SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [59] बहु भत्तिभोयण चंग. तंबोल- पान सुरंग । पहिरावि सवि नरराय, बहु मुल्ल नगर पसाय ।। ५४६ घणकणय कप्पडदाण, अप्पीइ बहु केकाण । मग्गणह पुज्जइ आस, दुहरोरजांइ निरास ।। ५४७ घरि घरि सुउच्छव रंग घरि घरि सुमंडियजंग(चंग?) । घरि घरि सुतोरण बारि घरि घरि सुमंगल चारि ।। ५४८ उब्भविय धयवडपोलि, बहु नारि मिलइँ सुटोलि । गायंति महु-सरि गीत, विहसीइ साजण-चीत ।। ५४९ सवि सहुय दिइँ आसीस, वद्धारि तिलय सुसीस । ललिअंग कोडि वरीस, पूरवउ जगह जगीस || ५५० रसाउलउ नरवाहण सुअ मिलिय दुक्ख दूरहिँ टलिय । सुयण-आसा फलिय नियसुरज्ज-भर कलिय । पिसुण पविणिहि पुलिय, कित्ति चिहुँदिसि चलिय वसण सयल गयगलिय अरियण सवि निर्दलिय । ललिअंग-राय अतुलब्बलिय, सत्तुसयल पय-तुलि लुलिय मुनिराउ देवसुंदर रलिय जसु जस जंपइ बलि चलिय ॥ ५५१ चालि इम तासु दिद्ध नरेस, निय रज्ज-रिद्धि असेस । मुकलावि सह निय-लोय, मनि धरिय बहुय पमोय ॥ ५५२ सिक्खविय सह निव रीति, चल्लिउ चोखिम चीति । नरवाह सहि-गुरु-पासि, लिय चरण मन-उल्हासि ॥ ५५३ दुद्धर-महव्वय-धार, पालंति पंचाचार । नितु समिति गुपिति सुजाण, गुण गरुअ मेर-समाण ।। ५५४ लहु खविय घाइअ कम्म, किय सहल जिण-मुणि-धम्म । पामिउ ति तिजय-प्पहाण, रिसि-राइ केवल-नाण ॥ ५५५ तिहँ थका बहु-परिवारि, सिरिवास-नयर-मझारि । नवकप्प करइ विहार, बुझ्झवइ भविय अपारि ।। ५५६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229285
Book TitleIsarsuri Virachit Lalitanga Charit apar nam Rasak Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages61
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size788 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy