________________
[43]
ललिअंगि रंगि ललियंग जाम तव अच्छइ रयणि समद्ध जाम ॥ ४०४ नवि पेसिय परिसर मयि(?) कोइ ललिअंग-भुवण वर पत्त सोइ । उग्घाडिय लहु संपुड-कवाड विण्णवइ विणय-गुरु-वयण-चाड || ४०५ जय विजयवंत चिर जीव देव बुल्लावइ तुम्ह नरराय हेव । पर पेमि किंपि पुच्छइ सुवत्त । पर-टु लट्ट गिह-रज्ज-सुत्त ॥ ४०६ पाधारउ पहु पिय पंथ मज्झि नितमंत जेम नवि पडई वज्जि । ससि-जुण्ह जूअमिव मंत चोर जिय दिवस गुत्त घण करइ जोर || ४०७ इम सुणिवि सवणि उट्ठिउ पयंड करि करवि कुमर करवाल-दंड । खलकंति चूडि चल-पाणि पाणि तव झल्लवि पल्लवि कुमर राणि ॥ ४०८ इम जंपइ नाह म होसि मुद्ध। . इम जाइ कोवि संपइ अबुद्ध । तव बुल्लइ कुमर सुणीइ-मम्म किम पलइ रमणि इम सामि-धम्म ॥ ४०९
गाथा (श्री महान(नि)सीथे ।) आएसमवी साणं, पमाण-पुव्वं तहत्ति नायघं । मंगलममंगल वा, तत्थ वियारो न कायव्वो ॥ ४१० इणमेव जीवियव्वं, निच्चं सुअ-भिच्च-सीस-रयणाणं । जं पुज्ज-पियर- सामिअ-गुरूण मुह वाय-कारित्तं ॥ ४११
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org