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म. दिट्ठी जण मुहि सुणिय जेअ । इम सुणिय ते वि निप्पंद नयण हुअ सुणइँ सव्व तसु पक्खि-वयण ॥२७६
अह अच्छइ अमरावइ-समाण दिसि पव्वि अपव्व सु-नयरि-ठाण । गय-कंप-चंपनयरि हिँ पसिद्ध बारसम सु-जिणवर जिहँ सु-सिद्ध ॥२७७ तिहँ धम्म-नाइ-निउणेगरज्ज साहसिय सूरसुंदर सकज्जु । विहि दिद्ध सिद्ध सच्चत्थ-नामि रेहइ नि-राय जियसत्तु-नामि ॥२७८ गुणधारणि धारणि नाम तास बहुरूव कल तु-कला-निवास । तसु पुत्तिय पुप्फावइ सु-नाम पिय-माय सु-परियर पेम-धाम ॥२७९ रूपिहिं करि जाणि कि रंभ एह नव-वेस कलागम-गण-सुगेह । बहु-भरह-भाव-संगीय-सारि सारय किं मनावी तीणि हारि ।।२८० इक जीहि सु-कवियण तासु रूव वण्णवइ विबुह बहु-सम-सरू व । तं तह-वि तासु सिंगार वेस वण्णवि सुविसेसि हि गुण असेस ॥२८१
अडिल्ल जस कम-कसल विमल-कमलुप्पम उरु ऊरत्थल रंभ-थंभ-सम । तणुतरु-साह बाहु किमि दिप्पड़ मिउ मिणाल मच्छर-भरि जिप्पइ ॥२८२
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