SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 48
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - [48] तिणि प्रस्तावि ते श्रीललितांगकुमार आपणउ सकल दल मेली राजा सामुहउ आविउ, आवतउ जि श्रीजितुशत्रु-राजाई बोलाविउ, काँइ रे कोरी !, तइँ आपणा कुलतणी वात चोरी, माहरी पुत्रिका-तणउँ पाणि-ग्रहण कीधउँ, तउँ इणि वातइँ त माहरु सिउँ काम सीधउँ, पिण हिव जोई 'माहरी वात, करउँ जि ताहरु घात, तउ इम जाणे ए भलउ महारात ॥४४५ तिवारइ इस्याँ महराय-तणाँ वचन श्रवण-संपुटि धरी, दक्षिणहाथि खड्ग सज्ज करी, [छि वल घालि, सामहउ चाली, वलतुं श्रीललितांग-कुमरि राजा बोलाविउ, महाराज साँभलि राजनीति, उत्तम पुरुष कदापि न पडइ छीति, पाणि जइ सूर सूर-आगलि भाजइ, तउ आपणउ उनम वंस लाजइ ।। ४४६ संग्रामि चड्या क्षत्रिय न गिणइं संग पण न सगाई, पिण एक वार मुझ सिउँ संग्राम कीधा विण तुम्हे एवडी वात कोइ फुरमाई, इम कही नि अन्योन्य राजा नइँ कुमर हस्या, स-दंडायुध लेई परस्परइ सुभट सुभट प्रति साम्हा धस्या, हुवा लागउँ जूझ, किसँ वर्णवि अबूझ, वात कहताँ रोमांच ऊपजइ अंगि, ते राउत भला जे झूझि रणांगणि रंगि ।। ४४७ पद्धडी गय गजवर हयवर हय जुडंति रह पायक पायक-सिउँ भिडंति । झल हलइ खग्ग खर करि कराल जाणीइ कि अहिणव विज्जु-झाल ।। ४४८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229285
Book TitleIsarsuri Virachit Lalitanga Charit apar nam Rasak Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages61
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size788 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy