________________ [61] निय बुद्धि-बहुअ-विनाणि, गुरु धम्म- फल बहु जाणि || 571 इहु पुण्यचरिय प्रबंध, ललिभंग - नृप संबंध / पह-पास-चरियह चित्त, उद्धरिय एह चरित्त / / 572 दसपुरह नयर मझारि, श्री संघ- तणइ आधारि / श्री शांतिसूरि सुपसाई, दुहदुरिय दूरि पला' / / 573 जं किम वि अलिय असार, गुरु लहुअ वर्णविचार / कवि कविउं ईस्यर सूरि, तं खमउ बहु-गुण सूरि // 574 ससि-रस-सुविक्कम-काल, ए चरिय रचिउँ रसाल / जाँ धूअ रवि ससि मेर, ताँ जयउ गच्छ संडेर / / 575 वाचंत वीर- चरित, वित्थरउ जगि जय-कित्ति / तसु मणुअभव धन धन्न, श्रीपासनाह प्रसन्न / / 576 // इति श्रीललितांगनरेश्वरचरित्रं समाप्तं / तस्मिन् समाप्ते समाप्तोऽयं रासक-चूडामणि-पुण्यप्रबन्धः / / तथाऽत्र रासके श्रीललितांगचरित्रे प्रथम गाथा, (1) दूहा, (2) साटक, (3) षट्पद, (4) कुंडलिया, (5) रसाउला, (6) वस्तु, (7) इंद्रवज्रोपेन्द्रवज्रा काव्य, (8) अडिल्ल, (9) मडिल्ल, (10) काव्याद्धबोली, (11) अडिल्लार्ध बोली,, (12) सूडबोली, (13) वर्णनबोली, (14) यमकबोली, (15) छोटड़ा दूहा, (16) सोरठी / ---x Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org