Book Title: Isarsuri Virachit Lalitanga Charit apar nam Rasak Chudamani
Author(s): H C Bhayani
Publisher: ZZ_Anusandhan
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[36] संसेवित-शुभवन्नीर २ निजामलकुलकमल-सुबोधानैकमार्तण्डावतार ३ ज्ञातिशृङ्गार ४ संसार-देवि-राजी-रमण-रोहिणीजीवितेश ५ महानरेश ६ परदुःखैक-महासिन्धु-सम्मुत्तार-यान-पात्र ७ उपलक्षितविद्या-गुण-पात्र ८ अनणु-गुणि-जनगुण-मनो-मानस-राजहंस ९ मलिक-माफरेन्द्र श्रीपुंजहंस-कारिते श्रीईस्वर-सूरिविरचिते प्राकृत-बन्धे पुण्य-प्रशंसा सम्बन्धे श्रीललिताङ्ग-चरित्रे रासक-चूडामणौ ललिताङ्ग-कुमार-विपदुच्छेद-पुष्पावती-पाणिग्रहण-राज्यार्ध-प्राप्ति-वर्णन-प्रकारो नाम तृतीयो-ऽधिकारः ||३|| इति तृतीयखण्डम् ॥
गाथा अह अनया कुमारो, वायायण-संठिउ स-लीलाए । कव्व-कहाइ-विणोयं, कुणमाणो सह कलत्तेणं ॥ ३५१ जा चिठइ ता पुरओ, पासंतो निवय-दिट्ठि-पसारेण । नयरं सव्वमपुव्वं, तत्थेगं पासए दमगं ॥ ३५२ ॥ युग्मम्
पद्धडी आजाणु-रुलंत-पलंब-केस, लिल्लिरिय-गणाहिव-सरिस-वेस । गलियच्छि-नास-वीभच्छ-रूव, घण-घट्ठ-पंडु-नहरोम-कूव ॥ ३५३ बहषाम(?)पयंड सिर-जाल-माल, मुह-कुहर-ऊअर-कंदर--कराल | मल-मलिण-देह-दुग्गंध-गंध, वण-सूई-पूइ-बहु-पट्ट-बंध ।। ३५४ दीणंग-खीण-घण-जणय-घोर, अहिणव-किरि जाणि दुकाल-रोर । उत्तम-जण-नयण-सुदिन्नि-रिक्ख,
खप्पर-करि घरि घरि लिंत भिक्ख ॥३५५ पक्खालिय-पई-पब-पीण-पाय, असरिस-जण-निंदिय-रीण-काय । बहुभंजिय पावह दुक्ख-सेस, उद्धरिय कि नारय-पिंड एस ।। ३५६ उवलक्खिय एरिस-रूवमित्त, ललियंगकुमर सुपवित्त-चित्त । मणि-चिंतइ हा हय-विहि-विलास, जिणि कारिय सुरवर कम्मदास॥३५७ नर घडिय सुघड विहडइँ विहत्त, अणजोडिय जोडइँ जुत्ति-जुत्त । तं करइ देवनर चित्ति जेउ, नवि बुज्झइं नाणी जीहभेउ ।। ३५८
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