ जामाई सिउँ कलह ॥ ४७२ सहियर साम्हउँ देखि, ओ असवार तिहाँ सुलई । राखइ राउत रेख, रण- रसि रमताँ रायसुँ || ४७३ इम करताँ सुविहाण, सहियर - सुं गुण - गोठडी । कुंअरी बि-पुहरां जांण, किलउ हूउ कुरु-खेत जिम ॥ ४७४ जोताँ बहु जणा तेणि, झडपड लीधा झाटके ।
यह दलि नवि केणि, नासत नवि काढी छुरी ॥ ४७५ पद्धती
उड्डति पवणि जिम अक्कतूल, विक्खरहँ वसुहि जिम घाम- पूल । तणु कंजिय गंजिय जेम खीर, नासविय कुमरि तिम राय - वीर ॥ ४७६ भज्जत सुहड इम दिट्ठ जाम, बिहुँ मंति बिहुं दलि मिलीय ताम । अउसरीय कटक दुइ दिद्ध-आण, सहु पत्त झत्ति भूवइअ - थाण || ४७७ कहि सामिय भामिय केण तुम्ह, किणि कारणि एवड झुज्झ - कम्प | अविमासिउँ मम करि देव हेव, इणि वत्ति तत्ति तूअ पडइ छेव ॥ ४७८ अविमासिय जे नर करइँ काम, ते हुइँ पुरिस बहु दुक्ख धाम । वलि लहइँ लोइ अविवेय - कित्ति, तसु छंडइँ लहु लहु जलहि-पुत्ति ।। ४७९
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जामाय-सरिस जं तुम्ह झूझ, तं जाणि जाणि बहिरेण गुज्झ । रोपीइ जइ वि विसतरु नियाणि, छेदिज्जई नियकरि किम वियाणि ।। ४८० जोइँइ तिल्ल तिल्लह कि धार, नवि होइ राय अविचार-सार । चाहीइ चतुरपणि मूल मम्म, अविमासिय किज्जइ नवि सुकम्म ॥ ४८१ संभलिय वयण म पतिज्ज कोइ, . इकि हुअ अकारण दुयण लोइ । पर-विग्ध-तुट्ठि नारद्द नामि बहु अच्छई सुरनर भुवण-ठामि ।। ४८२
गाथा तं नत्थि घरं० ॥ ४८३ सुणीयंमापत जसि ॥ ४८४
दहउ सज्जण थोडा हंस जिम, उर्ल्डके दीसंति । दुजण काला काग जिम, महियलि घणा भमंति ॥ १८५
पद्धडी
. तिणि कारणि अप्पइ अप्प जोइ मणि चिंतिय कि-त्तिम हेउ कोइ । जय राय-राय जिम पडसि दावि गुरु अंबसुतरु गुण पच्छतावि ।। ४८६ पुछइ नरिंद दिठंत तासु सु जि कहइ मंति बहु मतिविलासु । सहु सुणिय सर्भितरि चरिय चित्त जियशत्रु-राय मणि भयउ चित्त ॥ ४८७ उप्पन्न वेग संवेग भूव पुच्छावइ तसु कुल जाइ रूव । ललिअंग-कुमर हसि भणइ मंति तुम्हि किउ सच्चउ ओहाण अंति ॥ ४८८ गिह पुच्छउ सिउँ पीएवि नीर न कहंति एम निय-वंस वीर ।
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[53] जितु कहइ सुयणसुजि हरिउ देवि अह पेसि नयरि सिरिवास के-वि ।। ४८९ होस्यई जि राय तिहं कोइ दक्ख नरवाहण-नामइँ लद्ध-लक्ख । कमला कमला-गुणि तासु भज्ज जिणि मन्नइ भूवइ सहल रज्ज || ४९० ललिअंग कुमर तसु पुत्त होइ जिय सत्तु-पुत्ति-वर वीर सोइ ।। इम सुणिय सवण सुह वयण मंति मणि हरसिय विहसिय-वयण जंति ।। ४९१ विण्णविउ विणय-सुं नरवरिंद जियसत्तु सत्त चिरकाल नंद । परि किज्जइ कुमरि सु कहिय जेव पुट्ठवउ पुरिसवर नयरि तेउ ।। ४९२ तव सासिय भासिय बह अ-भाण चल्लविय चतुर नर कि-वि सुजाण । अविलंब पयाणि सुपत्त तीणि नर वाहण-नरवर-नयर जीणि ॥ ४९३ तिणि अवसरि पुत्तवियोग-दद्ध नरवाहण सुअ-संगम-विसुद्ध । सह दार-सार-परिवार-जुत्त नितु रहइ रयणि दिणि सोग-तत्त ।। ४९४ पत्ता पुर-भितरि तव दुआरि पडिहारि पएसिय किय-जुहारि । विण्णविय वसुह-धव कुमर-तत्त इम सुणिय तत्थ अवरोह पत्त ।। ४९५ उक्कंठिय जिम नव-मेहि मोर कंद्धधुर-बंधुर सयल पोर । वाचंति विउलमइ राय-लेह
