Book Title: Isarsuri Virachit Lalitanga Charit apar nam Rasak Chudamani
Author(s): H C Bhayani
Publisher: ZZ_Anusandhan
View full book text
________________
[ 21 ]
इक धम्म अहिs मित्त, जसु सुहिय निम्मल चित्त । जिहँ थकु हुइ सुभद्द, निदीइ ते किम भद्द ॥ २२४ इम सुणिय नित्र सुअ-वयण, तव सुयण विहसियवयण । बुल्लइ ति बोल कुबोल, जाणि किं पड़इ गिरि- टोल ॥२२५ दीसंति तु बहु भद्द, संपइ न मिल्हसि वद्द | जइ मूढ तुं नवि होइ, पहाण सच्चउँ सोइ ॥ २२६ जह केवि गाम - गमार, जणणी- भणिउ इकवार ।
गहियत्थ कहमवि पुत्त, मिल्हविउ नवि कुल-पुत्त ॥२२७ अभया जणणिअ पुच्छि, विलगउँ ति संडह पुच्छि ।
करि धरिय निय-बल-माणि, तिहँ लोय मिलिय अमाणि ॥ २२८
तसु मत्त-लत्त - पहारि, पडिया सु दंत विचारि ।
मिल्हि न पुच्छ सहूढ तिम तुम - वि होइसि मूढ ||२२९ कुलपुत्रकथा
पुच्छइ सुयण कहि देव, सिउँ करिसि पणि पुणि हेव ।
विण नयण- कमल न अस्थि, तुअ किंपि सत्थि सुअत्थि ॥२३० अमरिस - भरियह ती व्यणि, हिं कुमरवर तीणि ।
तसु वयण अंगिकार, किय जेम करवत - धार ॥ २३१ पवित्र वाचावीर, ललियंग साहस - धीर ।
I
सुह सुयण इक्किहिं गामि, पन्नउ ति साखा - नामि ॥ २३२ भवियव्व-कम्म-नियोगि, पुच्छइ ति गाम नियोगि पुण कहिउ तिम तिणि वार जिम पुव्व-गाम-गमार ॥२३३ अह चलिय पुण दुइ मग्गि, जंपिइ सुयण तसु अग्गि । सुणि सच्च कुमर नरिंद, तुं पुहवि जाण कि इंद ॥ २३४ बहु सच्च सील निहाण, तुअ समउ जगि कोइ न जाण । निय-अप्पि अप्प निहालि, पडिवन वाचा पालि ॥ २३५ उल्लंठ वयणिहिँ तास झलहलिय तेय - पयास |
जिण साण घसिय कवाण, दिव्यउ सुकुमर पहाण || २३६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61