Book Title: Isarsuri Virachit Lalitanga Charit apar nam Rasak Chudamani
Author(s): H C Bhayani
Publisher: ZZ_Anusandhan
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अह चंपाए जियसत्तु - राय पुत्तीइ कर गहेण फलं । भावि भवम्मि ईहेव-य तमुवक्कमकरण मह झति ॥ ३१५
दूहउ
मुंन करताँ नहु कलह० || ३१६
पद्धडी
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इम चितिय चित्तिहिँ कुमर - वीर, तसु पक्खि पक्खि संलीण धीर । वाहिय तिहँ सुहि रयणि सेस, पच्चूसि पत्त चंपह पएस ॥ ३१७ पक्खालिय सरवरि हत्थ - पाउ, तसु उववणि लिय फल-फुल्ल-साउ । चल्लिय चंपापुर पुव्व - बारि, पडु-पड़ह - घोस- वयणाणुसारि ॥३१८ तिह लहिय इक्क वाच सिलोग, जिह उब्भा बहुअर रज्ज - लोग । जे पुरिस सुपोरिस राय - कण्ण, जच्चंध नयण सज्जइ सु धन्न ॥३१९ तसु दिइ राय अद्धंग - रज्ज, तसु होइ सावि अर्द्धग-भज्ज ।
इम वच्चिय मच्चिय पुव्व - पेमि, पत्तउ पुर-भितरि कुमर खेमि ॥३२० तं जाणिय राय - निउत्त- पुंस, इम बुल्लइँ जय जय निव-वयंस । तुअ मण मणोरह पुण्णदेव, मग्गइ ति पुरिस- वर इक्क सेव || ३२१ इम सुणिय राय हरसिय अपार, तसु दिद्धउ बहुअ पसाउ फार । उक्कंठिय निव- दंसणिहिँ तासु, सहसक्ख जेम मन्नइँ नियास ॥३२२ तं पक्खिय बहु-गुण-रूव- रूव, मनि चमकिउ चिंतउ एम भूव । किं सुरवर किं विज्जाहरिंद, कइ ईस बंभ गोविंद चंद || ३२३ आलिंगण-रंग- सुरंग - भूव, निय मुणइ सहस - भुअ जिम सरू त । इणि कारण ते निय- सुपासि, ललिअंग - कुमर - वर दीवियाल ॥ ३२४ किं नंदी किं पुणु नलनरेस, किं विक्कम विक्कम-गुण-असेस । किं मयण रूधर दिठ्ठ एउ, जं दिज्जइ उप्पम लहइ तेउ || ३२५ इम राय कुमर - अणुराय - गिद्ध, धाई धुरि तसु परिरंभ किद्ध । उच्छंगि लेई पुच्छइ नरिंद, तुम अच्छइ कुशल ति कुमर - इंद ॥ ३२६ इहु देस नयर वर गाम ठाम, बहु रुज्ज - रिद्धि-भर - भरिय धाम | मह सव्व एह निय-चलण-ठाण, दितइ ति किद्ध तइ सफल -माण ॥ ३२७ कहु कवण कुमर तुम्ह कवण देस, पिय माय भाय परिघर - निवेस | कुण नयरि वसउ तुम्ह सुह-निवास,
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