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तव पर्यपि तव पर्यपि सुयग्ण सुवहास, कासु जल कित्ति वर, कुमर सच्च धण धम्म कामिय, धम्मपभाविहिँ सहु वली, रज्ज-रिद्धि तइँ तुरीय पामिय, मिल्हि तुरय मुझ हुउ तुरिय, सेवक जि आजम्म, कुमर भइ सिउँ रे वली हुअइँ उवरिआ कम्म || १७६ दूहउ
रज्ज रमा रामा सुधण पाणह - सुं जइ जाइँ |
तउ पणि वाचा आपणी, सुपुरिस ऊरण थाइँ ॥ १७७ षट्पद वचनि छलिउ बलिण्ड वचनि कुरव कुल खोयु ॥ १७८
दूहउ
गय घोडा थोडा नहीं, रह पायक बहु संख ।
घणीवार इणि जीवि सहु पाम्या वारि असंख ॥ १७९
गाथा श्री उपदेशमालायां
पत्ता य कामभोगा० | १८०
जाणीय जहा भोगिंद संपया० । १८१ पद्धडी छंद
घोडानुं कहि सुं गजउं मूढ, संभलइ वत्त जइ बहु-अ गूढ । इणि जीव अणंतीवार एह. पत्तां धण जुळवण सयण गेह ।
नह दंत मंस केसट्ठिरतं, गिरिमेरु सरिस इणि जीवि चत्त । हिमवंत - मलय - मंदर - समाण, दीवोदहि- धरणि- सरिस प्रमाण ॥ १८३
आहारि न पहुउ जीव एहि, भवि भवि बहु परि नव-नवइ देहि ।
थण खीर- नीर पिद्धां जकेवि, सायर सरि सरिय न पार ते वि ॥ १८४
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बहु कामभोग सुर नरविलास, केवली न जाणइ पार तास ।
किणि कारण तउ दुख धरइ जीव, बहु पडिय अवस्था होइ कीव ॥ १८५
गाथा
जं चिय वइणा लहियं ० ॥ १८६
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