Book Title: Isarsuri Virachit Lalitanga Charit apar nam Rasak Chudamani
Author(s): H C Bhayani
Publisher: ZZ_Anusandhan
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भंज जे भुजवलि भूव-आण, खंडइ खल खित्ति जे गुरुअ- माण । छंडइ छलि छोत्तिए कुलह नारी, विण-सत्थि कहिज्जइ तिन्त्रि मारि ॥ ९४ आज्ञाभङ्गो नरेन्द्राणां० ॥
पिण किज्जइ कारण उच्च कज्ज, जिह करताँ नावइ लोय लज्ज । सक्कर खंताँ नइ पडइँ दंत, तिहँ जडिय न मूलीय मंत तंत ॥ ९५ जिणि पसरई चिहुँ दिसि चाय- कित्ति, तिणि वंछइ मूढ सु कुण अकित्ति । जं दाण भणिज्जइ जग पहाण, तिहि करइ किसउँ नरराय आण ॥९६ जं दिताँ होइ सुहु अउ ( इ ? ) अम्ह, रूसउ जण दुज्जण करउ नम्म । खज्जंत दियंताँ जाइ लच्छि, सा जाउ सुजिनी वलि न पुच्छि ॥ ९७ इम चितवि चालिङ चतुर कुमार, दिइ पुणरवि दुत्थिय दाण- सार | धण कंचण कप्पड अइ अपुव्व, जं चडइ हत्थि तं दियइ सव्व ॥९८ जं जीवह जारिस सहज भाउ, नवि मिल्हइँ ते तिम निय-सहाउ उक्कालिय जल जिम सीय होइ, जगि नहीं सहज पडियार कोइ ॥ ९९ जइ वास सयं गोवालीया, कुसमणिय बंधइ मालिया । ताकि सहाव-धिय-गंधिया, कुसमेहिँ होइ सुगंधिया ॥ १०० पद्धडी छंट
इम जाणि वलि कुपिउ नरेस, दिद्धउ डसिआहार तसु विदेस । रक्खिय रोसग्गलि राय- बार, जिहँ हुंतर अणुदिन नवि निवार ॥ १०१
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वस्तुः
कुमर पिक्खिय कुमर पिक्खिय राय कुपसाय,
चितइ इम नियह मनि, करउँ केम अह माण - कज्जिहिं,
जउ आइय मुझ वसण, नवि कावि नहीं मुझ ईह रज्जिहिं, अविणय अनयत्तण रहिय, जइ एमुसुण दोस (एम्बइँ पुण ?) लउ मइँ इह रहिवउँ नहीं, आइ न होइ न जोस ? ॥१०२
गाथा
वाहि- दलिद्द- मलिना, वि माण- वसणागमे मणस्सीणं नन्नत्थ सुहं सयलं, देसंतरं गमण-विमणाणं ॥ १०३
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