Book Title: Isarsuri Virachit Lalitanga Charit apar nam Rasak Chudamani
Author(s): H C Bhayani
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 29
________________ [29] छंद हर हास कुंद कपूर वि हसिय हसिय लहु नव-जुव्वणा तिअ तिक्क तिक्ख कडक्ख चंचल चडिय चावासव्वणा । सिंगार-सार सुवेस- सज्जिय जाणि सुरवइ-सुंदरी लहु समरसीह-किसोर कामुय वसइ जाणि कि कंदरी ।।२८९ षट्पद ॥ नागिणि नवि पायालि इसिय सुर-लोगि न सुंदरि रमणि-रयण निम्माण जणि विहि घडिय सयल--धुरि ।। इकजीहि हुं पक्खि दक्खगुण वज्जिय मुद्धहं तासु लडह-लावण्ण-वण्ण किम मुणउँ सुमंधह || एरिसी नारि नरराय घरि, विहि-दोसइँ दूसिय निउण जच्चंध-नयणि जुव्वण-समइ, दिट्ठ सभंति ति-विसउणि ॥२९० गाथा तं भव-रूव--सुजुव्वण-उब्भड-वेसं निवो य ब्भु-विसेसं । दट्ठण नयण-वज्जिय-क्यणं वयणं भणइ एवं ॥२९१ अहहो परिसय-पुरिसा, पासह विवरीय-विलिसियं विहिणो । जमिणं रूवं निम्मिय, विडंबियं अंबएहिँ विणा ॥२९२ षट्पद विह विहि वसि सकलंक कमल-नालिहिँ कंटय पुण सायर-नीर अपेय पवर पंडिअ-जण निद्धण ॥ दइअहं दिद्ध विओग रूव दोहग्गिहिँ दिद्धउ धणवइ किय किवणत्तु रुद्द भिक्खत्तण किद्धउ ।। ब्रह्मा कुलाल-कम्मिहि विणदिगल दह-रूव हुओ इक्किक्करयण विहि-दोस-वसिइँ इक्क-इक्क-दोसेण जुअ ॥२९३ चंद कीउ सकलंक काय न न दिद्धी मयणह सुयणह दद्ध दरिद्द लच्छिले दिद्धी किवणह ।। लोयण दिद्ध कुरंग लोणहीणच्छी नारी नागवल्लि फलहीण अवर फल रक्ख असारी ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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