Book Title: Isarsuri Virachit Lalitanga Charit apar nam Rasak Chudamani
Author(s): H C Bhayani
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 18
________________ [18] पद्धडी संपइ जसु हरिस न होइ चित्ति, विहलिय-वेला नवि सोगदित्ति । रण संकडि लिइ नवि पुट्टि घाउ, जणणी जणि परिस पुरिस-राउ ।। दूहउ जिणणा जिणा म गव्व करि० ॥१८८ सीहिणि एक जि सीह जिण छ० ॥१८९ लिउ सुयण तुरंगम एह तुज्झ दिउ देव सेव-आएस मुज्झ मुझ जाउ मल जिम सहु असार, रहु रस जिम सम-दम-सत्त-सार ।।१९० इम कहिय सु अप्पिउ तुरय तासु, पुट्ठिहिँ थिउ कुमर सु जेम दास । चल्लंतउ चंचलि चडिउ सोइ, हठि हसइति पच्छलि जोइ जोइ ।। १९१ मिल्हंतउ जे नवि पुहवि पाउ, बिसतु बहुअ-विचि-जमलि राउ । पहिरतउ पटंबर पवर चीर, सुहसयण सेज वामंग वीर ।। १९२ माणसु अडागर बहुअ पान, गावताँ सुगायण गीयंगान । करताँ बहु-मग्गण जय-सुसद्द, वज्जंता बेल्ल-नीसाण-नद्द ।। १९३ चडतउ वरचंचलतर-तुरंगि, नच्चंताँ निउण नव पत्त रंगि। चालता चतुरतर पत्ति-घट्ट, हीसंताँ हिसिमिसि हयह थट्ट ।।१९४ तिग-चच्चरि-चउ वट-जूअ-ठामि, इम रमतु जे लइ कुमरनामि । ते पिसुण-पुट्ठि पुलतउ पलाइ, जं करइ दैव सु जि होइ जोइ ।। १९५ षट्पर यत:-किणिहि कालि वर तुरय मिल्हि चडीइं सुखासणि० ॥१९६ गाथा अणुधावमाण-कुमरं, मग्ग-समावेस-सेय-मल-विगलं । पच्चारतो पइ पइ, पभणइ सुयणो पुणो एवं ॥ १९७ किं कुमर तए दिटुं पच्चक्खं धम्म-पक्खवाय-फलं । तो अज्ज-वि चय चाहिय, धम्मस्स कयग्गहं विहलं ॥१९८ 'वंचसु लोगे वहबंधणेसु मा कुणसु किवं किवालुव्व । नो अस्थि कत्थवि तुमं, को अन्नो जीवणोवाओ ॥ १९९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61