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गाथा
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परिपालिउण सुचिरं, दाणगुणं गुण-दुमस्स मूलं च । किविण-कुढारेणं, किं छंदसि छेय छल भत्थे । ८३ धीरतं सूरतं सुयर - कोलाइएस जीवेसु सलहिज्जइ किं न पुणो, दाणं दोघट्ट -रासु ॥ ८४
यतः
सूरोसि परदल - भंजणो सि गुरुओसि भद्दजाउसि । दाणेण विणा सुंदरि, न सोहए दंत निक्करडी ॥। ८५ (क) (भद्दकुले उप्पन्नो, उत्तुंगो राय - बार- सोहणओ । दाणेण विणा सुंदरि, न सोहए दंत निक्करडी ॥८५) (ख) उड्डाह - तिरिय- भुवणे, कित्ति परिपेसिऊण दाणेण । संपइ संपइ - लुद्धस्स, कोवि तुम पगइ पल्लट्ठो ॥८६ संगह - परो समुद्दो, रसायलं पाविऊण संतुट्टो । दाया पुण उवरिं, गज्जइ भुवणस्स जलहरो ॥८७ एवं निसम्म कुमरो, दूमिय-हियओ हओव्व बाणेण । मग्गण-मुह-कोदंडय-निग्गय- अववाय-रूवेण ॥८८ चितइ हा कीस अहं, पडीओ खलु वग्घ-दुत्तडी -नाए । अहवा किरि सप्पेण गहिया छुच्छंदरी व्व जहा ॥ ८९ ॥ युग्मं अह गिलइ गिलइ ऊअरं० ॥९०
इक्कत्तो रुअइ पिया, अन्नत्तो समरतूरनिग्घोसो |
पिम्मेण रण-रसेण य, भडस्स दोलाइअं हिययं ॥ ९१
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दूहउ भरउँ त भारी होइ, आधउँ करउँ त झलहलइ ।
बिहुँ परि विसमउँ जोइ, नवि लेती नवि मेल्हती ॥९२
पद्धडी छंद
चितवs कुमर निय चित्ति एम बिहुँ गमि गुरु-संकडि करउँ केम, इक्कइ दिसि नरवइ - आणभंग, अन्नि-वि दिसि विणसइ कित्ति चंग ॥९३
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