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[8] वित्तं पि तम्मि काले, विहि-वसओ वसणढुक्किए पुरिसो । गय-तेयं पिव पुरिसो, पडिभासइ जह य इंगालो ॥६६ ता पुत्त नियय कुल- रज्ज-सार-निव्वाह-खम-गुणं । (सुगुणं) साहारणं समाणं, समायरसु सव्व सुहकरणं ॥६७ अह सुणिय राय-सिक्खं, कुमरो चिंतइ हियय-मज्झमि । धण्णोहं पुण्णोहं, जेणमिमं सिक्खए ताउ ॥६८ गुरु-पियर-सिक्खणाओ, नत्थि परं अमियमिह जए पवरं । तस्सोपेक्खा समावि नत्थि परं कालकूड-विसं ॥६९
एक नियजणय अनि वली, सिक्ख दीइ गुरु जेम । संख अनिइ खीरइ भरिउ, इक सुरहउ नि हेम ॥७० अमिय-रसायण-अग्गली० ॥७१
वस्तु इम पसंसिय, इम पसंसिय, पुज्ज पिय-पाय, रायहँ घरि रमलि-रसि, रायहंस-समवडि कुमर हरि, तिगि चच्चरि चहुटइ रमइ, भमइ खिल्लइ सुपरि परियरि तणु वियरण-वसि वित्थरिउ, पुणु झुणि तसु अववाउ मुहि तिन्हा बुंठा परइ, मग्गण एह सहाउ ||७२
अडिल्ल-दूहा मग्गण जण जंपति कुमरवर, तुअ सम कोवि नहीँ जगि नरवर । दाणि दलिद-डारण दाणेसर, अढलिक अकल अंगि अलवेसर ७३
हाटक छंद अलवेअर अणुपम अवनि अनग्गल अचल-दाण गुणवीर, जसु कर किरि अंब सदा-फल कलरव मग्गण कोइल कीर, कप्पतरु-जमलि हुई जग मज्झिहि हुअउ सु केम करीर, ललियंग-कमर वर सणि विण्णत्तिय समरथ साहस-धीर ७४
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