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नरवाहण-निव गुण-गाह-गेह ॥ ४९६
लेख-गाथा सत्थि सिरि सिरि-निवासे, सिरिवास-पुरम्मि पुज्ज-पिय-पाए । नरवाहण-नरराए, सुपुत्त-पोत्तार-परियरिए ॥ ४९७ गय-कंप-चंप-नयरह सामी, नामि त्थु सीस मणुगामी (?) । मउलिय-कर-कमल-जुओ, जियसत्तू विष्णवइ एवं ॥ ४९८ सामिय तुम्हाण सुओ, ललियंगो नाम विस्सुओ लोए । कय-पाणिग्गह-रू वो, भूवो चंपद्धरज्जस्स ॥ ४९९ इअ सहसावयणेणं तेणं भेग(भिग्गो?) नव-जलय-सित्तो । उज्जीविय-व्व संपइ जंपइ नरवाहणो एवं ।। ५०० तेण सम(मं) महं निच्चं, सुभिच्च-भावं करेमि जह तुम्हं ! कायव्वं तह नरवइ, जइअव्वं सुहिय-हिय-करणे ॥ ५०१ अह होइह भुवणयले, जियसत्तु, समो न कोवि मम बंधू । जेणेसो ललिअंगो, संठविओ निय-समीवम्मि ।। ५०२ जीविय-सव्वस्समिणं विस्स-जणस्सेव अम्ह कुल-कलसो । कुमरो दिसंत- भमिरोह संठवियो नियट्ठाणे ॥ ५०२
यथा वेला-महल्ल-कलोल-पिल्लियं जइ-वि गिरि-नई-पत्तं । अणुसरइ मग्ग-लग्गं, पुणो-वि रयणायरे रयणं ।। ५०३
चालि सलहित्तु इम नरराय, तसु दिद्ध बहुअ पसाय । बहुभत्तिभोयण-वार, धणकणयकप्पडफार ॥ ५०४ बहु-दाण-माणिहिँ पोसि, चल्लविय गुरुसंतोसि । तसु सत्थि पेसिय मंति, ललियंग-तेडण-मंति ।। ५०६ घणसुघट सोवन घाट, वर-रयण-पूरिय-थाट । बहु-मुल्ल हीर-सुचीर, मिय-नाभि-कल-कसमीर ।। ५०७ जियशत्रु-नरवर-रेसि, सिरिवास-नयर-नरेसि ।
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[55] मुक्कलिय इम बहुभेट, कमि पत्त चंपह थेट || ५०८ ते जाणि मणि महिंद, ललियंग -कुमर-नरिंद । संमुहिय संमुह कज्जि, हय - गय-सुरह भडसज्जि ॥ ५०९
वस्तु बहुअ उच्छवि बहुअ उच्छवि मिलिय समुदाय । नरवाहण-मंतीस-वर कुमर-राय जिअअरि सु-परियरि नयर-माहि नियमंदिरिहिं, लिद्ध ते वि उच्छव सु-परियरि । पुच्छिय सहु वित्तंत, तसु लज्जिउ निय मणि भूव चिंतइ अहह कि माहरूँ ए कहु कवण सरूव ।। ५१० लेइय अंकिहिँ, लेइय अंकिहिँ, राय निय-पुत्ति झत्ति झडत अंसुय नयण, वयण एम जंपइ नगहिव तउँ जि पनूती पुन-लगि जास एह बहु गुण सु साहिव ।। धिद्धि मुझ मइ-मोह बहु, जसु एरिस अवियार वच्छे कारणि तिणि अम्हे, लेसिउँ संयम- भार ।। ५११
