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गगनगतिछंद जिप्पंति कणय कि कुंभ थणहर हार निम्मगि सोहए कडि-लंक किरि हरि कणय-किंकिणि-नादि तिहुअण मोहए । मझंग खीणि कि पीण उरवर भमर भोगि कि भंगिया । बहु हावि भावि कि रमइ नव-रसि नवल परि नव-रंगिया ॥२८३
रिमिझिमि रिमिझिमि नेउर-सद्दहिँ किरि अणंग निस्साण विनद्दहिँ । चलंती चतुरंग चमू-बलि मंडइ मयण महा-रसि रइ-कलि || २८४
छंद कलियलइ कोइल जेम कलरव हंस-गइ मय-लोअणी कलकीर नासा-वंस निरुपम कुसुमसर-भर-भोइणी । दिप्पंति अहर पवाल-कुंपल दसण दाडिम-पंतिया मुह-कमल विमल कि पुण ससहर कमल-कोमल-कंतिया ॥२८५५
दूहउ
कर असोग-नव-पल्लव-समसरि कुंकुम-करल-लोल अंगुल वरि । कररुह कंति तत्वतर तंबह सम सरीरि करवीर कि कंबह ॥ २८६
छंद करवीर-कंब कि कंबु-कंठिय सवण सर हिंडोलया । चलवलंति कुंडल चंद-रवि-जिम पहिरि पवर सु-चोलया । कडि कसण कंचुअ कवच काम कि भमुह गुण-कोदंडीया तिणि वेधि सरसरि समरि सुरनर कवण किवण न खंडिया ॥ २८७
वेणि-दंड विसहर किरि वासुकि हरि-वाहण-भय किय-नव-वास कि । भरणि-भूअ-भय-भीय कि ससहरि सामी-सरण लिद्ध जिम ससहरि ॥२८८
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