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________________ [ 45 ] तिम पच्छावि पसत्थ पवर पंडिय सेवय- जण । पेसिय राय समीत्रि सुयण सच्च तुम्ह अणुयर किज्जइ अप्पण - काम सामि सिउँ जंपउँ बहुअर || ४१७ चालि इम सुणवि सर्वाणि उदार, तसु वयण अमिय कुमार चितइति नियमणि तुट्ठ, अह रमणि गुणह गरिठ ॥ ४१८ धन धन मुझ अवयार, संसारिंग ससपयार (2) धन धन्न इह मुझ रज्ज, जसु सुहिय एरिस भज्ज ॥ ४१९ धन धन्न सुललिय वाणि, बहु-विणय-गुण- गुरु माणि । धन धन्न सुचरिय सील, दुह-वल्लि - मूलनि कील ॥ ४२० आसन्न -रण-रस-रंगि, बहु - मूढ - मंत - कुसंग । जोईइ जसु सुह वयण, सुजि पुरुस इत्थिय - रयण ॥ ४२१ मणि धरीय इम तसु सीख, अव सरिय इक्क दुइ वीख । बुल्लावि सुयण ससबंधु, सहु कहिय कुमरि निबंधु ॥ ४२२ पट्टविय पहु छल- - रेसि, तसु दुट्ठ कम्म-विसेसि । अहमयि पत्त सुजाम, निव मुत्त जणि झुणिताम ।। ४२३ हवि हणिउ खग्ग - पहारि, तसु पाव-बुद्धि वियारि । हुअ सव्वलोय - उहाणि, पर-चिति अप्पण हाणि ॥ ४२४ तव हुआ कलियल सद्द, घण घोर काहल - नद्द । धाया ति धसमस धीर, कोइ हणिउ घायगि वीर ॥ ४२५ तं सुणिय सुयण - विणास, ललिअंग पुण्ण-पयास । गलयलिय - कंठि कुमारि इम भणइ पिय अवधारि कहि पाण- पिय तम हेव, जइ कहिउं करत न देव । किम हुंत अबला बाल, विण कंत काम रसाल ॥ ४२७ विण - नाह नारी हीण, जिम हुइ दुत्थिय दीण 1 नवि करइ कोइ तसु सार, विण पाणनाह - आधार ॥ ४२८ ४२६ दूहा नाह - पखइ नारी जिसी, जिम दव - दाधी वेलि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229285
Book TitleIsarsuri Virachit Lalitanga Charit apar nam Rasak Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages61
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size788 KB
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