Book Title: Isarsuri Virachit Lalitanga Charit apar nam Rasak Chudamani
Author(s): H C Bhayani
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 44
________________ [44] नाणमवहीलणं जं, सुंदरि तं ताण सत्तिमिसरूवं । विहियं विडंबणं विहि-कारणदोसेण पुव्वेण ॥ ४१२ दूहउ इम निसुणिय पिय वयण तव, बुल्लइ राय-कुमारि । राय-नीइ निउणेक-वर, विज्झति अवधारि ॥ ४१३ कुंडलीया दूहा ॥ जिण-सासणि जिणि नवि कही सिद्धि पक्खि एगति । जिम धणु-गुण बिहुं सरलपणि, सर मिल्हणा न जंति ।। सर मिल्हणा न जंति सरलपणि गुण-कोवंडह निच्चानिच्च- पयार सार जग जिम मय-भंडह । जिणवर-भासिय-वयण कहवि अन्नह इम वासण तं एगंत सुअलिय एम जंपइ जिण-सासणि ।। ४१४ तिणि कारणि एगंतपणि, निव-धम्मह वीसास । नवि किज्जइ सरलत्तगुणि, जिम दोरी विण पास ।। जिम दोरी विण पास, भास इम सुणीइ सथिहिँ सुणिउ अहव किहँ दिट्ठ राय मित्तत्ति परमथिहिँ अन्न वयणि मणि अन्न कज्ज सच्छंदह चारिणि । वेस धम्म जिम धम्मराय रायह तिणि कारणि ।। ४१५ विण अवसरि जे कज्जडां, विण पत्थाविहिँ माण । विण अवसरि तरु फुल्ल फल, ए त्रिहइ सुनियाण ।। ए त्रिण्हइ सुनियाण जाण इम जाणि न चित्तिहिँ हसइ कोइ नवि निउण बहुअ कोऊहल-वित्तिहिँ । हक्कारण-मिसि हेउअ वर बुज्झि न अवसरि इणि कज्जह कज्ज-विणास जेउ किज्जइ अवसर-विण ।। ४१६ सिउँ जंपिउँ बहुअर विरस, सार वयण सुणि सामि । जिम दज्झण-भइ दारु कर, लिद्धउ सुह परिणामि || लिद्धउ सुह परिणामि घाय-रक्खण जिम उड्डण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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