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भारतेन्दु हरिश्चन्द्र मदिरा, अन्धकार, रोग आदि पात्रों का निर्माण करके भारत की दुर्दशा का चित्र इसमें खींचा गया है। ____ "भारत दुर्दैव-हाँ, तो तुम हिन्दुस्तान में जाप्रो और जिसमें हमारा हित हो, सो करो बस, 'बहुत बुझाय तुम्हहिं कहा कहउँ, परम चतुर मैं जानत अहउँ ।
अंधकार- बहुत अच्छा, मै चला । बस जाते ही देखिए, क्या करता हूँ।" अंधकार भारत में प्राता है।
भारत-दुर्दशा का प्रथम गीत ही उसकी करुण अवस्था का चित्र उपस्थित कर देता है
"यावहुँ सब मिलिकै रोक्हु भारत भाई।
हा हा ! भारत-दुर्दशा न देखी जाई ।" 'विषस्य विषमौषधम्' भी देश-सेवा की प्रेरणा से ही लिखा गया है। बड़ौदा-नरेश मल्हारराव गायकवाड़ को गद्दी से उतारे जाने के विषय में, इसमें करारा व्यंग्य है। अन्यायी, अत्याचारी, अयोग्य शासक मल्हारराव की इसमें तीखी मजाक उड़ाई गई है । देश में जब ऐसे कुकर्मी अयोग्य शासक हों, तो देश रसातल को न जाय, तो क्या हो। ___'नील देवी' में भारतीय नारी के पराक्रम और वीर कर्म का आदर्श चित्रण है । इसकी भूमिका में लेखक स्वयं कहता है, "इससे यह शंका किसी को न हो कि मैं स्वप्न में भी यह इच्छा करता हूँ कि इन गौरांगी स्त्री-समूह की भाँति हमारी कुल-लक्ष्मीगण भी लज्जा को तिलांजलि देकर अपने पति के साथ घूमें; किन्तु और बातों में जिस भाँति अंग्रेजी स्त्रियाँ सावधान होती है, पढ़ी-लिखी होती है। घर का काम-काज सँभालती है, अपने संतानगण को शिक्षा देती है, अपना स्वत्व पहचानती है. अपनी जाति और अपने देश की सम्पत्ति और विपत्ति को समझाती है, उसमें सहायता देती हैं. और इतने समुन्नत मनुष्य जीवन को व्यर्थ गृहदास्य और कलह में ही नही खोतीं, उसी भाँति हमारे गृह देवता भी वर्तमान हीनावस्था को उल्लंघन करके कुछ उन्नति प्राप्त करें, यही लालसा है।" ___ भारतेन्दु की भूमिका से उनके देश-प्रेम और समाजोत्थान की उत्कट लालसा का स्पष्ट प्रमाण मिलता है। भारतेन्दु की राष्ट्रीयता अाधुनिक राष्ट्रीयता न थी, उनकी देश-भक्ति या राष्ट्रीयता हिन्दुत्व-प्रधान थी-भूषण की राष्ट्रीयता थी। उस युग की यही मांग भी थी । 'नीलदेवी' में देशभक्ति से प्रेरित बीरता के भाव भी है और देश की निराशावस्था पर छलकते