Book Title: Isarsuri Virachit Lalitanga Charit apar nam Rasak Chudamani
Author(s): H C Bhayani
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 52
________________ [52] जामाय-सरिस जं तुम्ह झूझ, तं जाणि जाणि बहिरेण गुज्झ । रोपीइ जइ वि विसतरु नियाणि, छेदिज्जई नियकरि किम वियाणि ।। ४८० जोइँइ तिल्ल तिल्लह कि धार, नवि होइ राय अविचार-सार । चाहीइ चतुरपणि मूल मम्म, अविमासिय किज्जइ नवि सुकम्म ॥ ४८१ संभलिय वयण म पतिज्ज कोइ, . इकि हुअ अकारण दुयण लोइ । पर-विग्ध-तुट्ठि नारद्द नामि बहु अच्छई सुरनर भुवण-ठामि ।। ४८२ गाथा तं नत्थि घरं० ॥ ४८३ सुणीयंमापत जसि ॥ ४८४ दहउ सज्जण थोडा हंस जिम, उर्ल्डके दीसंति । दुजण काला काग जिम, महियलि घणा भमंति ॥ १८५ पद्धडी . तिणि कारणि अप्पइ अप्प जोइ मणि चिंतिय कि-त्तिम हेउ कोइ । जय राय-राय जिम पडसि दावि गुरु अंबसुतरु गुण पच्छतावि ।। ४८६ पुछइ नरिंद दिठंत तासु सु जि कहइ मंति बहु मतिविलासु । सहु सुणिय सर्भितरि चरिय चित्त जियशत्रु-राय मणि भयउ चित्त ॥ ४८७ उप्पन्न वेग संवेग भूव पुच्छावइ तसु कुल जाइ रूव । ललिअंग-कुमर हसि भणइ मंति तुम्हि किउ सच्चउ ओहाण अंति ॥ ४८८ गिह पुच्छउ सिउँ पीएवि नीर न कहंति एम निय-वंस वीर । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61