Book Title: Isarsuri Virachit Lalitanga Charit apar nam Rasak Chudamani
Author(s): H C Bhayani
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 13
________________ [13] धण जुळ्वण - गुरुमाण -दाण-माणिहिँ नवि मच्चइँ अप्प धरइँ संतोस तोस मन्नइँ पर रिद्धिहिँ परपीडइ परजलइँ टलइँ पर-कूड कुबुद्धिहिँ उवयार करइँ उवयार विण, अप्प पसंस न निंद पर, इम भणइ सुत्तमुत्तावली, एरिस, सुपुरि[स] चरिय वर ॥११६ गाथा सुपुरिस-चरिय- पवित्तो, कवडुज्झिय सत्तु- मित्त-सम-चित्तो । अणुगय वच्छल्लाओ, न निवारइ तं तहा कुमरो ॥११७ जं जेण कियं कम्मं, अन्न--भवे इह-भवे सुहं असुहं । तं तेण भोइअव्वं, निमित्त-मित्तं परो होइ ।।११८ अह तेण कारणेणं, कुमरो पुच्छेइ तमणुगय भिच्चं । साहसु सुह पंथ कइ, कमवि कहं सवण सुह-हेउं ।।११९ ता झत्ति सुयण-नामो, निय सहज-गुणाउ वियरिय-विराडो । जंपइ कहु देव तुम, कि पि वरं पुण्ण पावाओ ॥१२० ता सहसा ललियंगो, विम्हिय-हियओ सुवज्जरइ एवं । रे मुद्ध मूढ तुमए किं भणियं भुवण पयडमिमं ।१२१ अबला-बाल-गुआलय-हालिय-पमुहाण जं फुडं लोए। जं धम्माउ जउ पुण, खउ तहा णव पावाओ ॥१२२ सुयण पयंपइ सच्च पुण, जे मूरिख देव (?) । पिण धम्माधम्मह तणां, कहि किम जाणइ भेव ॥१२३ कुमर भणइ सुणि रे सुयण, वयण अभिय मि मुज्झ । जं तुझ आगलि फुड कहउँ, धम्मह एह जि गुज्झ ।। १२४ जीव-दया जिण-धम्म पुण, उत्तम-कुलि अवयार । सुह-गुरु चरणकमल वली, दुल्लह रयण चियारि ।।१२५ पुण्य-हीण जे जगि पुरिस, पुण नवि पामई एह । रज्जु रिद्धि सहु सुअणजण, रूव-रमणि गुण--गेह ।। १२६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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