चालि इम कहिय रहिय-वियार, बहु लद्ध धम्म-वियार । थप्पइ सु कुमर-नरिंद, निय सयल-रज्जि नरिंद ॥ ५१२ समुहुत्त दिवस-विसेसि, किय तासु रज्जभिसेसि । सहु खमिय खामिय रोस, तसु सुयण कारिय दोस ।। ५१३ ललिअंग-रायकुमारि, सिउँ सहुअ निय-परिवारि । मुकलावि निव जियसत्तु, जिय-मोह-मयण-दुसत्तु ।। ५१४ लहु पत्त तव वण-अंति, बहु तविय तव एकंति । खण चत्त पावपमाय, हुअ सग्गि सुरवर-राय ।। ५१५||युग्मम्।।
गाथा अह राया ललिअंगो, ललिअंग चंप-नयरि-वर-रज्जं । कुणमाणो कयसुकयं, जाओ लोयाण सुह-हेऊ ॥ २६-२ अह एगया सुपुच्छिय, सुपरिक्खिय नामयं निरं सइवं ।
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सकलत्तो संचलिओ, सहपरिवारेण सारेण ॥ ५१७ निय-नयर-पियर-दसण-उत्कंठिय-नियय-हियय-साणंदो । ललिअंग- नरवरिंदो, पत्तो सिरिवास-पुर-तीरं ।। ५१८||युग्मम्।।
पद्धडी जव पत्त नयर-परिसरि नरेस । उल्लसिय चित्ति पुर-जण असेस । वद्धावइ के-वि नरराय-वीर तसु दिअइ कणय-केकाण चीर ॥ ५१९ जिम सरइ सुरहि निय-वच्छ-नेह । पंथिय जिम पावस-समयि गेह । जिम सरइ भसल पच्चय(?) जाइ जिम सरई डिभ खह-खिण्ण माइ || ५२० जिम सरइ सरोवर राजहंस जिम सरइ पुरिसवर निय सुवंस । कुलवंति जेम समरइ भतार जिम सरइ साहु संसार-पार ॥ ५२१ जिम सरइ विंझ-वण वारणिंद जिम सरइ सुसायर पुण्ण-चंद । जिम सरइ चक्क पच्चूस-काल जिम सरइ सुकोइल तरु रसाल ॥ ५२२ तिम समरिय नरवइ पुत्त-पेम | जल-सिंचिय जल-तालेरि जेम । अविलंब अंब-पिय-पुज्ज-पाय लहु नमइ नेहि ललिअंग-राय ।। ५२३ तव हरसिय निय-मणि जणणितास चिर जीव पुत्त तउँ कोडि वास ।
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इम दिती बहु आसीस जाम
नरवाहणि भुअ - विचि लिद्ध ताम ॥ ८२४
बिहु मिलिय महासुह कंठ - देस आलिंगण - रंग- सुरंग - वेस । तिणि खणि सुअ- संगमि पत्त - सुक्ख नरवाहणि पामिय जेम सुक्ख ॥। ५२५
दूहा ( राग मल्हार )
अगलिय- नेह - निवट्टहाँ, जोअण- लक्खु वि जाउ ।
वरिस सएण - वि जो मिलइ सहि सो सुक्खहँ ठाउ ॥ ५२६ मेहा मोरादादुरां० ॥ ५२७
गाथा
इअ जाणिऊण राया, जाया मंदाणराग-हिय - हियओ । जंपर कहु पुत्त तुमं, कहं ठिउ विम्हरितु अम्हं ।। ५२८ सो पहरो पाव- -हरो, सा घडिया सुकइ कम्म साघडिया | सा वेला सुहवेला, जं दीसइ पुत्त-मुह-कमलं ॥ ५२९ चालि
धन धन्न सुअ दिन अज्ज, धन धन्न इह मुझ रज्ज । धन धन्न जीविय देह, जिह मिलिउ तउँ गुण- गेह ॥ ५३० किम जाण जाणिय मग्ग निय पियर संगम सग्ग ।
किम किद्ध अम्ह बहु सार, जं मिल्हि गिउ निरधार ॥ ५३१ जं किउ अम्ह कुण दोस, तं खमि न खमि बहु - रोस । तुं पुत्त गुणहि गरि, निय-पुण्णि तिहुयणि इट्ठ ।। ५३२ हिव हुऊ पाव- विराम, सोनइ म लग्गि साम । अम्ह मिलिउ पेम - पियार, तउँ पुत्त बहु-गुण-सार ॥ ५३३
