Book Title: Isarsuri Virachit Lalitanga Charit apar nam Rasak Chudamani
Author(s): H C Bhayani
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 50
________________ [50] इकइक्क के-वि जाणइँ न सार । भज्जंत भूव-दलि दिट्ट पुट्टि जोअंति कुमरि तव सहिय पुट्ठि ॥ ४५६ अथ वीररस । मध्ये शृंगारान्तर्भाव ॥ अवसहूतरा अहुठिया दूहा ॥ सहीए देवि न दाहिणइ, करि करवाल करंत ।। ओ झूझइ ललियंगि वर, नाना कंत ॥ ४५७ कंत कोइ भड भीम वरि किम पुज्जई व सुरेस । अलिय म जंपिसि बहिनि तउँ, नाना मरेस ।। ४५८ कुमर नथी रायह भणइ, तू-विण अवर न कोइ । मुंधि मयण समरूपि तु, नाना सोइ ।। ४५९ सोहि समरथ सामी सकल, रूपिहिँ अहिणव काम । वलि वलि पूछउँ हे सही, तासतणउँ सिउँ नाम ॥ ४६० नाम लिउँ सखि तसु तणउँ, जइ हुअइ अइ हियडा दूरि । उवालंभ वर अम्ह तगउँ, रमइ ति रण-रस-पूरि ।। ४६१ अथ सहनामा दूहा ॥ रागाँसविहुिँ जेउ धुरि, तिणि नामिइ सहि नाम । तसु अग्गलि अंगेण सिउँ, सहिय सुणावे सामि ॥ ४६२ रूडा नामइ अच्छ जसु, तसु नामइ सहि नाम तसु अग्गलि अंगेण, सिउं सहिय सु० ॥ ४६३ हयवरि चडिउ तिहाँ सुलई, हक्कई अरियण थट्ट । हुं बलिहारी प्रिय- तणइँ, दूरि नडंती नट्ठ । राग नाट नट्ट-भंजण रिपु-जलण, सहिय हमारा कंत । रणि सूरौं घरि मागताँ, हसि हसि प्रेम मिलंति ॥ ४६५ मह कंतह दुइ दोसडा, अवर म झंपु आल | दिज्जंतई हउँ ऊगरी, जुझंतइ करवाल ।। ४६६ राग सिंधूडउ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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