Book Title: Isarsuri Virachit Lalitanga Charit apar nam Rasak Chudamani
Author(s): H C Bhayani
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 14
________________ [14] सच्च-वयण गुरु-भत्ति पुण, नइ दुत्थिय-जण-दाण। धम्म एह जिणवर तणउ, बहु-फल फलइ अमाण ॥१२७ यतः धम्मेण धणं व ० ॥१२८१ .................अत्थमण मत्थ दिवस बलो। रयणबल वसग्ग सुद्दा, अवि तारा विफुरंति जए ॥ १५१ समय-वलाओ काले, अहम्म-करणं सुहावहं होइ। तस्स बलाभावेणं, धम्मोऽरम्मो हुइ असुकओ ॥१५२ अडिल्लमडिल्य धम्मवंत तुअ एह अवच्छह छंडि कुमर तिणि धम्म विवत्थह । समय एह तुअ करण अहम्मह, अज्जि बहुल धण करण अहम्मह ।।१५३ कुमर भणइ सुणि सुयण सुपावह, वयण सुणउँ नवि एह सुपावह । वलि वलि बुल्लि म अलिय सुपावह, जं धम्मिहिं खय जय पुण पावह ॥१५४ धम्म करताँ जित्त न होइ, जि तिहँ अंतराय फल कोइ। किं न होइ खज्जता सक्कर, दसण-पीड विचि आविइ कक्कर ॥१५५ नाय-सरिस अज्जिज्जइ लच्छी, तं नियाणि जिम होइ कुलच्छिय । परतिय-पेम जेम जसु अज्जण, कुल-कलंक अवजस जण लज्जण ।। १५६ सुन्नरानि-रूनउँ कुण कज्जिहिँ, कज्ज कि कलियलि किज्जिहि । गाम-बुड्ढ नर पुच्छउ कोइ, भंजई वाय नाय गुण केइ ॥१५७ जउ इम कहइ पुण जगि रूडउँ, तउ तइ लवीउँ सहू जं कूडउँ। तासु पाव छुट्टण छल दक्खउँ करिसि किसुउँ पणि झुणि तुअ अक्खडं ॥१५८ सुयण भणई सुणि नरवर-वंदण, अम्ह वयण सीयल जिम चंदण । भल्लउँ भणिउँ मुझ पण इम जाणउँ, हुं सेवक इणि भवि तुं राणउ ॥१५९ जइ विवरीय वयण इह सामिय, तउ तुं निच्च भिच्च हुं सामिय। १. १२९थी १५१नी गाथाना पूर्वार्ध सुधीनो खंड नथी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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