Book Title: Isarsuri Virachit Lalitanga Charit apar nam Rasak Chudamani
Author(s): H C Bhayani
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 30
________________ [30] सोरंभहीण कनकह कीउ तियसलोय विब्भम भुयउ हा हा जि दैव करता पुरिस, ठामि ठामि भुल्लवि गयउ ॥ २९४ गाथा इह ताव निसग्गेणं, चिंताए पुत्तिया हवइ पुणो । सविसेस-कुविहि-णी दूसिय-देहा इमा जयह ।।२९५ जामं(जम्म)तीए सोगो वटुंतीए वड्डए चिंता० ॥२९६ वस्तु इम विमासिय इम विमासिय वसुह-वर-बुद्धि । जसु संवर कारणिहिँ, नयर-मज्झि पडहु वज्जाविय । नयर-लोय निस्सोय सवि, सुणउ वयण निय-मणि सुहाविय ॥ जेउ करइ कुमरी-तणां, नयण-कमल लहु सज्ज वरइ तेउ तीह कपणसिउं लच्छिसमिद्धह रज्ज ॥ २९७ दूहउ कोइ नच्चाविउ नवि गयउ, छविउ न पडहर कीणि । विहाणइ हउँ जाइसु तिहाँ, पक्खिय-कारणि तीणि ॥ २९८ पद्धडी हम कहिय पक्खि जव रहिउ, मूनि पुच्छिउ तव पक्खिइ इक जूनि । कहु ताय तीइ जच्चंध-दिट्ठि, किम होस्यइ अहव न नयण-सिद्धि ।।२९९ तव बुल्लिउ वड-भारंड-राउ, तउँ कि पि न जाणइ लहुअ जाउ । मणि-मंत- महोसहि बहु-पभाव, जगि अछइँ नव-नव-गुण-सहाव ।।३०० जउ पुण्ण-जोगि गुरु जोग होइ, तव लहइ न तसु गुण-पार कोइ । इम सुणिय सउणि वलि पुट्ठ एम, कहु कामिय-गामु असोजि केम||३०१ वलि कहइ विहंगम-राउ मुद्ध, जउ पुच्छसि तउ वलि कहउँ सुद्ध ।। पिण रयणि इक्क वलि सुन्न रण्ण, बुल्लंताँ वाडइ होइ कन्न ॥३०२ दूहउ दियह दिसि जोइ करी, रयणि हिँ पुण नवि भेड बुल्लइ बहु-जण-संचरइ, धुत्त-धुरंधर केउ ॥ ३०३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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