Book Title: Isarsuri Virachit Lalitanga Charit apar nam Rasak Chudamani
Author(s): H C Bhayani
Publisher: ZZ_Anusandhan
View full book text
________________
[26] पड्डलय पारिजातक पवर, पिष्फलि पिपलि साखि सहु फोफलि सुफांगि-कूड फणस, बल बोलि बोरि बाउलिय बहु ।। २६७ बीजउरी बहुफली भंग भल्लातक भंगिय मिरिच मयणहल मरुअ मुंज महु मुरुडा सिंगिय ।। राइणि रोहिणि रयणिसार रत्तंजणि रासमि चंपक चारु लवंग हिंगु हरडई समि सीसमि ।। वड वरुण वउल वउल सिरिय, किरि वसंत संपइँ वरिय नवनवइ भारि वणसइ तिहाँ, बहुअ सु-फल-फुलिहिँ भरिय ॥२६८
चालि इम भमइ ते वणसंड, मय-मत्त गय वण-संड ।। बहु वाघ वि रुहुअ सीह, तिहँ फिरइ अकल अबीह ॥२६९ तिहाँ घूअ घू धू सद्द, सुणीइ ति किन्नर-नद्द । वासंति महु-रवि मोर, कल कीर चतुर चकोर ॥२७० कोइल सु-कलरवि राग, आलवि पंचमराग । अहिणव कि वरसइ मेह, संभरइ पंथिय गेह ॥२७१ महमहइ मलयसु-वाइ, बहु-गंध चंपय जाइ । गिरि झरई निर्झर वारि, जाणीइ सर तरवारि ॥२७२ इम थुणि वणि ललिअंगि, बहु रयणि वड-तीड-संगि । सुत्तइ सुणिउ नर-सद्द, भारंड-पक्खि -विवद्द ।।२७३
पद्धडी इत्थंतरि तसु निग्गोह-ठामि, बहु मिलिय पक्खि भारंड-नामि। अन्नोन चवइ ते मणुअ-भाखि। निय-निय-मालइ ठिय वङ-सु-साखि ॥२७४ कछु दिठउँ जं जिणि अइ-अपुव्व । कोऊहल किंपि सुणिउ ति सव्व ॥ तसु मज्झिहिँ बुल्लिउ इक्क पक्खि । सवि सुणउ ति कलियल सद्द रक्खि ॥२७५ जं कहउँ वत्त अपुव्व एअ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61