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जव रोसि रक्खिय बार, अम्हि तुम्हि किउ अविचार । तव किद्ध किम अम्ह-रेसि, निय चित्त कठिण विदेसि ॥ ५३४ म म करिसि मनि बहु भंति, अम्ह अछइ एहजि खंति । तुम्ह देह इहु सहु रज्ज, हऊँ करिसि पर-भवि कन्ज ।। ५३५ इम सुणिय नरवइ-वयण, ललिअंगह ससुयनयण । वलि वलि सु लग्गइ पाय, विण्णवइ सुणि नरराय ।। ५३६ मन धरिसि पिय एम चित्ति, अम्ह हुइ एह अजुत्ति । नवि हुइ ताय कुताय, जइ जाय होइ कुजाय ॥ ५३७ हउँ हुउ तुम्ह कुल-कट्ठि, घुण जेम गय-सुह-सिट्ठि । इत दिवस विण पहु-सेव, निग्गमिय जं अम्हि देव ।। ५३८ सिउँ बहुअ जंपिउँ आल, मुणि सामि बहु-गुण-साल । हउँ तुम्ह बहु-दुह-हेउ, हुअ अज्ज-दिण-लगि जेउ ॥ ५३९ तं खमिय मुझ अवराह, तउँ सयल भूव-वराह ।। किय भेउ चंपहरज्ज, आइसिय कोइ तसु कज्ज || ५४० मुझ दिउ तुम्ह पय-वास, म म करिसि ताय निरास । ए अछइ तुम्ह गुण-दोसि, तुम्ह लहुअ वहुअ सुहासि ॥ ५४१ तसु दिसउ जं बहु वज्ज निय-कुलह मग्गसु कज्ज । इम भणिय कुमर-नरेस धरि रहिउ मून असेस ।। ५४२॥
चतुर्भिः कलापकम् ॥ कालमुह कुमर सु पिक्खि, दिखंत निय निव पक्खि । नरवाहि निय करि वाणि (?), उववेसि निय-पय-ठाणि ।। ५४३ वद्धारि तिलयसुभालि, विचि विमलअक्खय-सालि । सिरि धारि निव निय छत्त, नच्चंत नव नव पत्त ।। ५४४ बहु धवल मंगल नारि, सवि सुहव दिति वियारि । वजंति बहुअर तूर, बहकति अगर कपूर ॥ ५४५
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[59] बहु भत्तिभोयण चंग. तंबोल- पान सुरंग । पहिरावि सवि नरराय, बहु मुल्ल नगर पसाय ।। ५४६ घणकणय कप्पडदाण, अप्पीइ बहु केकाण । मग्गणह पुज्जइ आस, दुहरोरजांइ निरास ।। ५४७ घरि घरि सुउच्छव रंग घरि घरि सुमंडियजंग(चंग?) । घरि घरि सुतोरण बारि घरि घरि सुमंगल चारि ।। ५४८ उब्भविय धयवडपोलि, बहु नारि मिलइँ सुटोलि । गायंति महु-सरि गीत, विहसीइ साजण-चीत ।। ५४९ सवि सहुय दिइँ आसीस, वद्धारि तिलय सुसीस । ललिअंग कोडि वरीस, पूरवउ जगह जगीस || ५५०
रसाउलउ नरवाहण सुअ मिलिय दुक्ख दूरहिँ टलिय । सुयण-आसा फलिय नियसुरज्ज-भर कलिय । पिसुण पविणिहि पुलिय, कित्ति चिहुँदिसि चलिय वसण सयल गयगलिय अरियण सवि निर्दलिय । ललिअंग-राय अतुलब्बलिय, सत्तुसयल पय-तुलि लुलिय मुनिराउ देवसुंदर रलिय जसु जस जंपइ बलि चलिय ॥ ५५१
चालि इम तासु दिद्ध नरेस, निय रज्ज-रिद्धि असेस । मुकलावि सह निय-लोय, मनि धरिय बहुय पमोय ॥ ५५२ सिक्खविय सह निव रीति, चल्लिउ चोखिम चीति । नरवाह सहि-गुरु-पासि, लिय चरण मन-उल्हासि ॥ ५५३ दुद्धर-महव्वय-धार, पालंति पंचाचार । नितु समिति गुपिति सुजाण, गुण गरुअ मेर-समाण ।। ५५४ लहु खविय घाइअ कम्म, किय सहल जिण-मुणि-धम्म । पामिउ ति तिजय-प्पहाण, रिसि-राइ केवल-नाण ॥ ५५५ तिहँ थका बहु-परिवारि, सिरिवास-नयर-मझारि । नवकप्प करइ विहार, बुझ्झवइ भविय अपारि ।। ५५६
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ललिअंग रंगिहि ताम, सह भज्ज सुह-परिणाम । पडिवजइ सावयधम्म, धुरि बोधि सोधि सुरम्म ।। ५५७ वलि नमिय निय-गुरु-पाय, बहु-धम्म-लद्ध-पसाय । पत्तउ सगेहिणि गेहि, रसि रमइँ दुइ बहु-नेहि ॥ ५५८ भोगवइ बहुअ विलास, पूरवइ जग सहु आस । पालंति निरतीचार, निय-देस-विरइ-वियार ॥ ५५९ कारवइ वर प्रासाद, गिरि-मेर-सिउँ लइ वाद । वित्थरइ जगि जस-साद, नव-खंडइ नरवइ-नाद ॥ ५६० दिइ सत्त-खित्तिहिँ दाण, निय देव गुरु बहुमाण । ललिअंग पुण्य-पसाइ, हुय रज्ज दुन्निह राय ॥ ५६१ बहु दिवस पालिय धम्म, अणुसरिय अणसण रम्म । ललिअंग सग्गि विमाणि, हुय देवलोकि पुण्य प्रमाणि ।। ५६२ वलि बय पुण्य पयासि, सुहि लहिय नरभव-वास । महाविदेहइँ देव, लहस्यइ ति सिद्धि सु हेव ।। ५६३ पुण्यइ ति धणकण-रिद्धि, पुण्यइ ति पयड प्रसिद्धि । पुण्यइ ति राणिम राज, पुण्यइ सरइँ सहु काज ।। ५६४ पुण्यइ ति सग्ग-विमाण, पुण्यइ ति पंचम-ठाण । जर्गि पयड पुण्य पवित्त, ललियंग-राय-चरित्त ।। ५६५ महिमहति मालवदेस, धण-कणय-लछि-निवेस । तिहँ नयर मंडव-दुग्ग, अहिणवउ जाणि कि सग्ग ।। ५६६ तिहँ अतुल-बल गुणवंत, श्री ग्यास-सुत जयवंत । समरथ साहस धीर, श्रीपातसाह-निसीर ॥ ५६७ तसु रज्जि सकल प्रधान, गुण-रूव-रयण-निधान । हिंदूआ राय-वजीर, श्रीमुंजमयणह वीर ।। ५६८ सिरिमाल-वंसवयंस, मानिनी-मानस-हंस । सोनी राय-जीवन-पुत्त, बहु पुत्त-परियर-जुत्त ।। ५६९ श्रीमलिक माफर पट्टि, हयगय सुहड-बहु-थट्टि ।। श्रीपुंज पुंज नरिंद, बहु-कवित-केलि-सुछंद ।। ५७० नवरस-विलासउ लोल, नव-गाह-गेय-कलोल ।
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________________ [61] निय बुद्धि-बहुअ-विनाणि, गुरु धम्म- फल बहु जाणि || 571 इहु पुण्यचरिय प्रबंध, ललिभंग - नृप संबंध / पह-पास-चरियह चित्त, उद्धरिय एह चरित्त / / 572 दसपुरह नयर मझारि, श्री संघ- तणइ आधारि / श्री शांतिसूरि सुपसाई, दुहदुरिय दूरि पला' / / 573 जं किम वि अलिय असार, गुरु लहुअ वर्णविचार / कवि कविउं ईस्यर सूरि, तं खमउ बहु-गुण सूरि // 574 ससि-रस-सुविक्कम-काल, ए चरिय रचिउँ रसाल / जाँ धूअ रवि ससि मेर, ताँ जयउ गच्छ संडेर / / 575 वाचंत वीर- चरित, वित्थरउ जगि जय-कित्ति / तसु मणुअभव धन धन्न, श्रीपासनाह प्रसन्न / / 576 // इति श्रीललितांगनरेश्वरचरित्रं समाप्तं / तस्मिन् समाप्ते समाप्तोऽयं रासक-चूडामणि-पुण्यप्रबन्धः / / तथाऽत्र रासके श्रीललितांगचरित्रे प्रथम गाथा, (1) दूहा, (2) साटक, (3) षट्पद, (4) कुंडलिया, (5) रसाउला, (6) वस्तु, (7) इंद्रवज्रोपेन्द्रवज्रा काव्य, (8) अडिल्ल, (9) मडिल्ल, (10) काव्याद्धबोली, (11) अडिल्लार्ध बोली,, (12) सूडबोली, (13) वर्णनबोली, (14) यमकबोली, (15) छोटड़ा दूहा, (16) सोरठी / ---x