Book Title: Isarsuri Virachit Lalitanga Charit apar nam Rasak Chudamani
Author(s): H C Bhayani
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 31
________________ [31] पद्धडी तव वलतउँ बुल्लइ खयर पाग सिउँ अछइ इह पिय- रज्ज- माग । पर पेमिहिँ पूछउँ ताय तुज्झ ।। विज अंग अवर कुण कहई मुज्झ ॥ ३०४ इम पुच्छिय तिणि तसु कम्म-जोगि विण पुनिहिं किम हुइ जोगि जोगि । ललियंग सुणताँ तासु वयणि इम जंपइ तव भारंड सउणि ॥३०५ सिलोगा दिव्व-नाण-प्पहाजोसो, पक्खि-राउत्ति जंपए । वच्छ आमूलउ एसा, वड-वेढि पुज ठिया । वल्ली जाचंध-दोसा पु(?)-मूल-भल्ली वियाहिया । रस-सेगाउ एयाए, नव-चक्खू नरो भवे ।। ३०७ ।। युग्मम् नाय-पच्चूस-कालम्मि, कत्थ गतासि जं पुणो । पुत तत्थेव जत्थत्थि, कोऊहलमिणं घणं ॥ ३०८ . अन्नमन्नत्ति बिंताणं, ताणं निद्दा समागया । कुमारो-वि वड-हेत्थो, सोच्चा चिंतेइ कि इमं ॥३०९ सच्चं वा किमु वा भंती, कावि एसा ममं जओ । धम्मो जग्गेइ जंतूणं, सव्व-दुक्ख-निकंदणो || ३१० ॥ युग्मम् नाणस्स पच्चओ सार-महो वा किं विचिंतणं । इअ निच्छित्तु तं वल्लिं, मुणित्ता हत्थ-फासओ ॥ ३११ छित्तूण छुरिघाएणं, वट्टित्ता पत्थरेण य । चक्खु-कूवे रसंतीए, निहित्ता सुत्तओ खणं ॥ ३१२ युग्मम् गाथा अह तक्खणं सुसज्जुय, नीलुप्पल-नयण-वयण पसिचंगो । कुमसे पासइ सव्वं, नाणी व विसेस-दिट्ठि-जुओ ॥ ३१३ तत्तो विम्हिय-चित्तो पमुइअंगत्तो मणम्मि चिंतेइ । धम्म-तरु-संस-जणिअं फुल्लं खलु जायमिणमसमं ॥ ३१४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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