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भारतेन्दु-मण्डल
२४७ मद्य-पान, वेश्या-वृत्ति का उपहास और उनसे उत्पन्न होने वाला दुष्परिणाम दिखाया गया है। अनेक प्रहसनों के विषय, वर्णन और शैली समान हैं। 'बूढ़े मुंह मुहासे' और 'तन-मन-धन गोसाईजी के अर्पण' विषय और मौलिकता की दृष्टि से अन्य रचनाओं से श्रेष्ठ हैं। पर ये प्रहसन सुन्दर, गम्भीर, प्रभावशाली और बढ़िया हास्य या व्यंग्य न दे सके । भारतेन्दु से आगे बढ़ना तो क्या, उनके समान भी हास्य उत्पन्न करने में ये लेखक असफल रहे-भाषा की दृष्टि से इस युग के लेखकों में बालकृष्ण भट्ट की रचनाए अधिक सफल, प्रौढ़, और प्रभावशाली हैं।